२४ मई, २००४ मिसीसागा, मिसीसागा व टोरोंटो
क्षेत्र की लोकप्रिय कवयित्री श्रीमती सरोज
भटनागर के कविता संग्रह “अभ्युदय” का विमोचन
एक भव्य समारोह में हुआ। इस समारोह में
आमन्त्रित अतिथियों में दक्षिणी ओन्टेरियो के
अनेक कवि, साहित्यकार व संवाददाता उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि श्री कृष्ण खेतरपाल (उप कौंसल
जरनल, टोरोंटो) थे। समारोह की अध्यक्षता
महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश ने की और
सह–अध्यक्ष के रूप में डा. भारतेन्दु
श्रीवास्तव थे। संचालन श्री श्याम
त्रिपाठी(सम्पादक व प्रकाशक, “हिन्दी चेतना”)
और कवि श्री भगवत शरण श्रीवास्तव (कैम्ब्रिज,
ओन्टेरियो) ने किया।
विमोचन के कार्यक्रम को आरम्भ करते हुए,
उपस्थित अतिथियों का स्वागत श्री राजीव
भटनागर, श्रीमती सारिका भटनागर और डा. कैलाश
चन्द्र भटनागर ने किया। मुख्य अतिथि श्री
कृष्ण खेतरपाल जी ने दीप प्रज्वलित किया और
श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे के मधुर स्वर में
सरस्वती वन्दना हुई। माँ शारदा को माल्यार्पण
श्रीमती राज भटनागर ने किया। पुष्पांजलि श्री
सुमन कुमार घई(सम्पादक “साहित्य कुंज”)
और श्री जसवंत सिंह धांजल (ए टी एन, टी.वी) ने
अर्पित की और मुख्य कार्यक्रम आरम्भ हुआ।
महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश जी ने कवितामय
अध्यक्षीय वक्तव्य में अवसर की महता व
कवयित्री श्रीमती सरोज भटनागर के प्रति अपनी
भावनाएं प्रकट कीं। उन्होंने अपने काव्य संकलन
“शरद शतम्” से काव्य–पाठ के बाद कविता संग्रह
“अभ्युदय” का विमोचन किया।
डा.भारतेन्दु श्रीवास्तव ने 'अभ्युदय' के विषय
में अपने विचार प्रकट करते हुए कविताओं में
सरलता में व्यक्त किये गए गहन विचारों की
प्रशंसा की जिसमें 'बद्री विशाल' शीर्षक कविता
की विशेष रूप से चर्चा की। डा. शैलजा सक्सेना
ने विधिवत पुस्तक की समीक्षा करते हुए
कवियत्री की प्रतिभा की ओर श्रोताओं का ध्यान
आकर्षित किया। उन्होंने संकलन की कई कविताओं
के सन्दर्भ में अपनी समीक्षा प्रस्तुत की।
अगले चरण में श्रीमती सरोज भटनागर ने उपस्थित
विद्वानों का स्वागत किया और धन्यवाद दिया।
अपने पति डा. कैलाश चन्द्र भटनागर के प्रति
कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए उन्होंने कि उनसे
प्राप्त प्रोत्साहन के कारण ही वे काव्य
रचनाओं को इस पुस्तक का रूप दे पायी हैं।
उन्होंने संकलन से कुछ कविताएँ व क्षणिकाएँ
सुनाईं।
उप–कौंसल (भारतीय कौंसलावास, टोरोंटो) श्री
कृष्ण खेतरपाल ने कौंसलावास द्वारा हिन्दी
प्रोत्साहन के लिए किए जाने वाले यत्नों की
चर्चा की। उन्होंने यह विचार भी प्रकट किया कि
अगर सभी हिन्दी की संस्थाएँ एक छत्र के नीचे
एकत्रित हो सकें तो कौंसलावास ऐसी संस्था की
बहुत सहायता कर सकता है।
इसके बाद संध्या का दूसरा भाग आरम्भ हुआ जो
कवि सम्मेलन था। इसका संचालन श्री श्याम
त्रिपाठी (सम्पादक एवं प्रकाशक, हिन्दी चेतना)
और श्री भगवत शरण श्रीवास्तव कर रहे थे। डा.
देवेन्द्र मिश्र (अध्यक्ष, हिन्दी साहित्य
सभा) ने अपनी शुभकामनाएँ प्रस्तुत करने के
पश्चात काव्यपाठ किया। श्रीमती अरूणा
भटनागर (भूतपूर्व अध्यक्ष, हिन्दी साहित्य
सभा) ने भी अपनी शुभकामनाएँ दीं। श्रीमती
स्नेह खकुर (सम्पादक व प्रकाशक, वसुधा) ने
अभ्युदय के विषय पर कविता पाठ में शुभकामना दी
और 'नैवेद्य का दीप' गीत सुनाया। सरन घई
(सम्पादक व प्रकाशक, नमस्ते कैनेडा समाचार
पत्र) ने भी अपनी शुभकामनाएँ दीं और कविता पाठ
किया। इसके पश्चात सुमन कुमार
घई(सम्पादक अन्तरजाल पत्रिका – साहित्य कुंज,
सह–सम्पादक, हिन्दी चेतना) ने शुभकामना देते
हुए अभ्युदय को टाईप करते हुए काव्य के रस में
डूब जाने को फिर से स्मरण किया और अपनी कविता
'मुखरित मूक आभास' का पाठा किया। श्री भगवत
शरण श्रीवास्तव और श्री श्याम त्रिपाठी
(सम्पादक एवं प्रकाशक, हिन्दी चेतना) ने भी
शुभकामनायें दीं और काव्य पाठ किया। अन्य
काव्य पाठ करने वालों में थे सर्वश्री
सुरेन्द्र पाठक, जगदीश चन्द्र शारदा शास्त्री,
डा. ब्रजराज किशोर कश्यप, आचार्य संदीप कुमार
त्यागी, विजय विक्रान्त, राज महेश्वरी और
कवयित्रियां थीं श्रीमती डा. शैलजा सक्सेना,
भुवनेश्वरी पांडे, इन्द्रा वर्मा, प्रमिला
भार्गव और राज कश्यप। इन सब में से डा. शैलजा
सक्सेना की कविता 'माँ बेटी हूं' बहुत सराही
गई।
संध्या के अन्तिम भाग में डा. भारतेन्दु
श्रीवास्तव ने अपनी रचनाएँ “प्रणय रूप” और
“सुरभित कण” सुनाईं। महाकवि प्रो. हरिशंकर
आदेश ने अपने महाकाव्य “अनुराग” से काव्य पाठ
किया। अन्त में महाकवि ने लेखकों को
प्रोत्साहन देते हुए रचनाओं को पुस्तक रूप में
प्रकाशन का महत्व समझाते हुए कहा कि ऐसा करने
से रचनाओं का पंजीकरण हो जाता है और यह
ऐतिहासिक कार्य भी है क्योंकि पुस्तक के रूप
में प्रकाशित रचनाएँ सदैव जीवित रहती हैं।
अन्त में विनम्रता की मूर्ति डा. कैलाश चन्द्र
भटनागर जो कि इस पुस्तक के प्रकाशन के कर्णधार
थे, ने सभी उपस्थित अतिथियों का धन्यवाद
किया। विशिष्ठ अतिथियों को श्रीमती सारिका
भटनागर द्वारा फूल व अन्य भेंटें दी गयीं।
श्री सुमन कुमार घई को 'अभ्युदय' को पुस्तक का
रूप देने में दिये सहयोग के उपलक्ष्य में एक
स्मरण फलक भेंट किया गया। तत्पश्चात भोजन के
लिए आमन्त्रण दिया गया। सहभोज के साथ ही यह
महत्वपूर्ण संध्या समाप्त हुई।
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