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					 रबीन 
					मंडल 
                        
						 १९२९ 
						में हावड़ा में जन्मे रवीन मंडल का कला की दुनिया में 
						प्रवेश एक दुर्घटना के बाद हुआ जब वे आठ वर्ष की आयु में 
						घुटने में चोट लगने के कारण बिस्तर पर आ गए। उन्हें पूरा 
						ठीक होने में पूरे चार वर्ष लगे। पढ़ाई छूट गई और चलने में 
						परेशानी के कारण घर पर ही रहना पड़ा। अपने को व्यस्त रखने 
						और मन बहलाने के लिये बालक रबीन ने रेखाचित्र बनाने शुरू 
						किये। इन दिनों रबीन की रूचि फ़िगरेटिव विधा में हुई और वे 
						अपने घर के सदस्यों, भाई-बहनों के स्केच बनाने लगे। 
 हावड़ा के औद्योगिक इलाके में रहने वाले रबीन के पिता 
						कारखाना चलाते थे। कारोबारी परिवार होने के बावजूद उनके 
						पिता शौकिया चित्रकारी में भी रूचि रखते थे और अपने पुत्र 
						को एक कुशल चित्रकार बनाना चाहते थे। रबीन मंडल ने १९५२ 
						में कलकत्ता विश्वविद्यालय से वाणिज्य में स्नातक की 
						प्राप्त की। कला में उनकी औपचारिक शिक्षा कलकत्ता के 
						इंडियन कालेज ऑफ आर्ट एंड ड्राफ्ट्समैनशिप में हुई। इसके 
						बाद उन्होंने अपने कला अध्ययन को कलकत्ता विश्वविद्यालय के 
						आशुतोष म्यूजियम ऑफ इंडियन आर्ट में जारी रखा। १९५३-५४ में 
						उन्होंने एक स्थानीय हाईस्कूल में अध्यापक के रूप में 
						कार्यजीवन का प्रारंभ किया। १९८७ में उन्होंने कलकत्ता के 
						रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के विजुअल आर्ट विभाग में 
						प्राध्यापक के पद पर कार्यभार संभाला।
 
 रबीन की कला में दुःख, पीड़ा, उत्तपिडन, भूख, बेकारी, और 
						मनुष्य का जीवन के प्रति संघर्ष बड़े अलग तरीके से दिखाया 
						गया है। उनकी कलाकृतियों में दिखने वाले चरित्रों में घोर 
						निराशा के साथ उनके प्रति समाज और सरकार की उदासिनता भी 
						दिखाई देती है। १९४६ के दंगों, १९४३ के बंगाल के भीषण अकाल 
						और इसके बाद लगातार बदलती राजनीतिक और सामाजिक 
						परिस्थितियों का उनकी कला पर बहुत गहरा प्रभाव देखा जा 
						सकता है। अपनी कला में सौंदर्य को नजरंदाज़ करते हुए रबीन 
						ने मानव जीवन के दुखों को उकेरना अधिक महत्वपूर्ण समझा।
 
 आम आदमी के प्रति सहानुभूति को रबीन ने केवल कला तक सीमित 
						नहीं रखा। १९६३-६४ में कलकत्ता के कलाकारों के साथ मिलकर 
						रबीन ने एक आर्टिस्ट ग्रुप ‘कलकत्ता ८’ की स्थापना की। इस 
						ग्रुप की स्थापना संघर्षरत कलाकरों की मदद के लिये हुई थी। 
						यह एक खुले मंच की तरह था जहाँ कलाकार अपने विचार रखते और 
						कला को प्रदर्शित करने के किफायती माध्यम भी ढूँढते। १९६४ 
						में यह ग्रुप कलकत्ता पेंटर्स के नाम से जाना गया।
 
 १९८० में उन्होने ने मैन एक्टिंग एज़ किंग शीर्षक नाम से एक 
						तैल चित्र बनाया। इस चित्र में एक आम व्यक्ति की मजबूरी को 
						दिखाया गया है जो अपने तमाम दुखों को भुला कर अपने आपको को 
						राजा या सत्ता के केंद के रूप में देखता है। इस कड़ी में 
						रबीन ने राजा और रानी शृंखला में अनेक चित्र बनाए। कुछ में 
						राजा को सत्तारूढ़ होते हुए तो कुछ में सत्ताहीन और हताश 
						दिखाया गया है। रबीन के चित्रों में मनुष्य आकृतियाँ बेडौल 
						और कुरूप चेहरों वाली हैं। कला समीक्षक इनके चित्रों की 
						तुलना पश्चिम के ‘प्रागैतिहासिक शैली’ से करते रहे हैं। 
						उनके चित्रों में लोक कलाओं की झलक भी देखी जा सकती हैं। 
						कुल मिलाकर यह कि दिखने में ये पुरातन चित्र आज के विकृत 
						समाज के दर्पण के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करते हैं।
 
 रबीन मण्डल के चित्रों की अनेक प्रदर्शनियाँ देश तथा विदेश 
						में लगी हैं। ६० के दशक में कुछ समय के लिए इन्होंने 
						बांगाला फिल्मों में कला निर्देशन का कार्य किया। अदम्य 
						ऊर्जा के धनी रबीन का ये ८६ वां वर्ष उनके सृजन कार्य में 
						बाधक होता नहीं दिखता है। कलकत्ता में रहते हुए रबीन 
						लगातार कला की समृद्धि और विकास में लगे है।
 
  उनकी कार्य को सम्मानित करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार के 
						सूचना एवं संस्कृति विभाग ने उन्हें २००१ के अवनीन्द्रनाथ 
						पुरस्कार, तथा ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी, 
						नई दिल्ली ने १९९६ के एमिनेंट पेंटर पुरस्कार से अलंकृत 
						किया है।
 
 रबीन मंडल की कलाकृतियाँ द नेशनल गैलरी ऑप मॉडर्न आर्ट, नई 
						दिल्ली, ओजंस आर्ट आर्काइव, मुंबई, द बिड़ला एकेडेमी ऑफ 
						आर्ट एंड कल्चर कोलकाता तथा जेन एंड कीटो डि बोर कलेक्शन, 
						दुबई में देखी जा सकती हैं। वे कोलकाता में रहते और काम 
						करते हैं।
 
                        ६ जुलाई 
						२०१५ |