कहानी
हंसा जाई अकेला
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मार्कण्डेय
मार्कण्डेय (५ मई, १९३० - १७
मार्च, २०१०) हिन्दी के जाने-माने कहानीकार थे। वे 'नई
कहानी' आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनका जन्म उत्तर
प्रदेश में जौनपुर जिले के बराई गांव में हुआ था। इनकी
कहानियाँ आज के गाँव के पृष्ठभूमि तथा समस्यायों के
विश्लेषण की कहानियाँ हैं। इनकी भाषा में उत्तर प्रदेश के
गाँवों की बोलियों की अधिकता होती है, जिससे कहानी में
यथार्थ पृष्ठभूमि का निरुपण होता है।
कथाकार और संपादक होने के साथ-साथ वह समीक्षक भी थे।
हिन्दी की जनवादी साहित्य परंपरा के निर्माण में
मार्कण्डेय जी की अग्रणी भूमिका रही है। मार्कण्डेयजी
सिर्फ साहित्यकार ही नहीं थे बल्कि साहित्य और लेखकों के
संगठनकर्ता भी थे। साहित्य की प्रगतिशील परंपरा में
स्वतंत्र भारत में जिन लेखकों ने साहित्यकारों के संगठन
निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा की थी उनमें मार्कण्डेयजी
का योगदान सबसे ज्यादा था।
१९६५ में उन्होंने माया के साहित्य महाविशेषांक का संपादन
किया था। कई महत्त्वपूर्ण कहानीकार इसके बाद सामने आए।
१९६९ में उन्होंने साहित्यिक पत्रिका कथा का संपादन शुरू
किया। उनके स्वर्गवासी होने तक इसके १४ अंक प्रकाशित हो
चुके थे। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस पत्रिका
को मील का पत्थर माना जाता है।
उन्होंने जीवनभर कोई नौकरी नहीं की। अग्निबीज, सेमल के फूल
(उपन्यास), पान फूल, महुवे का पेड़, हंसा जाए अकेला, सहज
और शुभ, भूदान, माही, बीच के लोग और हलयोग (कहानी संग्रह),
सपने तुम्हारे थे (कविता संग्रह), कहानी की बात
(आलोचनात्मक कृति), पत्थर और परछाइयां (एकांकी संग्रह) आदि
उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं।
उनकी कहानियों का अंग्रेजी, रुसी, चीनी, जापानी, जर्मनी
आदि में अनुवाद हो चुका है। उनकी रचनाओं पर बीस से अधिक
शोध हुए हैं।
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