वह
घरमें गैस ठीक करने आया था। पर चारों तरफ बिखरे फूलों
और मेहमानों को देखकर ठिठक गया।
"कोई उत्सव चल रहा है क्या दिवाली तो खत्म हो गई
फिर?"
"हां घर में शादी है।"
"शादी यू मीन अरेन्ज्ड मैरिज?"
"नहीं लव मैरिज।"
"लव मैरिज ऐतराज नहीं?"
"नहीं . . . काबिल, मनचाहा और भरोसेमन्द
जीवनसाथी हो तो इससे ज्यादा मांबाप और क्या चाह सकते
हैं?" उसकी अतिक्रमण करती जिज्ञासा को शान्त करते हुए
मैंने प्रश्न पर प्रश्न पूछा।
"क्या तुमने कोई भी सवाल जवाब नहीं किया था
पूरी तरह से आश्चर्य चकित था वह?"
"नहीं, मुझे अपने बच्चों की पसंद और चरित्र, दोनों
पर ही पूरा भरोसा है जैसे उन्हें अपने मां बाप और परिवार के
अन्य सदस्यों पर . . .क्योंकि भरोसा बस प्यार पर ही तो
पनप पाता है और एक दूसरे पर पूरा भरोसा कर पाएं इतना प्यार हम
एकदूसरे से करते हैं।"
"तुम और तुम्हारा परिवार
दूसरे एशियन से काफी फरक है। अभी मैं ऐस्टन में किसी
एशियन के घर गया था वहां वह लड़की घर में अकेली थी और
मुझे गैसबौयलर दिखला रही थी, इतने में उसका पति काम
से वापस आ गया और अकेली पत्नी को मुझसे बातें करते देख,
वहीं मेरे सामने ही लड़की के मुंह पर कसकर तमाचा मार दिया।
लड़की के साथसाथ मैंने भी बहुत अपमानित महसूस किया
खुदको। उस परिवार में विश्वास नाम की कोई चीज थी ही
नहीं।"
"किसी एक परिवार को तुम पूरे समाज का प्रतीक नहीं मान
सकते। शायद वह एक अशिक्षित और असुरक्षित परिवार हो।"
"हां . .. . तुम्हारे यहां तो कुलीन और पिछड़ी दो तरह की
जातियां होती हैं ना? वैसे भी तुम्हारे जैसे दिखते वह लोग
शायद दूसरे देश और धर्म से थे। वह अपने विचारों में
ज्यादा कट्टर होते हैं।"
"नहीं, बात देश, समाज, और धर्म या सवर्ण और
कुवर्ण से ज्यादा शिक्षा और सुखी परिवार की है। ऐसे परिवार हर
समाज में होते हैं। बचपन में हमें कितनी देखरेख और प्यार
मिला . . .संभवतः हम उतने ही सुलझे और सफल वयस्क बन
पाते हैं। अकेला, डरा और जूझता बच्चा तो बस एक उलझी
और तल्लख मानसिकता का असुरक्षित वयस्क ही बन पाएगा . .
.जिसके लिए समाज की तो छोड़ो, अपने परिवार पर भी भरोसा
कर पाना मुश्किल काम होगा। कुछ दिन पहले मैं यहां मार्क्स
स्पेन्सर में खरीददारी कर रही थी। अचानक तुम्हारे समाज का वह
छहसाड़े छह फुट का व्यक्ति अपनी विचित्र वेशभूषा और
रंगबिरंगे खड़े बालों के साथ अपने साथियों के साथ
स्टोर में घुसा और एक बेहद कमजोर और बूढ़ी एशियन
महिला पर बेहद अभद्रता के साथ हंसते हुए उसके सर पर थूकते हुए
आगे बढ़ गया। मुझे उस पर बेहद गुस्सा आई इसलिए नहीं कि
वह किसी और समाज से था . . . इसलिए कि उसे किसी ने इतनी
भी शिक्षा नही दी थी कि बुजुर्गों की इज्जत कर सके . . .यदि
कमजोरों की मदद नहीं कर सकता तो कम से कम उनके साथ
बदतमीजी तो न करें। उसके व्यवहार और आकार से मुझे डरना
चाहिए था पर मैं आगे बढ़ी और मैंने उससे कहा,
"एक्सक्यूज मी क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुमने
अभीअभी अपनी दादी समान बुजुर्ग महिला के साथ जो अभद्र
व्यवहार किया है, वह भी बिना किसी वजह से, उसके लिए
तुम्हें उससे जा कर माफी मांगनी चाहिए।" एक मिनट को
उसके चेहरे पर एक डरावनी हंसी कौंधी फिर शायद मेरे चेहरे
और इरादों की दृढ़ता देख सॉरी कह वह आगे बढ़ गया। किया
हुआ अभद्र व्यवहार तो वापस नहीं हो सकता था पर चोट थोड़ी
सहने लायक हो गई। मैं ऐसे वयस्कों को किसी जाति या
समाज की नहीं पूरी मानवता की हार मानूंगी। और ऐसी
मानसिकता ले बच्चे बड़े हों यह हर जाति और समाज के
मांबाप के लिए एक शर्मनाक बात है।
बच्चे वहीं करते हैं जो घर में
बड़ों को करता देखते हैं। अगर हम कहेंगे कि काला रंग खराब है
तो बचे यही मान्यता लेकर बड़े होंगे। ऐसा ही कुछ हुआ था
मेरे साथ जब एक दिन मैं बस में जा रही थी और नौदस
साल का वह दुबलापतला बच्चा अपने भारी भरकम बस्ते के
साथ बस के हर बार मुड़ने पर बड़ी मुश्किल से खुद को खड़ा रख
पा रहा था। जैसेतैसे खुद को थोड़ा सिकोड़समेटकर उसके
बैठने लायक जगह बनाते हुए मैंने उससे कहा यहां बैठ
जाओ। पर उसने बिना मेरी तरफ देखे ही जवाब दिया मैं पाकीज
(यहां हर एशियन को अक्सर लोग इसी नाम से बुलाते हैं)
के पास नहीं बैठता। मानस पर प्रंकित यह घटना आज बीस साल
बाद भी भुलाए नहीं भूलती और आज भी अक्सर ही अकेले में
मैं सोचती हूं . . .उसकी इस मानसिकता में दोष किसका था
उसका या उसके मां बाप का शायद ऐसे ही बच्चे बड़े होकर
समाज में विद्रोह और तोड़फोड़ फैलाते हैं नाजी
मानसिकता को जिन्दा रखते हैं। दूसरी जाति के लोगों के घरों
में चोरी करते और आग लगाते हैं। घटनाओं की एक लम्बी
श्रृंखला गिनाई जा सकती है पर सारांश बस यही है कि किसीको
न जानो तो संदेह और अंधविश्वास दोनों ही जन्म लेते हैं
और संदेह और अंधविश्वास से न बुझने वाली नफरत जन्म
लेती है।
"हां इसलिए हम जब छोटे थे
तो हमारे मां बाप जो कि हैन्सवर्थ में रहते थे (हैन्सवर्थ
आज बरमिंघम का लाहौर और लुधियाना बन चुका है) हमें
एशियन बच्चों के साथ खेलने देते थे और जब भी कोई
नया एशियन पड़ौसी पड़ौस में आता था तो हम उनसे
मिलने जाते थे।"
यही तो मुश्किल है हमारे आज के
इस इक्कीसवीं सदी के समाज की . . .पहले जो साधारण होता
था आज अच्छा समझा जाता है और जो खराब समझा जाता था
आज उसे हम आम मान चुके हैं। जो अच्छा था उसे तो हम पूरी
तरह से भूल ही चुके हैं। पड़ौसियों के साथ मेलजोल
और सद्व्यवहार तो एक आम बात होनी चाहिए हर समाज में।
यदि हम एक सुचारू समाज चाहते हैं तो हमें अपनी मान्यताएं
फिरसे बदलनी और सही करनी पड़ेंगी। मापदंड के तराजू की सूई
को थोड़ा खसकाना पड़ोगा जिससे अच्छा भी उसकी रेन्ज में आ
जाए और एकबार फिरसे समाज उसे पहचानने लगे।
अब आक्रमण करने की उसकी बारी
थी। "क्या तुम कभी ऐस्टन वगैरह के घरों में गई हो
वहां लोग आज भी दूसरी ही दुनिया में रहते हैं। वे औरतें
चौकों के फर्श पर बैठकर सब्जी और मछली काटती हैं, कोई
चौपिंग बोर्ड नहीं वर्क सरफेस नहीं नीचे एक कागज
का टुकड़ा तक नहीं और वहीं से आवाज देंगी क्या तुम चाय
पीओगे . . .अब तुम्हीं बताओ क्या तुम वहां चाय पीओगी?
उनके घर में विश्वास करोगी कि चाय साफ बर्तन में बनी
होगी और साफ कप में पीने को मिलेगी।"
"हां क्यों नहीं,
क्योंकि बनाने के पहले वह उसे साफ तरह से धोएंगी तभी
खाना बनेगा और परोसा जाएगा। उन्होंने सब्जियों को
जमीन से उगते देखा है और इसलिए उन्हें जमीन से कोई
परहेज नहीं। उनका फर्श दिन में दो बार धुलता और साफ होता
है। यह सब एक दूसरे के बारे में न जानने की वजह से ही
होता है।"
वह मेरे जवाब से पूर्णतः
विश्वस्त नहीं था। पर मेरी बात का सारांश समझ रहा था। बातें
छोटी सी थीं और औपचारिक छोटीछोटी बातों के साथ उठी
थीं पर बड़े बड़े और गहरे अर्थ ले चुकी थीं हम दोनों
एक दूसरे से बहुत कुछ कह और समझा गए थे छोटेछोटे
बीजों से ही तो बड़ेबड़े वृक्ष उगते हैं और शायद ऐसे
वृक्ष ही आने वाली पीढ़ियों को ठंडी छांह दे पाएंगे।
नवम्बर 2003
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