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काका हाथरसी
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किया तो मरना क्या
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काका
हाथरसी
जन्म : 18 सितम्बर 1906 में हाथरस में।
नाम : प्राभुनाथ गर्ग
काका का व्यक्तित्व उनका स्वयं का निर्मित था। अपने साहित्यिक
जीवन के सुर्दीघ और सुदृढ भवन के निमार्ण के लिये एक एक
सामाग्री उन्होने स्वयं जुटाई।
काका एक हास्य कवि के साथ साथ अच्छे
चित्रकार एवं बांसुरी वादक भी थे।उन्होंने संगीत विशारद, संगीत
सागर और राग कोष नाम से तीन संगीत ग्रंथों की रचना की तथा
हाथरस से संगीत नाम की एक पत्रिका का कुशल संपादन व प्रकाशन भी
किया।
काका की प्रथम कविता
गुलदस्ता मासिक के मुख पृष्ठ पर 1933 में प्रकाशित हुयी।और फिर
हास्य व्यंग के आकाश में आपका सितारा पूर्ण प्रकाश के साथ
प्रकाशित हुआ। उन्होने छिछली शिष्टता एवं मान्यता कृत्रिमता
प्रर्दशनवृत्ति समाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक आर्थिक राजनैतिक
क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार अतिजार रूढिवादिता पर डटकर व्यंग वाणों का
प्रहार किया।
प्रमुख कृतियां :
दुल्लती, काका के कारतूस,
काकदूत, काका की फुलझडियां, काका के कहकहे, हंसगुल्ले,
काका के प्रहसन आदि।
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