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रंगमंच



रंगभूमि पर रौशनी के हस्ताक्षर
- कीर्ति शर्मा


नाटकों के रंग शिल्प में संगीत, लय एवं प्रकाश योजना का बहुत महत्व हैं ये तत्व नाटकों के प्रभाव में सहयोग देते हैं इन्हें हिन्दी नाटकों की विकास यात्रा में बहुत पहले से प्रयोग में लाया जा रहा है। नाटककार आज नाटक के संपूर्ण कलेवर के अनुरूप संगीत योजना कर रहे हैं। आधुनिक नाटकों में यही संगीत योजना सफल हो सकती है। संगीत लय का प्रयोग नाटक की सफलता और लोकप्रियता का प्रमुख तत्व बन गया है। इसी प्रकार नाटकों में प्रकाश योजना नई अनुभूतियों का आभास कराने में असमर्थ हो गई है। इसके द्वारा वातावरण निर्माण, अभिनय की स्वाभाविकता स्पष्ट हो जाती है। आधुनिक परिवेश और साहित्य दोनों में विचारधाराएँ अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं अतः व्यक्ति के परिवर्तित विचार तथा चिंतन को नाटक में मूलभाव तथा अर्थ के माध्यम से व्यक्त किया जा रहा है। यह अभिव्यक्ति नाटकों में संगीत एवं प्रकाश योजना द्वारा हो रही है।

भारतेन्दु तथा प्रसाद ने नाटकों में संगीत योजना की अनिवार्यता को बनाये रखा। उन्होंने संगीत के अंतर्गत शास्त्रीय दृष्टिकोण को महत्ता देने की परंपरा बनायी। नाटक में गीत-संगीत द्वारा संवादों की योजना की जाती थी। इनके नाटकों में अभिनय की सरसता, भावों की अभिव्यक्ति, वातावरण की सजीवता तथा पटाक्षेप के समय संगीत-योजना का प्रयोग किया जाता था। प्रसादोत्तर काल में नाटकों में संगीत योजना के क्रियान्वयन में परिवर्तन हुआ।

हरिकृष्ण प्रेमी, सेठ गोविन्ददास इत्यादि नाटककारों की कृतियों में संगीत योजना वातावरण निर्माण से जुड़ गयी। नाटक के लेखन में गीतों को स्थान न देकर नाटक के बाहर चरित्रों के भाव निर्माण तथा मंचन के समय नेपथ्य में संगीत का प्रयोग किया जाने लगा। आधुनिक अधिकांश नाटकों में संगीत का प्रयोग नेपथ्य में किया जाता है। संगीत योजना की शैली वातावरण निर्माण में सहायक हुई है। आधुनिक नाटककार स्वयं ही संगीत और संवादों की लय का संकेत कर देते हैं इस दृष्टि से आधे-अधूरे उल्लेखनीय है। एक खण्डहर की आत्मा को व्यक्त करना हल्का संगीत, लड़के का कटी तस्वीर को बड़े-बड़े टुकड़ों में कतरना, अँधेरे के साथ-साथ संगीत का रुकना और कैंची की चक-चक सुनायी देना। हल्का मातमी संगीत उभरते ही लगभग अँधेरे में लड़के की बाँह थामे एक पुरुष की धुँधली आकृति अंदर आती दिखायी पड़ती है। उन दोनों के आगे बढ़ने के साथ संगीत अधिक स्पष्ट और अँधेरा अधिक गहरा होता जाता है। मोहन राकेश के नाटक आधे अधूरे की यह संगीत योजना घर के विघटन, पात्रों की विवशता तथा संत्रास्य के भाव स्पष्ट करती है।

‘अंधा युग’ (धर्मवीर भारती) तथा ‘अग्निलीक’ (भारत भूषण अग्रवाल) नाटक संगीत और लय की महत्ता के प्रमाण हैं। इन काव्य नाटकों में संवादों की लय और संगीत पक्ष का योगदान है। ये वस्तुतः संगीत नाटक ही हैं। अंधायुग में प्रत्येक अंक में कथा गायन की योजना है इसके अतिरिक्त ‘वन में सियारों का रुदन, पशुओं के भयानक स्वर बढ़ते जाते हैं सहसा कर्कश कोवे का स्वर फिर तेज होता है... भयानक कोलाहल चीत्कार इत्यादि गीति-संवादों से वातावरण की क्रूरता का आभास मिलता है। प्राचीन समय के नाटकों में संगीत का अर्थ तथा प्रयोग व्यापक था क्योंकि नाटक और अभिनय संगीत के अंतर्गत आते थे। आधुनिक नाटकों में संगीत ओर लय रंगशिल्प का एक अंग बनकर आया है। नाटककार नाटक के पात्रों की मनःस्थिति और वातावरण के अनुसार संगीत का आयोजन नाटक के बीच भी करता है। इसी तरह विजय तेंडुलकर के ‘घासीराम कोतवाल’, गिरीश कर्नाड के ‘तुगलक’ तथा सतीश आलेकर के ‘महानिर्वाण’ नाटक का मुआयना किया जा सकता है।

हिन्दी नाटकों के रंगशिल्प में प्रकाश योजना का महत्व एवं प्रयोग प्राचीन समय से ही है। भारतेन्दु के नाटक भारत जननी तथा भारत दुर्दशा में प्रकाश योजना संबंधी पर्याप्त संकेत हैं विभिन्न रंगों की प्रकाश ज्योति तथा दीपों के प्रयोग से वातावरण सृष्टि के संकेत दिये हैं। प्रसादोत्तर काल में रंगशिल्प के अंतर्गत नये प्रयोगों का प्रचलन बढ़ गया था। डॉ. लक्ष्मीनारायण मिश्र, अश्क, सेठ गोविन्ददास, उदयशंकर भट्ट इत्यादि नाटककारों ने प्रतीकात्मक रूप में वातावरण की सृष्टि के लिए प्रकाश योजना का प्रयोग किया।

आधुनिक युग में नई तकनीक के विकास के कारण रंगमंच पर प्रकाश योजना की व्यवस्था का विकास हुआ। विभिन्न तत्वों के साथ प्रकाश योजना का संतुलित प्रयोग रंगमंच पर थोड़े समय में ज्यादा प्रभाव डालने में सफल हुआ। आधुनिक नाटकों में जीवन के रूप तथा समस्याओं का चित्रण किया जा रहा है इस दृष्टि से नाटक के मुख्य कथ्य को प्रमुखता देते हुए नाटककार प्रकाश योजना के पूर्ण संकेत रंगमंचीय नाटकों में देते हैं। रंगमंच पर प्रकाश योजना के प्रयोग के विभिन्न उद्देश्य हो सकते हैं जैसे वातावरण निर्माण, नाटकीयता के प्रभाव, मंचन के समय वेशभूषा, सामग्री तथा घटनाओं के स्पष्टीकरण, नाटक के मूल कथ्य की अभिव्यक्ति, पात्रों की भाव दशा के प्रदर्शन तथा दृश्यबंध के एक स्थल पर प्रकाश डालकर पर्दा उठाने गिराने की समस्या का निदान इत्यादि।

‘हानुश’ (भीष्म साहनी) में की गयी प्रकाश योजना पात्र हानुश की गतिविधियों के उद्देश्य को सार्थक करती है। देर तक प्रकाश वृत्त में हानुश की झुकी पीठ नजर आती रहती है। दो एक बार वह पसीना पोंछता है, फिर काम में खो जाता है। उसके पास खड़ा बूढ़ा लोहार उसे औजार देता रहता है। फेड आउट होता है और फेड ऑन होने पर फिर से रोशनी हानुश की पीठ पर पड़ती दिखाई देती है।

‘तुगलक’ (गिरीश कर्नाड) की प्रकाश योजना तुगलक के चरित्र की क्रूरता तथा आतंकपूर्ण वातावरण को स्पष्ट करती है। ‘‘तुगलक के चेहरे पर तेज रोशनी बनी रहती है। मानो वह मंच पर होने वाली घटनाओं से बेखबर अपनी नमाज में तल्लीन है। नमाज खत्म होने पर तुगलक शहाबुद्दीन की हत्या करता है। आगे बढ़कर मंच के मध्य में चौकी पर आ जाता है और घोषणा करता है- ‘‘सारी दिल्ली वीरान बन जाय’’। इन पंक्तियों के समय उसके पीछे लाल गगनिका है, आकाशी गलियारे में मद्धिम क्रास लाइट है जो दृश्य को श्रोताओं की संवेदना तक पहुँचा देते हैं।

अंधायुग (धर्मवीर भारती) की प्रकाश योजना पात्रों के भाव एवं दृश्य को स्वाभाविक बनाती है। ‘‘धीरे-धीरे स्टेज पर अँधेरा होने लगता है। केवल अश्वत्थामा के टहलते हुए आकार का भास होता है। एक प्रकाश अश्वत्थामा पर भी पड़ता है, जो स्तब्ध कौतुहल से इस घटना को देख रहा है। ....बिल्कुल अँधेरा, फिर प्रकाश।...प्रकाश होता है, अश्वत्थामा रक्त सना कटा पंख हाथ में लिये उछल रहा है। ...वृद्ध याचक प्रवेश करता है। स्टेज पर मकड़ी के जाले जैसी प्रकाश रेखाएँ और कुछ कुछ प्रेतलोक सा वातावरण दृश्य को अद्भुत बनाते हैं।

खामोश अदालत जारी है (विजय तेंडुलकर) में न्यायालय के दृश्य के अंतर्गत कुमारी बेणारे को सजा सुनाने के कुछ क्षण पूर्व कुछ कहने के लिये समय दिया जाता है इस समय बेणारे की बेजान एवं अर्द्धमृत स्थिति का आभास बदलती हुयी प्रकाश योजना से ही होता है।

आधे अधूरे रंगशिल्प के प्रयोग की दृष्टि से उत्कृष्ट नाटक है। ‘‘प्रकाश खण्डित होकर स्त्री और बड़ी लड़की तक सीमित रह जाता है... हल्का मातमी संगीत उभरता है, जिसके साथ उन दोनों पर भी प्रकाश मद्धिम पड़ने लगता है। उन दोनों के आगे बढ़ने के साथ संगीत अधिक स्पष्ट ओर अँधेरा अधिक गहरा होता जाता है। ...प्रकाश आकृतियों पर धुंधला कर कमरे के अलग-अलग कोनों में सिमटता विलीन होता चला जाता है। यह प्रकाश योजना विघटन की भयानकता एवं पात्रों की विवशता को स्पष्ट करती है।

कर्फ्यू (डॉ. लाल) में की गयी प्रकाश योजना दर्शक वर्ग को बाँधे रखने तथा कुछ सोचने के लिए आकर्षित करती है। इसकी प्रकाश योजना नाटक के वक्तव्य, दृश्य के भाव, घटना की वक्रता तथा दृश्यता को उभारने में सफल हुयी है।

गिनीपिंग (मोहित चट्टोपाध्याय) इस दृष्टि से उल्लेखनीय नाटक है। इसमें नाटक के आगे बढ़ने एवं अभिनय के गतिशील होने के अनुसार, प्रकाश निर्धारित किया गया था। नाटक के अंतिम दृश्य में सिंहासन के चारों ओर फैले प्रकाश को कम करते हुए केवल एक सफेद प्रकाश छोड़ा जाता है जो धीरे-धीरे लाल होता जाता है। गिनीपिंग में की गयी यह प्रकाश योजना अपूर्व दृश्य उपस्थित करती है।

बाकी इतिहास (बादल सरकार) की प्रकाश योजना रंगशिल्प में नया प्रयोग है। अंतिम दृश्य में मंच पर फैले अँधेरे में आत्महत्या करने वाला पात्र दीवार के सामने खड़ा है। नीले प्रकाश में उसकी छाया दिखाई देती है। जब पात्र प्रकाश के मध्य आते हैं तभी प्रकाश की मौजूदगी का अहसास होता है। अन्यथा प्रकाश केवल आसमान लगता है। इस प्रकार की प्रकाश योजना वास्तविक जगत की सच्चाई तथा परलोक की कल्पना को साकार करती है।

२८ अप्रैल २०१४

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