मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


व्यक्तित्व

अभिव्यक्ति में श्री पद्रे की रचनाएँ

सामयिकी में
धरती की गोद में पानी

 

 

श्री पद्रे

श्रीपति भट कडाकोलि कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के सिरसा गाँव के किसान हैं। वे स्वयं को व्यवसायिक रूप से किसान और दिल तथा जुनून से पत्रकार कहते हैं, असल में श्री पद्रे इन दोनों का समुचित मिश्रण हैं। वे कृषि पत्रकारिता के गुरू हैं, लेकिन इस कृषि पत्रकारिता को वे “स्वयंसेवी पत्रकारिता” कहते हैं। भारत में कृषि क्षेत्र में भी तेजी से एक नई प्रकार की अर्थव्यवस्था उभर रही है जो नई सोच, नव-उद्यमिता, आविष्कारशीलता के साथ परम्परागत भी है, और श्री पद्रे इसी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं।

श्री पद्रे, कर्नाटक की सीमा पर बसे केरल के एक गाँव वाणीनगर के मूल निवासी हैं। सन् १९८५ में जब सुपारी के भाव एकदम गिर गये थे तब परेशान किसानों ने ऑल इंडिया सुपारी उत्पादक संघ बनाकर कई विशेषज्ञों को उनकी समस्याओं का हल खोजने हेतु प्रेरित और अनुबन्धित किया। पत्रकार की हैसियत से इस कार्यक्रम में शामिल उन्हें "एरिका न्यूज़" (सुपारी समाचार) नामक एक छोटा समाचार पत्र निकालने का सुझाव आया और पद्रे ने इसे छापने का संकल्प लिया। इस समाचार पत्र के प्रारंभिक अनुभवों में उन्हें प्रतीत हुआ कि गरीब किसानों के पास सही जानकारी का अभाव है। अभी तक खेती के अधिकतर लेख, समाचार-पत्र और पुस्तकें नौकरशाहों या वैज्ञानिकों द्वारा लिखे जाते थे, जिन्हें ज़मीनी ज्ञान बिलकुल नहीं था। इसलिये श्रीपद्रे ने एक पत्रिका “किसानों द्वारा, किसानों के लिये” निकालने का निर्णय लिया। हालांकि सुपारी उत्पादक संघ इस पहल को लेकर सशंकित थी, लेकिन सब राजी हुए और “आदिके पत्रिके” नाम से किसान पत्रिका का पहला अंक नवम्बर १९८८ को प्रकाशित होकर आया।

अब श्रीपद्रे को अन्य अनुभवी किसानों को मनाना था तथा उनके नये विचारों, देसी आविष्कारों और अनुभवों को लिखने हेतु प्रेरित करना था। पद्रे ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनका “स्थानीय ज्ञान” बहुत अमूल्य है, लेखन संबंधी शिक्षा के लिये उन्होंने किसानों के लिये एक कार्यशाला आयोजित की जिसमें उन्हें “रिपोर्ट लिखना”
सिखाया गया। धीरे-धीरे किसान अपने अनुभव, अन्य खेतों की रिपोर्टिंग, इंटरव्यू आदि भी लिखने लगे।

वर्तमान में “अदिके पत्रिके” की ७५,००० प्रतियाँ प्रकाशित होती हैं जिसकी कीमत सिर्फ़ ७ रुपये प्रति पत्रिका रखी गई है, इसे अब खेती से सम्बन्धित विज्ञापन भी मिलने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह पत्रिका अब सुपारी किसानों के लिये एक सन्दर्भ स्रोत बन चुकी है।

श्रीपद्रे सिर्फ़ यहीं नहीं रुके हैं, अब उन्होंने अपना ध्यान कर्नाटक और केरल की ज़मीन पर जल संरक्षण की ओर देना शुरु किया है। जल संरक्षण और रेनवाटर हार्वेस्टिंग क्षेत्र में विश्व की आधुनिकतम तकनीक का अध्ययन करके वे किसानों को इसके बारे में बताते और शिक्षित करते हैं ताकि उनके खेतों का भूजल स्तर ऊँचा उठाया जा सके। वर्षाजल पर आधारित कृषि और जल संरक्षण पर उन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं और कर्नाटक के कन्नड़ दैनिक “विजय कर्नाटका” में वे “पानी” विषय पर एक साप्ताहिक स्तंभ भी लिखते हैं। उन्होंने एक समूह "जलकूटम" भी गठित किया है जिसमें मिट्टी और जल के संरक्षण और वर्षाजल पर आधारित कृषि की तकनीक पर चर्चाएं आयोजित की जाती हैं। केरल के कासरगौड़ जिले में श्री पद्रे ने काजू के पेड़ों पर एंडोसल्फ़ान नामक रसायन नहीं छिड़कने सम्बन्धी अभियान को सफ़लतापूर्वक चलाया और किसानों को इसके खतरों तथा उसकी वजह से फ़ैल रहे जल प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के सम्बन्ध में समझाया, तथा इसका छिड़काव रुकवाने में सफ़लता हासिल की। इसी वजह से एण्डोसल्फ़ान के दुष्प्रभावों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना गया।

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।