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सैयद
हैदर रज़ा
मध्य
प्रदेश के बाबरिया गाँव में १९२२ में जन्मे सैयद हैदर
रज़ा का बचपन मध्य प्रदेश के घने जंगलों में बीता।
उन्होंने चित्रकला का अध्ययन नागपुर स्कूल आफ आर्ट तथा
जे जे स्कूल आफ आर्ट, बंबई में किया। १९५० में
फ्रांसीसी छात्रवृत्ति लेकर 'इकोल नेशनल डि बाउ आर्टस'
में शिक्षा प्रारंभ करने से पहले वे अनेक एकल
प्रदर्शनियाँ कर चुके थे।
उन्होंने के एच आरा और एफ एन सूज़ा के साथ प्रोग्रेसिव
आर्टिस्ट ग्रुप की स्थापना की और अनेक प्रदर्शनियों
में भाग लिया जिनमें वेनिस की बिनाले,
साओ–पाउलो और मेन्टन तथा नयी दिल्ली की
त्रिनाले भी शामिल हैं। १९५६
में उन्हें 'प्रिक्स डि ला क्रिटिक' से सम्मानित किया
गया। १९५९ में उन्होंने फ्रांसीसी कलाकार जेनी
मौंगिलेट से विवाह किया और १९६२ में बर्कले के
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर भी
बने। १९५९ से १९८५ तक उन्होंने भारत की कई यात्राएँ
कीं और कला में भारतीय विचारधारा, समकालीन चित्रण और
जन–जीवन से संपर्क बनाए रखा। १९७८ में मध्यप्रदेश
सरकार ने उनको अपनी कला के प्रदर्शन के लिये आमंत्रित
किया।
रज़ा के चित्रों में जंगलों के खुशनुमा रंगों को आसानी
से पाया जा सकता है जो उनके प्रारंभिक चित्रों की
विशेषता रही है। उस समय वे दृश्यचित्रों के अभिव्यंजक
माने जाते थे, उसके बाद रंगों का प्रभुत्व बढ़ गया।
उनकी विषय वस्तु अभी भी दृश्य ही थे लेकिन वे रंगों
में खोए हुए थे। ७०वें दशक के अंत तक वे शुद्ध रूप से
ज्यामितीय आकारों की और मुड़ चुके थे, लगता था जैसे वे
मस्तिष्क के रूपाकार को चित्रित कर रहे हैं। समय के
साथ आजकल उनका रुझान बिन्दु की ओर केन्द्रित दिखाई
देता है, जो न केवल पवित्रता का प्रतीक है बल्कि उनकी
कलाकृतियों में हिन्दू दर्शन के रहस्यमय पहलू को भी
प्रकट करता है।
मुंबई में मालाबार हिल से चौपाटी का नीचे दिया गया
दृश्य रज़ा ने उन दिनों बनाया था, जब वे 'जे जे' में
पढ़ा करते थे। १९४७ में हुई उनकी एकल प्रदर्शनी में यह
उनका सर्वोत्तम चित्र माना गया था। ऊपर दिया गया चित्र
१९७० के बाद उनकी बिंदु शृंखला का है। ये दोनों चित्र
उनकी कला यात्रा के दो सोपान प्रस्तुत करते हैं।
रज़ा ने जीवन का एक बड़ा हिस्सा
पेरिस तथा दक्षिण फ्रांस में गोर्बियो में
रहकर काम करते हुए बिताया।
लेकिन कुछ वर्ष
पहले
वे भारत लौट आए। जून २०१० में जब उनकी कलाकृति
“सौराष्ट्र” को लगभग साढ़े सोलह करोड़ रुपये में नीलाम
किया गया तो कलाजगत में सनसनी मच गई। उन्हें १९८१ में
पद्मश्री और ललित कला अकादेमी की रत्नसदस्यता से
अलंकृत किया गया, २००७ में उन्हें पद्मभूषण और वर्ष
२०१३ में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। २२ फरवरी,
२०१४ को इस वरिष्ठ कलाकार की ९२वीं वर्षगांठ होगी।
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