|  सतीश 
						गुजराल
 
                       दिसंबर 
						१९२५ में झेलम नगर विभाजन पूर्व में जन्मे चित्रकार, 
						मूर्तिकार, वास्तुकार और ग्राफिक डिज़ायनर के रूप में 
						प्रख्यात सतीश गुजराल ने हाल ही में अपनी आत्मकथा लिख कर 
						लेखक के रूप में नयी पहचान बनायी है। 
 मेयो स्कूल आफ आर्ट, लाहौर में पाँच वर्षों तक उन्होंने 
						अन्य विषयों के साथ साथ मृत्तिका शिल्प और ग्राफिक 
						डिज़ायनिंग का विशेष अध्ययन किया। जे जे स्कूल आफ आर्ट 
						बाम्बे, पलासियो नेशनेल डि बेलास आर्ट, मेक्सिको तथा 
						इंपीरियल सर्विस कालेज विंडसर, यूके में कला की विधिवत 
						शिक्षा प्राप्त करने वाले सतीश गुजराल ने अपनी रचना यात्रा 
						में कभी भी सीमाएँ नहीं खींचीं और माध्यमों के क्षेत्र में 
						व्यापक प्रयोग किये। रंग और कूची के साथ साथ सिरामिक, 
						काष्ठ, धातु और पाषाण— उन्होंने हर जगह अपनी कलात्मक 
						रचनाशीलता का परिचय दिया।
 
 उन्होंने राष्ट्रीय व अंतर्राट्रीय अनेक पुरस्कार प्राप्त 
						किये जिनमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त 
						पद्मविभूषण, मेक्सिको का 'लियो नार्डो द विंसी' और 
						बेल्जियम के राजा का 'आर्डर आफ क्राउन' पुरस्कार शामिल 
						हैं। १९८९ में उन्हें 'इंडियन इंस्टीट्यूट आफ आर्किटेक्चर' 
						तथा 'दिल्ली कला परिषद' द्वारा सम्मानित किया गया। 
						उन्होंने अनेक होटलों, आवासीय भवनों, विश्वविद्यालयों, 
						उद्योग स्थलों और धार्मिक इमारतों की मोहक वास्तु 
						परियोजनाएँ तैयार की हैं। नयी दिल्ली में बेल्जियम दूतावास 
						के भवन की परियोजना के लिये वास्तुरचना के क्षेत्र में 
						उन्हें अंतर्राट्रीय ख्याति मिली है। इस इमारत को 
						'इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्ट्स' द्वारा बीसवीं सदी की 
						१००० सर्वश्रेष्ठ इमारतों की सूची में स्थान दिया गया है।
 
 वे तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरसकार प्राप्त कर चुके हैं- 
						दो बार चित्रकला के लिये और एक बार मूर्तिकला के लिये। 
						दिल्ली व पंजाब की राज्य सरकारों ने भी उन्हें पुरस्कृत 
						किया है। उनके ऊपर अनेक वृत्त चित्रों का निर्माण किया गया 
						है तथा संपूर्ण जीवन पर एक फीचर फिल्म बनाई गयी है।
 
 गुजराल के चित्रों में आकृतियाँ प्रधान हैं। जब वे विशेष 
						रूप से निर्मित खुरदुरी सतह पर एक्रेलिक से चित्रांकन करते 
						हैं, 
						तब ये आकृतियाँ एक दूसरे में 
						विलीन होती हैं और विभिन्न ज्यामितीय आकारों में स्थित हो 
						जाती हैं। रंगों का परस्पर सौजन्य और फिल्टर–से झरते हुए 
						विभिन्न बिम्बों का आकर्षण उनके चित्रों की मोहकता तो 
						बढ़ाता ही है, बिना हस्ताक्षर के अपने चितेरे की पहचान भी 
						स्पष्ट करता है। बाइबिल के एक प्रसंग पर आधारित उपरोक्त 
						चित्र में उनकी इस कला 
						शैली को देखा जा सकता है।
  
 अपने वैविध्यपूर्ण रचना जीवन में उन्होंने अमूर्त चित्रण 
						भी किये हैं और चटकीले रंगों के सुंदर संयोजन बनाए हैं। 
						पशु और पक्षियों को उनकी कला में सहज स्थान मिला है। 
						इतिहास, लोक कथा, पुराण, प्राचीन भारतीय संस्कृति और विविध 
						धर्मों के प्रसंगों को उन्होंने अपने चित्रों में सँजोया 
						है।
 
 आज उनकी कलाकृतियाँ हिरशर्न कलेक्शेन वाशिंगटन डी सी, 
						हार्टफोर्ड म्यूज़ियम यू एस ए तथा द म्यूज़ियम आफ मार्डन 
						आर्ट न्यू यार्क जैसे अनेक विश्व विख्यात संग्रहालयों में 
						प्रदर्शित की गयी हैं।
 
                      १ जून २००३ |