मंत्रिपरिषद में व्यापक फेर–बदल
भारतीय प्रधानमन्त्री बाजपेई ने भारत को एक परम शक्तिशाली और
प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र बनाने एवं जनमानस को
आर्थिक, राजनीतिक न्याय दिलाने एवं उनके मौलिक
अधिकारो को अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रति
प्रतिबद्धता दिखाते हुए अपने मंत्रिपरिषद में
व्यापक फेर बदल किया है। इस फेर बदल की शुरूवात
श्री लालकृष्ण अडवानी को उपप्रधान मन्त्री के पद
पर प्रतिष्ठित करने के साथ हुई।
काबिले गौर है कि समय–समय पर राजनीतिक हल्को में
वाजपेई और अडवानी के मध्य मतभेद की खबरे प्रचारित
होती रही हैं। ऐसे में अडवानी की उपप्रधान मन्त्री
के रूप में नियुक्ति ने इस तरह की कयासबाजी पर
विराम लगा दिया है।
मंत्रिमन्डल में शामिल नये चेहरों मे शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद
खन्ना, जनाकृष्ण मूर्ति, विखे पाटिल और
साहिब सिंह वर्मा आदि हैं।
इसके अतिरिक्त तमाम राज्य मन्त्रियों की नियुक्ति
की गयी। इतना ही नहीं कुछ प्रमुख मंत्रियों के
विभागों में भी फेर बदल किया गया है। इनमे से
प्रमुख जसवन्त सिंह को वित्त एवं यशवन्त सिन्हा को
विदेश मन्त्रालय सौंपा गया है।
दूसरी तरफ वेंकैया नायडू और अरूण जैटली ने पार्टी कार्य के
लिये अपने मंत्री पदों को जिस तरह छोडा वे सम्मान
एवं सराहना के पात्र हैं।
अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी और मन्त्री
मण्डल के व्यापक फेर बदल के लिये बाजपेई जी पर
पार्टी का अतिरिक्त
दबाव पड रहा था। पिछले दिनों हुये राज्यों के
विधान सभा के चुनाव में पार्टी को अप्रत्याशित
परिणामों से गुजरना पड़ा जिसकी वजह से उन पर यह
दबाव कुछ अधिक बढ गया था। इस परिवर्तन की एक
प्रमुख वजह यह भी है कि अगले वर्ष लगभग १० राज्यों
में विधान सभा चुनाव भी होने हैं और लोकसभा चुनाव
वर्ष २००४ में तय है।
अडवानी को उप प्रधान मन्त्री पद, वेंकैया नायडू को भाजपा
अध्यक्ष पद और उतर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष
पद पर विनय कटियार जैसे एक अत्यन्त जुझारू युवा
नेता के चयन से
इस अनुमान को बल मिलता है कि फेर बदल से
भाजपा अपना खोया हुआ जनाधार पुनः मजबूत करना चाहती
है। इनका मुख्य उददेश्य होगा कि विगत वर्षो में जो
वोट बैंक भाजपा से दूर हुआ है उसे फिर से हासिल
किया जाय।
मध्यप्रदेश भाजपा की कमान बेवाक प्रखर नेत्री उमा भारती के
सुपुर्द करके पार्टी ने अपना जनाधार मजबूत करने के
लिये ठोस धरातल तैयार करने की कोशिश की है।
केन्द्रीय मन्त्री परिषद में हुए फेर बदल से यह बात सामने आ
गयी कि भारतीय जनता पार्टी मे अभी भी कर्मठ और
योग्य लोग हैं जिनका विश्वास त्याग और बलिदान पर
है जो मौजूदा चुनौतियों का सामना करने में सक्षम
हो सकते हैं।
साथ ही राष्ट्रपति पद के लिये १५ जुलाई को होने वाले चुनाव में
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन सरकार द्वारा नामित
प्रत्याशी डा ए पीजे अब्दुल कलाम की विजय
सुनिश्चित है। तमिलनाडु के एक छोटे से गाँव में
जन्मे, जीवन के ७१ वसंत देख चुके इस महान
वैज्ञानिक ने देश को मिसाइल औद्योगिकी के क्षेत्र
में "आकाश" सी ऊँचाइयाँ दी हैं। उनकी इस देशभक्ति
व समर्पण ने उन्हें आज देश का सर्वाधिक लोकप्रिय
व्यक्ति बना दिया है।
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अक्टूबर में
जम्मू कश्मीर राज्य में होने वाले विधान सभा के
चुनाव की
ओर देशवासियों की निगाह लगी हुयी है। केन्द्रीय
सरकार भी
निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र ढंग से चुनाव कराने के प्रति
विचारशील है सम्भावना व्यक्त
की जाती है कि चुनाव मे निष्पक्षता बनाये
रखने के लिये सरकार राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।
हलाँकि केन्द्र सरकार के इस रूख से सरकार के सहयोगी फारूख
अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुला परेशान है।
उनको अपना राजनीतिक पटाक्षेप दिखायी दे रहा है।
फारूख अपनी चुनावी बिसात को
मजबूत करने के लिये श्रीनगर के एक समारोह मे अपने
बेटे को नेशनल कान्फ्रेन्स के अध्यक्ष के रूप में
ताजपोश कर चुके हैं। किन्तु बाप बेटे दोनो ने
पिछले चार वर्षो में जम्मू कश्मीर की अवाम के
लिये ऐसा कुछ नही किया जिसके बूते पर वे वोट मांग
सकें।
एक ओर
केन्द्र सरकार निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनाव कराकर
विश्व समुदाय को आश्वस्त करना चाहती है, वहीं
अलगाव वादी संगठनो भी चुनावी प्रक्रिया में शामिल
होने के लिये तैयारी में जुटे हुए हैं।
जून के महीने में २५ जून से शुरू होने वाली नेपाल
नरेश ज्ञानेन्द्र की छे दिवसीय यात्रा एक
महत्वपूर्ण घटना रही। पिछले वर्ष जून में
राजपरिवार में हुए नर संहार के बाद नेपाल नरेश
ज्ञानेन्द्र की यह पहली भारत यात्रा थी। वे भारतीय
राष्ट्रपति के निमंत्रण पर भारत पधारे थे।
भारत यात्रा के दौरान नेपाल नरेश ने पूर्वी
राज्यों असम और पश्चिम बंगाल का भी दौरा किया तथा
कामाख्या मंदिर और कालीघाट मंदिर में पूजा अर्चना
की।
दोनों देशों के आपसी हितों के विषय में राष्ट्रपति
के आर नारायणन, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
तथा अन्य लोगों के साथ उनकी मुलाकात को परंपरागत
मैत्री और सद्भाव के लिये शुभ माना गया है।
नेपाल नरेश की भारत यात्रा के दौरान नेपाली
वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ ने एक समझौते पर
हस्ताक्षर किये तथा दो पृथक कार्यदल भी गठित किये
गये।
अपने अपने क्षेत्र के दो प्रमुख व्यक्तियों
ने पिछले दिनो दुनियाँ से विदा ले ली। ये थे
प्रसिद्ध उद्योगपति धीरूभाई अम्बानी तथा कवि और
गीतकार रमानाथ अवस्थी।
१९२६ में जन्मे रमानाथ अवस्थी सीधी सरल भाषा में
गंभीर दर्शन लिखने वाले सरस कवियों में गिने जाते
हैं। २९ जून को दिल्ली में आपके देहान्त से हिन्दी
साहित्य को अपूरणीय क्षति हुयी है।
भारतीय उद्योग जगत के बेताज बादशाह धीरूभाई
अम्बानी विगत २४ जून से ब्रीच कैन्डी अस्पताल में
मौत से जूझ रहे थे। कल ७ जुलाई शनिवार को उनके
अन्तिम सांस लेते ही देश को नयी शैली की औद्योगिक
राह दिखाने वाले युग का पटाक्षेप हो गया। धीरूभाई
अम्बानी सर्वाधिक वेतन पाने वाले मुख्य अधिशासी
थे, वे वेतन के तौर पर एक वर्ष में ८•८५ करोड़
प्राप्त करते थे, जो देश की सबसे अमीर कम्पनी
विप्रो के अजीत प्रेम जी को मिलने वाले ४•२८ करोड़
रूपये वेतन से अधिक थे।
पिछले दिनों बंगलादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन भी
चर्चा में रहीं। उनके इस बयान से कि वे कोलकाता
में बसना चाहती हैं, पूरे देश में चर्चा का
वातावरण बना हुआ है। साधारणतया बंगाल की जनता
चाहती है कि तसलीमा को कोलकाता में रहने की अनुमति
दे देनी चाहिए। किन्तु बांगलादेश में तसलीमा पर
देशद्रोह का मामला लंबित है। उसको पनाह देकर
बांगलादेश से सम्बन्ध बिगड़ सकते है, इसी बात से
मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी चिन्तित है।
पेशे से डॉक्टर तसलीमा नसरीन १९९६ से निर्वासित जीवन
बिता रही है। उनके पास स्वीडन की नागरिकता है
किन्तु उनके कोलकाता प्रेम से बुद्धदेव ही नहीं
अपितु भारत सरकार भी पशोपेश में पड़ सकती है।
— बृजेश कुमार शुक्ल
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