पहली अप्रैल
की कहानी
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कैलाश जैन
पहली
अप्रैल को आमतौर पर पूरी दुनिया में 'मूर्ख दिवस' अथवा
'अप्रैल-फूल डे' के रूप में मनाया जाता है। वस्तुत: मनुष्य
एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए वह अपने तनावों
और व्यस्तताओं के बीच क्षणभर के लिए मुक्त हास्य व मनोरंजन
के लिए समय निकालना चाहता है। 'मूर्ख-दिवस' के आयोजन की
पृष्ठभूमि में मानव-मन की यही सहज प्रवृत्ति दिखाई पड़ती
है।
उद्गम स्थल
: फ्रांस
पहली
अप्रैल को मूर्ख दिवस के रूप में मनाए जाने की परंपरा की
शुरुआत कब और कैसे हुई? इस संबंध में अलग-अलग मान्यताएँ
प्रचलित हैं। अधिकांश लोग अप्रैल फूल के उद्गमस्थल के रूप
में फ्रांस का नाम लेते हैं। वे एक प्राचीन धार्मिक कथा का
हवाला देते हैं, जिसके अनुसार पुराने युग में फ्रांस में
हर वर्ष पहली अप्रैल को वहाँ के शासक द्वारा नागरिकों और
पादरियों की एक विशाल सभा का आयोजन किया जाता था, जिसमें
राजदरबार के नुमाइंदे भी शरीक होते थे। इस सभा में भाग
लेनेवाले व्यक्ति अपनी विचित्र हरकतों व कार्यों से लोगों
का मन बहलाते थे। विचित्र किस्म की वेशभूषाएँ धारण कर जनता
का मनोरंजन किया जाता था। इस समारोह में सर्वाधिक
मूर्खतापूर्ण हरकत करनेवाले व्यक्ति को अध्यक्ष चुना जाता
था और उसे 'मास्टर ऑफ़ फूल' की उपाधि से विभूषित कर
सम्मानित किया जाता था। अन्य व्यक्ति हँसी-मजाक भरे गीत
गाते हुए लतीफे सुनाते। इस सभा की समाप्ति एक
'गधा-सम्मेलन' के रूप में होती थी, जिसमें सभी उपस्थित
व्यक्ति गधे के मुखौटे पहनकर ढेंचू-ढेंचू का राग आलापते
थे।
एक अन्य
धारणा के अनुसार 'मूर्ख-दिवस' की शुरुआत इटली में हुई।
वहाँ अप्रैल के कार्निवल के रूप में एक मनोरंजन-उत्सव
मनाया जाता है। इस दिन आदमी और औरतें खूब शराब पीते हैं और
नाचते गाते हुए ऊधम मचाते हैं। इस दिन रात में दावतों का
आयोजन किया जाता है।
यूनानी
सभ्यता की देन
कुछ
लोगों की मान्यता है कि 'मूर्ख-दिवस' यूनानी सभ्यता की देन
है। इस संबंध में एक लोक-कथा प्रचलित है। यूनान में एक
व्यक्ति अपनेआप को बड़ा तीसमारखाँ समझता था। उसे गर्व था
कि पूरे संसार में उससे अधिक बुद्धिमान और चतुर कोई नहीं
है। उसके घमंड को दूर करने और उसे नसीहत देने के लिए उसके
कुछ दोस्तों ने उससे कहा कि आज मध्य रात्रि को पहाड़ की
चोटी पर देवता अवतरित होंगे और उपस्थित लोगों को मनचाहा
वरदान देंगे। उस व्यक्ति ने दोस्तों की बातों पर भरोसा कर
लिया और सुबह होने तक पहाड़ की चोटी पर 'देवता' की
प्रतीक्षा करता रहा। जब वह निराश होकर लौटा तो दोस्तों ने
उसका खूब मज़ाक उड़ाया, तभी से यूनान में पहली अप्रैल को
'मूर्ख-दिवस' के रूप में मनाने की परंपरा चल निकली क्योंकि
उस दिन अप्रैल की पहली तारीख थी। पुराने समय में यूरोपीय
देशों में पहली अप्रैल के दिन हर मालिक नौकर की भूमिका अदा
करता और नौकर मालिक बनकर हुक्म चलाता। नौकर बने मालिक को
उसका हर आदेश मानना पड़ता था।
सफ़ेद गधों
का स्नान
इतिहास
में सन १८६० की पहली अप्रैल बेहद मशहूर रही है। इस दिन
लंदन में रहनेवाले हजारो लोगों के पास एक साथ डाक से एक
बड़ा-सा लिफ़ाफ़ा पहुँचा और लिफ़ाफ़े के अंदर सुंदर काग़ज़
पर टाइप किया हुआ संदेश निकला - 'मान्यवर, आज शाम टावर ऑव
लंदन पर सफ़ेद गधों के स्नान का कार्यक्रम देखने के लिए आप
सादर आमंत्रित हैं। कृपया यह कार्ड साथ लाएँ।'
उस समय
'टावर ऑव लंदन' में आम जनता का प्रवेश वर्जित था। शाम
होते-होते हज़ारों लोगों की भीड़ 'लंदन टावर' के आस-पास
जमा होने लगी और अंदर प्रवेश के लिए धक्का-मुक्की होने
लगी। वहाँ के व्यवस्थापक बौख ला उठे। वे समझ नहीं पा
रहे थे कि आख़िर माजरा क्या है? जैसे ही स्थिति स्पष्ट हुई
कि आज पहली अप्रैल है तो सभी अप्रैल फूल के शिकार लोग सिर
धुनते हुए घरों को लौट पड़े।
अख़बार और
रेडियो की भूमिका
अप्रैल
फूल की परंपरा को आगे बढ़ाने में अख़बारों और रेडियो ने भी
योगदान दिया। एक बार नीदरलैंड के राष्ट्रीय रेडियो प्रसारण
में यह हैरतअंगेज घोषणा कर दी गई कि मशहूर चित्रकार
रेंब्रापट की ख्याति-प्राप्त कलाकृति 'द नाइट वाच' भूल से
एक ऐसे द्रव के संपर्क में आ गई है, जिसकी वजह से वह
दिन-प्रतिदिन अदृश्य होती जा रही है। बस फिर क्या था?
हजारों कला प्रेमी उस कलाकृति के अंतिम दर्शनार्थ उस
संग्रहालय में पहुँचने लगे जहाँ वह दुर्लभ कलाकृति रखी हुई
थी। जब वहाँ पहुँचकर पता लगा कि रेडियो द्वारा प्रसारित वह
ख़बर पहली अप्रैल की गप्प थी तो उन्हें निराश लौटना पड़ा।
यूरोप के
प्रख्यात अख़बार 'रिव्यू' ने एक बार पहली अप्रैल को सन
१९५४ में परमाणु भट्टी का एक समाचार उसके निर्माण की विधि
को चित्रों सहित छापा। हालाँकि यह पहली अप्रैल की गप्प के
सिवा कुछ नहीं था किंतु समाचार की भाषा इतनी अधिक
विश्वसनीय थी कि विज्ञानिकों के लिए भी सच-झूठ का भेद कर
पाना कठिन हो गया। हंगरी के 'एटामिक एनर्जी इंस्टीट्यूट'
ने तो इस पर परमाणु भट्टी के संबंध में जानकारी प्राप्त
करने के लिए बड़े पैमाने पर अख़बार से पत्राचार भी किया।
इसी
प्रकार एक बार इटली के प्रसिद्ध अख़बार ने समाचार प्रकाशित
किया कि इटली की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री एमस्टर्डन रेलवे
स्टेशन पर शूटिंग के सिलसिले में आ रही है। समाचार के
प्रकाशन का तरीका और भाषा इतनी प्रभावकारी थी कि हज़ारों
दर्शक स्टेशन पर पहुँच गए। बाद में जब दर्शकों को पता चला
कि यह पहली अप्रैल का मज़ाक था तो वे बेचारे खिसियाकर लौट
आए।
आपस में
एक-दूसरे को मूर्ख बनाकर मनोरंजन करने की यह परंपरा भारत
में भी निभाई जाती है। पहली अप्रैल का यह दिन हँसी-मजाक के
लिए पर्याप्त अवसर देता है। हाँ मजाक का स्वस्थ व शालीन
होना आवश्यक है। |