सुतपा
पॉल
१९८० में कोलकाता से ३५ किमी
दूर नैहाटी में जन्मी सुतपा ने, बचपन से ही चित्रकारी और
मूर्तिकला में खुद को समर्पित पाया। उनके माता-पिता चाहते
थे कि मैं सामान्य अध्ययन के क्षेत्र में अपना कैरियर
बनाएँ। उन्होंने इसके लिये प्रयत्न भी किया और कल्याणी
विश्वविद्यालय से ऑनर्स की डिग्री पूरी की लेकिन उनका
जुनून पेंटिंग और मूर्तिकला की ओर ही झुकता चला गया।
वे जब भी पर्यटन पर जातीं अपने साथ स्केच बुक और कैनवस पर
कुछ प्राकृतिक सुंदरता सहेज कर लातीं। जब समय मिलता वे
चित्रकारी या मूर्तिकला में लग जातीं। विवाह के बाद वे
सुप्रसिद्ध चित्रकार रमेशचंद्र पाल की पुत्रवधू बनीं जिनसे
उन्हें ललित कलाओं के विषय में गहन जानकारी और बारीकियाँ
सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। निरंतर अभ्यास और चित्रांकन के
साथ वे संप्रति क्ले मॉडलिंग और चित्रकारी पर अपना ध्यान
केंद्रित कर रही हैं।
वे विभिन्न तकनीकों और सामग्रियों के साथ प्रयोग करते हुए
उन बारीकियों की खोज करती हैं जो हमारी संवेदनशीलता के
अंतरतम स्थानों को छूती हैं। उनके विषय अनोखे हैं- इन
विषयों में कोई भूली हुई स्मृति, एक गुजरा हुआ दिवास्वप्न,
या खोया हुआ विचार इस प्रकार कैनवस के टुकड़े पर कब्जा कर
लेता हैं कि चित्र में एक पूरे दिन का जादू समा जाता है।
यह जादू अपने समय को इस प्रकार रोकना और प्रतिबिंबित करना
चाहता है कि दर्शक मुग्ध भाव से चित्रों के देखते ही रहते
हैं। उनका स्टूडियो उनका सबसे प्यारा स्थान है। जहाँ वे
एसिड फ्री आर्ट पेपर, कैनवास, ब्रश और चाकू का इस्तेमाल
करते हुए चित्रकारी करती हैं।
पिछले कुछ वर्षों से वे अधिकतर समय अपने स्टूडियो में
बिताती हैं और कलाकार मित्रों
के साथ भारत भर के विभिन्न शहरों में चित्रों का प्रदर्शन
कर रही हैं।
१ मई २०२३ |