भारत और चीन
एशिया महाद्वीप पर बनते नये समीकरण
एक लम्बे अन्तराल के पश्चात चीनी प्रधान
मन्त्री सू रोंगझी की एक सप्ताह की भारत यात्रा यों तो
पूर्व निर्धारित थी,किन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में जो
घटना क्रम चल रहा है उन परिस्थितयों में उनकी भारत
यात्रा का महत्व बढ जाता है। इस यात्रा के परोक्ष में
जहाँ भारतीय बाजार में चीनी उत्पाादों की व्यापक खपत
एवं वाणिज्य व्यापार की असीम सम्भावनाओं की चमक है
वहीं आतंकवाद के मुददे पर अमेरिका और ब्रिटेन के साथ
भारत की बढती साझेदारी भी। इस यात्रा को नए राजनीतिक
परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।
हलांकि पाकिस्तान के साथ चीन के घनिष्ठ सम्बन्धों के
मददे नजर यह शंका जरूर थी कि भारत के साथ चीन का
रिश्ता प्रगाढ कैसे होंगे, भारतीय अवधारणा यह रही है
कि चीन पाकिस्तान का घनिष्ठ मित्र होने के कारण
अनिवार्य रूप से उसकी विदेश नीति का भी संरक्षक होगा।
चीनी प्रधान मन्त्री ने अपनी बातचीत से भारतीय पक्ष को
लगातार इस बात से आश्वस्त करने की कोशिश की, कि भारत
पाक सम्बन्धो ं के मामले में चीन अपनी तटस्थता कायम
रखेगा। भारत पाकिस्तान के मध्य विवादों के बारे में
चीन ने स्पष्ट किया कि वह इसे द्विपक्षीय मामला मानता
है ओर उसकी मान्यता है कि दोनो देश आपसी बातचीत के
जरिये बिना किसी की मध्यस्ता को स्वीकार करते हुए अपना
विवाद सुलझायें।
रोंगझी का मानना था कि चीन और भारत में आतंकवाद के
खिलाफ लडने वाली स्थितियां एक जैसी हैं, सम्पूर्ण
मानवता को कलंकित करने वाला यह मुददा एक सरीखा हो गया
है। चीन आतंकवाद के खिालाफ है तथा उसको समाप्त करने
में सहयोग का आतुर भी है। आपसी सम्बन्धों के सिलसिले
मे एक बात और सामने आयी जब रोंगझी ने जोर दिया कि चीन
की निगाह में न तो भारत को चीन से कोई खतरा है और न ही
चीन भारत की ओर से खतरा महसूस करता है.। दोनो देश के
मध्य सीमा विवाद का मुददा है जिसे आपसी सहयोग से निपटा
लिया जायेगा।
चीनी प्रधान मन्त्री का यह संकेत बिल्कुल स्पष्ट था कि
वे पुराने विवादो को भुलाकर आर्थिक और व्यापारिक
क्षेत्र में सहयोग का वातावरण बनाने को उत्सुक है।
चीनी प्रधानमन्त्री की वाजपेई से बातचीत, विज्ञान,
प्राद्यौगिकी तथा व्यापार के क्षेत्र में सहयोग
सम्बन्धी समझौते तथा आपसी एवं अन्तराष्ट्र्रीय प्रश्नो
पर चीनी नेताओं की स्पष्टवादिता से ऐसी सम्भावनाए बन
रही है कि दोनो देशो के बीच मैत्री और सहयोग व्यापक
होंगे। चीन ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि उसकी
दिलचस्पी विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढाने मे है और
वह भारत की क्षमता को पूरी तरह समझ रहा है।
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cचीनी विदेश नीति अमेरिका, ब्रिटेन की तरह क्षेत्रीय
और सामरिक सन्तुलन बनाने के लिये किसी देश को महत्व
देने या नजरअन्दाज करने जैसे मुहिम पर आधारित नही
करती। चीन की विदेश नीति विशुद्ध रूप से उसकी अपनी
राष्ट्रीय जरूरतो से निर्धारित होती है। चीन न केवल
भारत का पडोसी है अपितु विश्व के आर्थिक और सामरिक पटल
पर तीव्र गति से उभरता हुआ देश भी है। उसे अपने आसपास
भी व्यापारिक साझेदारों की जरूरत है।
चीनी प्रतिनिधि मन्डल ने भारत के उद्योग–व्यापार जगत
से जुडे लोगो से विचार विर्मश किया, व्यापारिक हितो के
सम्वर्धन के साथ–साथ दोनो देशों को एक दूसरे के यहाँ
पूजी निवेश की आवश्यकता पर बल दिया तथा भारतीय
औद्योगिक संस्थानो के साथ मिलजुल कर काम करने की इच्छा
को व्यक्त किया।
दिल्ली से बीजिंग तथा शंघई तक की सीधी हवाई उडानो का
प्रारम्भ एवं चीनी मिनी मेटल ग्रुप द्वारा भारतीय
कम्पनियों के साथ साढे बारह करोड डालर के किये गये
व्यापारिक समझौतो से प्रतीत होता है कि चीन भारत के
साथ वाणिज्य व्यापार से लेकर ढांचेगत क्षेत्र में
सहयोग का आतुर है।
आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्रों में सहयोग का स्तर
जितना व्यापक होगा, उतना ही परस्पर विश्वास भी बढेगा
और सम्बन्ध भी प्रगाठ होंगे। एशिया महाद्वीप के ये दो
ताकतवर देश वास्तव मे यदि सफल हुए तो निश्चित रूप से
समूचे एशिया महाद्वीप पर इसका विशेष प्रभाव पडेगा एवं
सन्तुलन स्थापित होगा।
हवाई सेवा, व्यापार, अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीकी क्षेत्र
में सहयोग और ब्रह्मपुत्र के लिये आंकडो के आदान
प्रदान के लिये जो मार्ग प्रशस्त हुए हैं उसका चीन को
पूरा लाभ मिलेगा। इन अवसरों का पूरा लाभ भारत को भी
उठाना होगा। चीनी प्रधान मन्त्री की मौजूदा भारत
यात्रा के दौरान दोनो देश के बीच छे समझौतों पर
हस्ताक्षर हुए पर, इस यात्रा को महज समझौते तक सीमित
करना भूल होगी। भारत की कूटनीति और रणनीति की दृष्टि
से भी इस यात्रा का विशेष महत्व है।
चीन पाक सम्बन्ध भारत की दृष्टि से चिन्ता का विषय
जरूर है लेकिन शाश्वत नही है जिसे बदला नही जा सकता,
भारत को अपनी प्रतिक्रियावादी नीति को त्यागकर ठोस पहल
करनी पडेगी। अतीत की ग्रंथियों से उबरकर अविश्वास की
भावना से ऊपर उठने के लिये प्रयासरत होना पडेगा।वैसे
भी पिछले वर्षों में दोनो देशों की सीमाओं पर शान्ति
रही है।
सम्बन्धो में पारदर्शिता बनाये रखने के लिये भारत को
अमेरिका और ब्रिटेन के साथ बने नये समीकरण के स्वरूप
ओर पश्चिम के प्रति अपने दृष्टिकोण को भी चीनियों के
सामने खुलासा करना चाहिये। भारत को अपनी कूटनीति में
समस्या का समाधान और रणनीति का विकास दोनो पहलुओं को
साथ लेकर चलना होगा। सम्बन्धों की इस कड़ी को जोडने में
हो सकता है समय लगे फिर भी भारत को अपने राजनय प्रयास
में शिथिलता नही आने देना चाहियेऌ तभी दोनो देशों के
मध्य आपसी सहयोग के नये अध्याय का शुभारम्भ हो सकता
है।
— बृजेश कुमार शुक्ल
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