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परिक्रमा कनाडा कमान

 टोरोंटो विश्वविद्यालय में हिन्दी भाषा एवं साहित्यक समारोह

सुमन कुमार घेई


श्री दिव्याभ मनचन्दा (भारतीय कौंसल जरनल) का स्वागत करते हुए श्री डेविड क्लैनफील्ड (प्रधानाचार्य, न्यू कॉलेज, टोरोंटो विश्वविद्यालय) और मध्य में श्री श्याम त्रिपाठी (हिन्दी शिक्षा कार्यक्रम के संयोजक एवं शिक्षक)

मार्च 01, 2003 — टोरोंटो विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाआई शिक्षा केन्द्र के तत्वावधान में एक "फंड रेज़िंग" संध्या का आयोजन किया गया। यह समारोह विश्वविद्यालय के न्यू कॉलेज के वेस्टमोर हॉल में था। इस समारोह का उद्देश्य टोरोंटो विश्वविद्यालय की हिन्दी कक्षा के लिए मुद्रा–अर्जन था।

हिन्दी की शिक्षा का कार्यक्रम, न्यू कॉलेज, टोरोंटो विश्वविद्यालय में 1999 में आरम्भ किया गया। विश्वविद्यालय में हिन्दी शिक्षण आरम्भ करने का श्रेय श्री श्याम त्रिपाठी को जाता है, जिसके लिए उन्होंने स्वयं विश्वविद्यालय से अनुरोध किया और अपनी सेवायें अर्पित कीं। पहिले तीन वर्ष तक तो विश्वविद्यालय ने इस कार्यक्रम की आर्थिक आपूर्ति की परन्तु अब इसके लिए किसी भी प्रकार की वितीय सहायता विश्वविद्यालय नहीं करता। इसीलिए अब टोरोंटो विश्वविद्यालय की हिन्दी शिक्षा की कक्षायें भारतीय समाज पर आर्थिक सहायता के लिए निर्भर हैं। इसी उद्देश्य से हिन्दी विभाग पिछले दो वर्षों से यह "फंड रेज़िंग" संध्या का आयोजन करता है। इस समारोह की सफलता मुख्य रूप से विद्यार्थियों पर निर्भर करती है, जो कि इसके हर आयाम का आयोजन करते हैं। श्री श्याम त्रिपाठी का प्रोत्साहन इन विद्यार्थियों की मौलिक शक्ति है। विद्यार्थी अपनी हिन्दी कक्षा को कितना प्रेम करते हैं, इसका अनुभव इस समारोह में जाने के बाद ही हुआ।

यह कार्यक्रम दोपहर दो बजे से लेकर लगभग सात बजे तक चला। इसमें छात्रों एवं छात्राओं ने विभिन्न मनोरंजक झलकियों का मंचन किया। सभी कलाकार मंच पर हिन्दी ही बोल रहे थे या बोलने का प्रयास कर रहे थे। कैनेडा में युवा वर्ग का हिन्दी बोलना ही एक विशेष बात है और अगर वह हिन्दी में कविताएँ, लघु नाटक या भाषण दें तो वह और भी अनुपम हो जाता है।

बायें से दायें श्री दिव्याभ मनचन्दा (भारतीय कौंसल जरनल), श्री डेविड क्लैनफील्ड (प्रधानाचार्य, न्यू कॉलेज, टोरोंटो विश्वविद्यालय), प्रो. नरेन्द्र वागले (दक्षिण एशियाआई शिक्षा विभागाध्यक्ष) और श्री श्याम त्रिपाठी ( हिन्दी शिक्षा कार्यक्रम के संयोजक एवं शिक्षक)

इस समारोह का सह–संचालन किया पूजा मदान एवं ज़फ़र ख़ान ने। श्री दिव्याभ मनचन्दा (भारत के कौंसलेट जरनल) को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। श्री कृष्ण खेत्रपाल (भारत के कौंसलर) और श्रीमती सुभाषिनी खेत्रपाल जो यहां के भारतीय साहित्यक समाज में अत्यन्त रूचि रखते हैं, भी श्रोताओं में उपस्थित थे। दर्शकों में हिन्दी साहित्य समाज के जाने पहचाने लोग भी उपस्थित थे। महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश, श्रीमती अरूणा भटनागर, श्री राज महेश्वरी और श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे भी श्रोताओं में थे।

संध्या का आरम्भ प्रो. नरेन्द्र वागले (दक्षिण एशियाआई शिक्षा विभागाध्यक्ष) के स्वागतीय भाषण से हुआ। फिर न्यू कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री डेविड क्लैनफील्ड और श्री श्याम त्रिपाठी (हिन्दी शिक्षा कार्यक्रम के संयोजक एवं शिक्षक) ने सबका धन्यवाद किया और कार्यक्रम आरम्भ हुआ। इस कार्यक्रम में डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ अनेक बार पढ़ी गयीं। "दिन जल्दी जल्दी ढलता है" कु. ऋद्धि और "मधुशाला" कु. मोहिना द्वारा प्रस्तुत की गयीं।

"पंजाबी गिद्दा" की धूम

मंच पर अनेक गीतों का प्रस्तुतीकरण हुआ। कई फैशन शो हुए। कई पत्र पढ़े गए। हॉल के एक कोने में रैफल के टिकट बिक रहे थे। टोरोंटो क्षेत्र के विभिन्न भारतीय व्यवसायिक संस्थाओं ने पुरस्कार के लिए विविध वस्तुएं दीं थीं; जैसे कि साड़ियाँ, सूट, रैस्ट्रोराँ के कूपन और सैटेलाईट डिश इत्यादि। और भी कई पुरस्कार थे जो कार्यक्रम के दौरान दिए जा रहे थे।

विद्यार्थियों द्वारा मंचित की गई लघु नाटिका "महाभारत" विशेषकर सराही गई। दर्शकों के विशेष अनुरोध पर महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश ने अपनी पुस्तक "रवि प्रिया" से "आओ हम सब हिन्दी बोलें " सुनाई तो श्रोता वाह वाह कर उठे। आदेश जी ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन को कविता के रूप में श्रद्धांजलि के पुष्प अर्पित किए। विद्यार्थियों द्वारा किया गया "कवि सम्मेलन" जिसमें सूरदास और कबीर की रचनाएँ सुनाई गयीं भी सराहा गया। कार्यक्रम का अन्त अल्पाहार से हुआ।

सभी उपस्थित दर्शकों ने छात्रों और छात्राओं को सराहा और श्री श्याम त्रिपाठी को धन्यवाद दिया जिनके श्रम से विश्वविद्यालय में हिन्दी की कक्षाओं की नींव रखी गई है। विद्यार्थी भी अपने शिक्षक के प्रति अनुग्रहित थे जो उन्हें न केवल हिन्दी भाषा ही सिखाते हैं अपितु कक्षा में, हर अवसर पर भारतीय संस्कृति की सूक्ष्मताओं से भी परिचित कराते हैं। समारोह के अन्त में सम्मिलित विद्यार्थियों के चेहरों से जो उल्लास और संतुष्टि झलक रही थी; उससे स्पष्ट था कि इस युवा वर्ग के हृदय में हिन्दी भाषा की ज्योति प्रज्वलित हो चुकी है और इस पर न केवल इन्हें ही अपितु समस्त भारतीय समाज को गर्व है।

 
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