| 
						 तैयब 
						मेहता २६ जुलाई 
						१९२५, कपडवंज, खेड़ा, गुजरात में जन्मे तैयब मेहता 
						स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी के उन चित्रकारों में से थे 
						जिन्होंने राष्ट्रवादी बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट की परंपरा से 
						हटकर एक आधुनिक विधा
						 में 
						कार्य करने की पहल की। उनका पालन-पोषण मुंबई के क्रावफोर्ड 
						मार्केट में दावूदी बोहरा समुदाय में हुआ था। उन्होंने 
						प्रारंभ में कुछ समय के लिए मुंबई स्थित एक नामी फिल्म 
						स्टूडियो ‘फेमस स्टूडियोज’ के लैब में फिल्म एडिटर का 
						कार्य किया। बाद में उन्होंने मुंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ 
						आर्ट्स में दाखिला लिया और सन १९५२ में यहाँ से डिप्लोमा 
						ग्रहण किया। इसके बाद वे ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स 
						ग्रुप’ के सदस्य बन गए। यह ग्रुप पश्चिम के आधुनिकतावादी 
						शैली से प्रभावित था और तैयब के साथ-साथ उसमें एफ.एन. 
						सौज़ा, एस.एच. रजा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी 
						शामिल थे। 
 सन १९५९ में तैयब लन्दन चले गए और १९६४ तक वहीं रहकर कार्य 
						किया। सन १९६८ में जब उन्हें जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप मिल 
						गयी तब वे न्यू यॉर्क चले गए। लन्दन प्रवास के दौरान उनकी 
						कला फ़्रन्कोइस बेकन जैसे कलाकारों से प्रभावित हुई जबकि 
						न्यू यॉर्क प्रवास के दौरान उनकी चित्रकारी में 
						अतिसूक्ष्मवाद देखने को मिला। उन्होंने बॉम्बे के बांद्रा 
						स्थित बूचड़खाने में ‘कुदाल’ नाम की एक शार्ट फिल्म भी बनाई 
						जिसे सन १९७० में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला। सन 
						१९८४-८५ के दौरान वे शान्तिनिकेतन में भी रहे जिसके बाद 
						उनकी चित्रकारी में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला। इस 
						दौरान उनके चित्रों की विषय-वस्तु ‘बंधे हुए सांड’ और 
						‘रिक्शापुलर्स’ थे। इसके बाद उन्होंने १९७० के दशक में 
						‘डायगनल’ शृंखला के चित्र बनाये। उन्होंने अंग विच्छेद 
						वाली और गिरती आकृतियों का प्रयोग ७० के दशक में शुरू किया 
						जो कला की दुनिया को उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
 
 उनके जीवन के अंतिम दशक में उनकी बनायीं हुई कलाकृतियों ने 
						कीमतों के कीर्तिमान बनाए। उनकी मृत्यु के बाद बिका उनका 
						बनाया गया एक चित्र दिसम्बर २०१४ में १७ करोड़ रुपये से 
						ज्यादा कीमत पर बेचा गया। इससे पहले भी मेहता की एक 
						कलाकृति ‘गर्ल इन लव’ लगभग ४.५ करोड़ रुपये में बिकी थी। सन 
						२००२ में उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग १.५ करोड़ 
						रुपये में बिकी थी जो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर उस समय तक की 
						सबसे महँगी भारतीय पेंटिंग थी। आज भारतीय कला में सारी 
						दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय 
						तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टी जैसी कलादीर्घा ने 
						अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो 
						भारतीय कला के लिए ये एक बड़ी बात थी। समकालीन भारतीय कला 
						इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने 
						कीमतों में बिका।
 
 
  उन्हें 
						वर्ष १९६८ में ‘जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप’, और दिल्ली में 
						स्वर्ण पदक, वर्ष १९७४ में फ्रांस में आयोजित ‘इंटरनेशनल 
						फेस्टिवल ऑफ़ पेंटिंग’ में स्वर्ण पदक, वर्ष १९८८ में मध्य 
						प्रदेश सरकार द्वारा ‘कालिदास सम्मान’, वर्ष २००५ में कला, 
						संस्कृति और शिक्षा के लिए दयावती मोदी फाउंडेशन पुरस्कार, 
						वर्ष २००७ में भारत सरकार का पद्म भूषण सम्मान प्रदान किया 
						गया। 
 तैयब मेहता के करीबी कहते हैं कि वे अपनी कला के प्रति 
						इतने समर्पित थे कि पूर्ण रूप से संतुष्ट न होने तक अपनी 
						पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में भेजने से कतराते थे। उनके 
						अन्दर सृजनात्मकता की एक जिद थी जिसकी ख़ातिर उन्होंने कई 
						कैनवस नष्ट कर दिए। वे मानते थे कि किसी भी कला को 
						सार्वजनिक होने से पहले कलाकार को यह सुनिश्चित कर लेना 
						चाहिए कि उसमें कोई खोट नहीं रह गया हो। उनका निधन २ जुलाई 
						२००९ को ह्रदय गति रुक जाने के कारण मुंबई के एक अस्पताल 
						में हुआ।
 |