एक
बज्ज से नहीं अपितु तीन बड़े धमाकों के साथ आया इस बार मई का महीना यहाँ पर। रानी एलिजाबेथ के शासन के स्वर्णजयन्ती समारोहों के शुरूवात की
औपचारिक घोषणा और यूरोप में जोर पकड़ता श्रमदिवस समारोह
. . . सामंतशाही और ताकत के खिलाफ चन्द सरफिरों का सामूहिक प्रदर्शन और दुराग्रह
. . . जैसे
नक्कार खाने में तूती की आवाज . . . और आहिस्ताआहिस्ता आवाजें ऊँची करता जातिवाद। पर
बूँदबूँद मिलकर ही तो लहरों का रूप लेती हैं और अगर कहीं
लहरें मिल जाएँ तब तो किनारों का संयम तक टूट सकता है . . .
!
जितनी प्रदर्शन तख्तियाँ उतने ही विभिन्न संदेश। जिन्हें देखकर अपने सबके परपरपर परदादा गालिब मियाँ की बेचारगी याद आ रही है
'हजार ख्वाइशें ऐसी कि
हर ख्वाइश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान मगर फिर भी कम निकले।
कुछ बैनर बारबार आँखके आगे आ रहे हैं . . . जैसे कि पूँजीवाद न सिर्फ
मानव को नष्ट करता है बल्कि मानवता को भी। या फिर . . . याद रखो कि धरती यदि माँ की तरह प्यार दे सकती है तो सजा भी। या
मूँह पर पट्टी बाँधे, वह
बढ़ती कारों के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहा था . . . जागो, जब तक समय है, कह रहा था। जैसे कि बचपन में देखी किसी प्रख्यात चित्रकार की वह पेन्टिग जो
आज भी भुलाए नहीं भूलती . . . काले गन्दे
धूँए टाट के टुकड़े पर पड़ा एक मरा कौवा . . .
शीर्षक 'आधुनिक शहर'। वीभत्स और झकझोरने वाली
तस्वीर . . .
सँभल
जाने के लिए आगाह करती हुई।
माँगो और प्रदर्शनों की सूची हरसाल बढ़ती जा रही है। अब बात सिर्फ पूँजीवाद तक ही सीमित नहीं, वरन् हरतरफ के असंतुष्ट पहलू जुड़ते जा रहे हैं इस दिन के
साथ। भीड़ आकर्षित करते हैं लोग जुलूस, नारे और घेराबन्दी के जरिए। तरह तरह की प्लेकाड्र्स पर लिखी शिकायतें और चेतावनी के साथ। शहरशहर में
उमड़ते ये हजारो लोग। बाँध की दीवारों से सतर्क चुपचाप खड़े पुलिस कर्मचारी। श्रमिक दिवस की तरह शुरू होनेवाली यह पहली मई की तारीख अब सामूहिक
असंतोष और प्रदर्शनी का विकल्पसा ही बनती जा रही है। चारो तरफ तरहतरह के मुद्दे हैं . . .
विश्व व्यापार का नियंत्रीकरण व एकीकरण . . . किसी भी
जनहित निर्णय में आम जनता की पूर्ण अवहेलना . . . पर्यावरण की नित नई उठती समस्याएँ . . .
सूची अंतहीन है। दूरदर्शन पर कहा गया आज सूट पहनकर बाहर
न जाएँ तो बेहतर रहेगा। एक दिन के लिए ही सही सूट गरीब की फटी बनियाइन सा तिरस्कृत और अवाँछनीय परिधान है और लोगों का ध्यान अवहेलित और
पिछड़े समाज और देशों पर है।
मालूम नहीं यह सब अच्छा हो रहा है या बुरा क्योंकि हर तरह का इज्म अपने साथ अतिवदियों को लेकर आता है और हर अति किसी न किसी रूप में डरावनी होती
है। 'अति का भला न बरसना अति की भली न धूप' जैसी सन्तों की वाणी की घुट्टी तो हमे कभी भी भूलनी ही नहीं चाहिए . . .
पर अपने साथ दूसरों के दुख ओर
सार्वजनिक हित के लिए सोचना शायद ही कभी बुरा हो . . . बुराई तो तब आ मिलती है जब लोग इन जरियों से अपना उल्लू सीधा करना शुरू करते हैं। लोगों को
बहकाना शुरू कर देते हैं . . . सच ही कहा है किसीने कि ताकत भ्रष्ट करती है और पूरी ताकत तो पूरी तरहसे।
लोग अपनीअपनी शिकायतों और अंदेशों के साथ धरना देकर बैठे हैं . . .
कहना है सिर्फ
शान्ति के साथ। फिर भी लाठी चार्ज हुआ। अश्रुगैस छोड़ी गई। दुकानें
लुटी और कहींकहीं कुछ लोग मरे भी। और एक बार फिरसे वे अच्छेबुरे सारे सन्देश गन्तव्य तक पहूँचने के पहले ही ताकत और विद्रोह की लड़ाई में पैरोतले
रूँदकर रह गए। रोमांचक खबरे बन हवा में उड़ गए . . . सिड़नी हो चाहे बर्लिन हो, पैरिस हो या लंदन। समस्या वही पुरानी है और जानीपहचानी है।
रानी के राज्याभिषेक के पचास वर्ष पूरे होने की खुशी में शहरशहर . . .
संस्थासंस्था अपनी तरह से खुशियाँ मनाने की तैयारी में जुट गए हैं। अब सड़कों और
गलियों में भी सामूहिक जश्न और दावतें होंगी, पिकनिक मनाई जाएँगी। फिर रानी ही भला क्यों पीछे रहे वह भी अपने राजसी ठाटबाट के साथ एक विशेष
राजसी रेलगाड़ी में अपने जरूरत का सामान भरवाकर निकल पड़ी है देश के दौरे पर . . .
अपने देश के लोगों से मिलने के लिए। और यह रेलगाड़ी ही अब इस पूरी
यात्रा के दौरान उनका चलताफिरता होटल होगी। सुनते हैं रानी की तरह, जगहजगह उनकी यह अद्भुत रेलगाड़ी भी अच्छाखासा आकर्षण का केन्द्र बन रही
है।
विचलित करनेवाली खबर है यहाँ पर बढ़ता और जोर पकड़ता यह जातिवाद। ब्रिटिश नैशनल पार्टी का एक सफेद ब्रिटानिया का सपना और कुछ शहरों में उनका
क्षेत्रीय चुनावों में जीत तक जाना। यही नहीं फ्रांस में भी लैपॉन की रेसिस्ट पार्टी का उभरकर सामने आना। इँग्लैंड में तीन चार नैशनल फ्रन्ट के उम्मीदवारों का चुना
जाना। समस्या आम जनता और नेता सबको परेशान कर रही है। पर हम चलिए इस धधकते ज्वालामुखी को बुझने के लिए यही छोड़कर कुछ अन्य रूचिकर और
मानवसमाज में विश्वास पैदा करने वाली बाते करते हें।
खबर है कि अमेरिका के वैज्ञानिक चूहों की एक ऐसी नस्ल तैयार करने में लगे हैं जिन्हें रिमोटकन्ट्रोल के जरिए दुर्गम
दुर्घटनाग्रस्त जगहों में भेजा जा सकेगा और वह फँसे हुए जीवितों की खबरें ऐसी जगहों से भी ला सकेंगे जहाँ तक जा पाना अभी
तक सँभव ही नहीं था। इनके सिर में
लगाया गया विद्युतयंत्र बाहर से इनकी गतिविधियों को संचालित करने में सक्षम होगा। अगर वे अपने इस काम में सफल हुए तो निश्चय ही यह इस दुर्घटनाग्रस्त
दुनिया के हित में एक बहुत बड़ा कदम होगा।
यहाँ ब्रिटेन के
साहित्यप्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया भारतीय उच्चायोग
और लंदन कथा द्वारा सुआयोजित दो
साहित्यगोष्ठियों ने। पहली नेहरूसेन्टर और दूसरी श्री
अनिल शर्मा जी के घर पर आयोजित थी। जहाँ भारत से आई
युवा साहित्यकार अलका सरावगी से मिलने का साहित्यरासिकों
को मौका मिला और उनकी उपस्थिति ने दो अच्छी और विचारों
से भरपूर शाम दी सबको। उनके
दोनों उपन्यासों को लेखिका के दृष्टिकोण से जानने और
समझने का यहाँ के लोगों को मौका दिया।
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