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व्यक्तित्व


अभिव्यक्ति में चंद्रकिरण सौनरेक्सा
की रचनाएँ

कहानी
हिरनी

 

 चंद्रकिरण सौनरेक्सा

 

जन्म १९ अक्तूबर, १९२० को नौशहरा छावनी, पेशावर में।
शिक्षा- यद्यपि उनकी लौकिक शिक्षा बहुत अधिक नहीं हो पायी पर मुक्त परिवेश मिलने के कारण उन्होंने एक व्यापक अनुभव अवश्य पाया था। उन्होंने घर बैठे ही ‘साहित्य रत्न’ की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा निजी परिश्रम से बंगला, गुजराती, गुरुमुखी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएँ सीखीं और इनमें निष्णात हो गयीं।

कार्यक्षेत्र-
चंद्रकिरण जी ने छोटी आयु में साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। ११ वर्ष की अवस्था से ही उनकी कहानियां प्रकाशित होने लगीं थीं। प्रारंभ में वे ‘छाया’ और ‘ज्योत्सना’ उपनाम से लिखतीं थीं। आगे चलकर तो धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, चाँद, माया आदि में भी उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। उन्होंने १९५६ से १९७९ तक वरिष्ठ लेखक के रूप में आकाशवाणी, लखनऊ में काम किया। इस दौरान उन्होंने आकाशवाणी की विविध विधाओं नाटक, वार्ता, फीचर, नाटक, कविता, कहानी, परिचर्चा, नाट्य रूपांतरण आदि पर आधिकारिक रूप से अपनी लेखनी चलाई। बाल साहित्य भी उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा।

प्रकाशित कृतियाँ
कहानी संग्रह- आदमखोर, जवान मिट्टी
पटकथा- गुमराह
आत्मकथा- पिंजड़े की मैना
अन्य- चंदन चाँदनी, वंचिता, कहीं से कहीं नहीं, और दिया जलता रहे
उनकी कृति ‘दिया जलता रहा’ का धारावाहिक प्रसारण बहुत लोकप्रिय हुआ। उनकी कहानियों का भारतीय भाषाओं के साथ ही चेक, रूसी, अंग्रेजी तथा हंगेरियन भाषाओं में भी अनुवाद हुए।

पुरस्कार व सम्मान-
अपनी रचनाओं के लिए उन्हें अनेक सम्मान मिले। इनमें सेक्सरिया पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, सुभद्राकुमारी चौहान स्वर्ण पदक तथा हिन्दी अकादमी की ओर से सर्वश्रेष्ठ हिन्दी लेखिका सम्मान प्रमुख हैं।

१७ मई, २००९ को ८९ वर्ष की आयु में लखनऊ में उनका देहांत हुआ।

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