आतंकवाद की खूनी छाया
अमेरिका
पर बर्बर आत्मघाती आतंकी हमले की विनाश लीला देखकर
समूचा विश्व स्तब्ध रह गया है।हजारों निर्दोष लोगो की
जीवन लीला विस्फोट में धुएं की तरह उड़ गयी। मानवता को
कलंकित करने वाली यह एक ऐसी घटना थी जिसकी कभी कल्पना
भी नहीं की जा सकती थी।
इस आतंकी घटना का एक
ही उददेश्य था— अमेरिका को एक ऐसी चुनौती देना कि वह
अजेय नही है तथा उसका किला अभेद्य भी नही है।इस वीभत्स
घटना के कारण अमेरिका को अपार धन जन की हानि हुयी जो
मानवता के इतिहास में काले अध्याय की तरह चिपका रहेगा
।
विनाश की इस पैचाशिक
विचार धारा को इस्लामिक कट्टरता का आवरण पहना दिया गया
है तथा बलपूर्वक इस्लाम को पूरी दुनिया पर फैलाने के
लक्ष्य को लेकर अनेक कारणों से हुयी हताशा को आतंकवादी
रास्ते पर जोड़ दिया गया है और जब आतंकवाद के साथ साथ
धार्मिक कट्टरता जुड जाय तो विनाशकारी विस्फोटक तैयार
हो जाता है।
अमरीकी राष्ट्रपति
बुश ने इस कायरता एवं बर्बरता पूर्ण कार्य के पीछे
इस्लामी कट्टर पंथियों का नेतृत्व करने वाले ओसामा बिन
लादेन को चिन्हित किया है। जो अफगानिस्तान में तालिबान
से पोषित है। वैसे भी यदि हम सूक्ष्मता से इस अमानवीय
कुकृत्य के पीछे झांककर देखे तो ज्ञात होता है कि इस
मानव बमों के तार अमेरिकी टुकडों पर पलने वाले देशों
से जुड़े हुये है।
निश्चित रूप से पुनः
अमेरिकी जनता के आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिये बुश
प्रशासन को आत्म मंथन एवं आत्म चिन्तन करना होगा। ऐसे
आतंकवादी किसी भी प्रकार के कुकृत्य को अंजाम देने वाली
व्यवस्था को जड़ से ही काट देने की दिशा में सजगता
दिखानी पडेगी।आज आतंकवाद की विभीषका से समूचा विश्व
समुदाय अन्दर ही अन्दर भयभीत हो गया है।
ऐसे दुखद क्षणों में
अत्यन्त आत्मदृढ़ता के साथ बुश ने एक तरफ तो इस घटना
को युद्ध की संज्ञा दी और दूसरी तरफ अपनी कूटनीतिज्ञ
चालों को तेज करके विश्व जनमत को विश्वास मे लेकर अपना
ध्यान आतंक के पर्याय बने लादेन को समाप्त करने पर
केन्द्रित कर दिया है। किन्तु क्या एक लादेन को समाप्त
होने से आतंकवाद समाप्त हो जायेगा यह प्रश्न बार बार
सभी के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज रहा है।
इस भीषण नर संहार के
पीछे गहरे कूटनीतिज्ञ षडयंत्र के फल स्वरूप मिलने वाले
प्रत्यक्ष लाभ के पीछे पाकिस्तान की झलक मिलती है।
जिसने
अमेरिका को सहयोग देने के बदले में अपनी कुछ शर्ते रखीं।
अमेरिका द्वारा पाकिस्तान की तमाम पाबांदियाँ हटा ली
गयी और आर्थिक सहयोग की अनुकम्पा शुरू हो गयी। |
|
आज पाकिस्तान बुश
की गोद में बैठकर अपने चिर परिचित दुश्मनों पर
कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ भारत में आतंकवादी
गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। शायद यह अमेरिकी
प्रशासन की मजबूरी है कि उसे अपने नागरिकों के
विश्वास व अपने आत्म सन्तोष को बनाए रखने के लिये
एवं अफगानिस्तान की दुर्गम पहाडियों में घुसने के
लिए क्वेटा ही एक मात्र रास्ता है, जो पाकिस्तान
की सरहदे–जमीं पर है।
काबुल की सत्ता पर
काबिज तालिबान ने अपनी काली करतूतों से
अफगानिस्तान को विनाश के ढेर पर ला कर खड़ा कर
दिया है। इस देश का भविष्य अंधकारमय है। मुल्ला
उमर की बर्बरता ने अफगानिस्तान के अतीत को नष्ट
करने में कोई कसर नही उठा रखी इसका प्रमाण जहाँ
खंडित प्रतिमाएं हैं वहीं महिलाओं के साथ अमानुषिक
प्रतिबन्धों ने मानवता के चेहरे पर कालिख पोतने का
काम किया है।
वर्षो से आतंकवाद
की मार से व्यथित भारत ने भी एक सच्चे मित्र की
तरह आतंकवाद को समूल जड़ से मिटाने के लिए बुश को
अपने सहयोग का प्रस्ताव बिना किसी शर्त के
दिया।अफगानिस्तान की पहाड़ियों की कन्दराओं में
छिपा लादेन नासूर की तरह जेहाद की छाया में पनप
रहा है और उसे अमेरिका को सौंपने के सभी
कूटनीतिज्ञ और राजनैतिक प्रयास विफल हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने
२८ सितम्बर को अमेरिका में हुए हमलों पर सक्रियता
दिखाते हुए आतंक विरोधी प्रस्ताव पारित कर दिया
है। लेकिन आतंकवाद समर्थक देशों में आतंकवाद पर
अंकुश को लेकर सवालिया निशान लगा हुआ है। प्रस्ताव
यदि वास्तविक स्वरूप में लागू हो तो आतंकवाद पर
काबू पाया जा सकता है।लेकिन आतंकवाद को समर्थन
देने वाले देशों की इस प्रस्ताव के प्रति मंशा साफ
नही लगती।
आतंकवाद के विरूद्व युद्ध में अमेरिका का निकट
सहयोगी पाकिस्तान अफगानिस्तान का इस्तेमाल काश्मीर
में हिंसा फैलाने वाले उग्रवादियों को प्रशिक्षण
देने में कर रहा है। यह सी आई ए के पूर्व अफसरों
की रिर्पोट में भी अंकित है। पाकिस्तान ने
अफगानिस्तान में आतंकवादी तन्त्र स्थापित कर दिया
है तथा लम्बे समय तक तालिबान को पाकिस्तानी मदद
मिलती रही है।
पाकिस्तान इससे जहाँ भारत को अस्थिर करके प्रभाव
घटाना चाहता है वहीं अपने बँटे हुए इस्लामिक समाज
को एक रखना चाहता है। अमेरिका जल्दी ही वर्तमान
संकट से उबर आयेगा । पाकिस्तान भी अफगानिस्तान में
अपनी पसंदीदा सरकार की स्थापना करना चाहेगा, जो
अमेरिका के लिये भी मित्रवत हो।
किन्तु हजारो अमेरिकी निर्दोष लोगों की आत्माएं तब
तक तड़पती रहेगी जब तक आतंकवाद की खूनी छाया
मानवता पर मडराती रहेगी। बुश को इसे अपनी नैतिक
जिम्मेदारी मानते हुए शुद्ध मानवता व
विश्वबन्धुत्व का प्रतिनिधि बनकर आतंकवाद को
समाप्त करने के लिए सतत सजग प्रहरी की तरह
प्रयत्नशील रहना होगा। तभी अमेरिकी जनता व विश्व
जनमानस के आत्मविश्वास को बनाए रखा जा सकता है और
सही अर्थों में यह मृतको और पीडितों के प्रति एक
सच्ची श्र्रद्धांजलि व समर्पण होगा।
— बृजेश कुमार शुक्ल |