सामयिकी भारत से

प्रभा चतुर्वेदीलखनऊ में कचरा प्रबंधन के नए प्रयोगों के विषय में प्रभा चतुर्वेदी से वरालिका दुबे की बातचीत-


कूडे से आसक्ति : प्रदूषण से मुक्ति


यह नारा दिया है 'लखनऊ एक्जोरा’ की अध्यक्ष श्रीमती प्रभा चतुर्वेदी ने। पेपर मिल कालोनी में उनके घर के सामने स्थित पार्क अपनी आकर्षक हरीतिमा के विस्तार से न केवल सबके मन को लुभाने में सक्षम है बल्कि उनकी निरंतर मेहनत, अनुभव और लगन की कहानी भी व्यक्त करता है। कभी मिट्टी की ऊबड़-खाबड़ जमीन रही यह जगह आज निखर कर हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित दूर-दूर तक फैली चमकीली घास और सुन्दर फूलों की लावण्यमयी पंक्तियों से भरी हुई है। इस पार्क को देखकर लगता है कि हर बात में सरकारी आस को ताकते रहने की बजाय स्वयंसेवा से किसी भी जगह का कायाकल्प किया जा सकता है। 'एक्सनोरा लखनऊ' में इस समय साठ सदस्य हैं। उपाध्यक्ष श्रीमती प्रतिभा मित्तल हैं, संरक्षक श्री आर.एन.त्रिपाठी है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं। श्री रमाकांत चतुर्वेदी इस संस्था के सचिव हैं।

''ये पार्क भी मेरी तरह उम्रदराज है'' - बड़े विनोदपूर्ण ढंग से बता कर ७१ वर्षीय प्रभा जी ने अपने व्यक्तित्व का पहला पन्ना खोला। वे कहती हैं कि लोगों की लापरवाह हरकतें मेरे मन में घाव करती हैं। जबसे मैंने होश सँभाला, मैं हर चौथे व्यक्ति को सड़क पर चलते-चलते टोक देती थी। आज इसी वजह से मैं पेपर मिल कालोनी को दे पाई हूँ, यह सुन्दर पार्क और ये साफ सुथरी सड़कें और नालियाँ।

वारालिका दुबे- कैसे होता है इस पार्क का रखरखाव?
प्रभा चतुर्वेदी- हम मुहल्ले वालों ने आपस में पैसे जोड़कर तीन माली रखे हैं। इस मुहल्ले में सब लोग सब्जी का छिलका आदि जो जैविक पदार्थ हैं और आसानी से कम्पोस्ट खाद में परिवर्तित किए जा सकते हैं, अलग से इस पार्क में बने गड्ढों में डालते हैं। इस कूड़े और पार्क की झड़ चुकी पत्तियों को, जलाया नहीं जाता बल्कि, गड्ढों में खाद बनाने के लिए डाला जाता है। इस प्रकार तैयार कम्पोस्ट खाद से इस पार्क के पौधों को पोषण मिलता है।

वारालिका दुबे- इसका मतलब है कि घरों में लोग कूड़े में से जैविक पदार्थ जैसे सब्जियों के छिलके इत्यादि एवं विषैले पदार्थ जैसे पॉलीथीन इत्यादि को एक दूसरे से अलग कर लेते हैं।
प्रभा चतुर्वेदी- हाँ, और यह बहुत आसान है रसोई में हिण्डालियम या स्टील का बड़ा डिब्बा रखें। उसी में नीचे पत्तियाँ बिछा लें। एक-दो दिन जैविक कूड़ा डालते रहें फिर उसे मुहल्ले में जिसके यहाँ लॉन हो उसके यहाँ या फिर पार्क में बने गढ्ढे में डलवा दें। बाकी विषैला कूड़ा, कागज इत्यादि अलग कूड़ेदान में डालें।

वारालिका दुबे- आपने बडी ही सरलता से यह भी बता दिया कि रसोई में कचरे के डिब्बे के प्रयोग की विधि क्या होनी चाहिए। लेकिन जहाँ मुहल्ले नहीं हैं और बहुमंज़िले भवन हैं वहाँ यह कूड़ा कहाँ डाला जाए?
प्रभा चतुर्वेदी- बहुमंज़िले भवनों के परिसर में स्थित मैदान के एक कोने में भी डाला जा सकता है। आधुनिक मुहल्ले ही तो हैं यह बहुमंज़िले भवन। फिर इस कूडे को बेच कर, चाहे कम ही सही, धन भी कमाया जा सकता है। हमारे पार्क में हर तीन महीने में लगभग चार क्विंटल कम्पोस्ट खाद बन जाती है, जिसे हम पंद्रह रूपये किलो बेच भी देते हैं।

वारालिका दुबे- क्या आपके मुहल्ले का यह प्रयोग लखनऊ नगर निगम सभी पार्कों में नही कर सकता?
प्रभा चतुर्वेदी- मैं आपको बताऊँ कि प्रशासन में भी बहुत से संवेदनशील अधिकारी नगर-निगम एवं लखनऊ विकास प्राधिकरण इत्यादि में आए। इनमें से श्री शैलजाकान्त मिश्रा, श्री एस.पी. सिंह ऐसे कितने ही लोग हैं। २००४ में वर्षा जल संचयन के तरीकों पर भी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने गृहणियों, वास्तुशास्त्रविदों इत्यादि के लिए कई कार्यक्रम किए जिनमें मुझे आमन्त्रित किया गया था। किन्तु पार्कों में यह सब करने के लिए प्रशासनिक पहल की बजाय पार्क के चारों ओर रहने वालों की इच्छाशक्ति की अधिक आवश्यकता होती है।

वारालिका दुबे- पर फिर भी सरकारी तन्त्र की सहायता तो चाहिए ही?
प्रभा चतुर्वेदी- एक सीमा तक यह बात सही है लेकिन स्वयं पहल करने पर सहायता भी मिलने लगती है। मेरे काम के बारे में जानकर एक्सनोरा इंटरनेशनल ने मुझे लखनऊ में एक्सनोरा इन्नोवेटरी क्लब का अध्यक्ष बनाया और काम ने गति पकड़ ली।

वारालिका दुबे- एक्सनोरा इंटरनेशनल क्या है -
प्रभा चतुर्वेदी- एक्सनोरा चेन्नई में कार्यरत एक स्वयंसेवी संस्था है, लखनऊ एक्सनोरा का जन्म १९९६ में हुआ जब एक्सनोरा इंटरनेशनल के संस्थापक श्री एम.बी. निर्मल लखनऊ आए। इनकी प्रेरणा से ही इस संस्था की नींव पड़ी और ६ अगस्त १९९७ को इसे पंजीकृत कर दिया गया। संस्था का मानना है कि घर के आगे पेड़ लगाने, घर में प्रयोग किए जा रहे पानी को सिंचाई के लिए उपयोगी बनाने, वर्षा का जल का संचय करने, कूड़े का सही प्रबन्धन करने और घरों में सब्जी आदि उगाने के लिए छोटा सा बग़ीचा बनाने मात्र से ही हम अपने देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का देश बना सकते हैं। इस संस्था में उत्तम, नये और मूलभूत विचारों को प्रोत्साहन दिया जाता है

वारालिका दुबे- यदि कोई निजी व्यवसायी जैसे जिन्दल पावर, रिलायन्स वगैरह इस काम में आगे बढें तो क्या यह संभव है?
प्रभा चतुर्वेदी- क्यों नही? इस तरह से निजी व्यवसायी, अवकाश प्राप्त बुर्जुगों को एक अच्छे काम में व्यस्त भी कर सकते है। पर मेरा मतलब यह नही है कि बच्चे या नवयुवक इस कार्य को नहीं कर सकते। नवयुवकों को भी कूडा-प्रबंधक बनाया जा सकता है। सच पूछिए तो मुझे कूड़े से एक आसक्ति सी है। मेरा बस चले तो मैं लोगों को समझाऊँ कि कूड़े का सही प्रबन्धन करके वातावरण को स्वस्थ बनाना किसी पूजा से कम नहीं।

वारालिका दुबे- कूड़े का प्रबन्धन एक आम आदमी को कैसे करना चाहिए?
प्रभा चतुर्वेदी- बड़ा ही आसान है दिन के चौबीस घंटों में से यदि कोई मात्र एक या दो मिनट भी दे सके तो कूड़ा प्रबंधन बहुत आसान हो सकता है। कूड़ा बनाते समय ही जैविक कूड़े यानी सब्जी के छिलके आदि को अलग से संचय करें। ध्यान देना चाहिए कि हम कूड़े को नष्ट कर के उससे बन सकने वाली जैविक कम्पोस्ट खाद को खो रहे हैं और अपना ही नुकसान कर रहे हैं। यदि जैविक खाद प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो तो यूरिया इत्यादि रासायनिक खादों से आसानी से बचा जा सकता है।

एक्सनोरा लखनऊ निम्नलिखित दिशाओं में जन चेतना जागरण के प्रयास में कार्यरत है-

  • अपने घर की स्वच्छता जितनी आवश्यक है घर के बाहर की भी उतनी ही आवश्यक है क्योंकि गंदगी समस्त पर्यावरण को प्रदूषित करती है।

  • घरों से निकलने वाला हर अपशिष्ट उपयोगी है बशर्ते उसका सही उपयोग किया जाए। घर के कचरे को दो भागों में बाँटना चाहिए पहला हरा या रसोई का कचरा जिसमें सब्जियों के छिक्कल, चाय की पत्ती आदि होते हैं और सूखा कचरा जिसमें कागज, प्लास्टिक और धातु आदि होते हैं। हरे या रसोई के कचरे को किसी गड्ढे में दबा कर खाद बनाई जा सकती है। सूखे कचरे को कबाड़ी को दे देना चाहिए।

  • किसी भी कीमत पर नदी के जल में किसी प्रकार का कचरा न डालें चाहे वह हवन की सामग्री या पूजा के फूल ही क्यों न हों। इन्हें भी ज़मीन में दबाना चाहिए।

  • जल की आपूर्ति में होती उत्तरोत्तर कमी को दृष्टिगत रखते हुए जल संरक्षण के सभी उपाय अपनाएँ पानी व्यर्थ न गँवाएँ।

सहयोग- रमाकांत चतुर्वेदी
 

५ अप्रैल २०१०