|  जतीन 
					दास
 
					
					 मानव आकृतियों के कुशल चितेरे जतीन दास न केवल चित्रकार 
					हैं बल्कि मूर्तिकर, भित्ति चित्रकार, ग्राफिक डिज़ाइनर और कवि 
					भी हैं। १९४१ में मयूरभंज, उड़ीसा में जन्मे जतीन की कला शिक्षा 
					जे जे स्कृल आफ आर्ट में हुई। १९६२ में अपनी शिक्षा पूरी करने 
					से पहले ही पेरिस द्विवार्षिकी (१०७१) वेनिस (१९७८) और 
					डाक्यूमेंटा केसेल (१९७५) जैसी देश विदेश की प्रमुख कला 
					प्रदर्शनियों में उनके चित्र प्रदर्शित हो चुके थे। 
 रेखांकार मूल ढाँचों पर तेज़ कूची से आकार लेती अथक अन्वेषी 
					जतीन दास की मानव आकृतियों के विषय स्त्री पुरूष के परस्पर 
					संबंधों पर आधारित हैं। इनमें संकट, समन्वय, अभिव्यक्ति और 
					मानसिक स्थितियों के विभिन्न आयामों का सुंदर चित्रण हुआ हैं।
 
 १९६५ से १९९१ के बीच उन्होंने ३७ एकल प्रदशििनयों में भाग 
					लिया। १२ कला कैंपों और ४ कार्यशालाओं में हिस्सा लिया और भारत 
					भर के १४ सहायतार्थ कार्यक्रमों के लिये अपनी कलाकृतियों को 
					भेंट किया। भारत, जर्मनी तथा यूके में उनके विषयाधारित 
					ग्राफिकों तथा गल्प रखांकनों के चौदह सीमित संख्या वाले अंक 
					प्रकाशित हो चुके हैं।
 
 सन २००१ तक वे अपनी कला यात्रा के चार दशक पूरे कर चुके 
					हैं। देश विदेश में उनकी ५० से अधिक एकल प्रदर्शनियां हो चुकी 
					हैं, इसके साथ ही इंडिया त्रिवार्षिकी, चौथी भारत भवन 
					द्विवार्षिकी भोपाल, सातवीं ब्रिटिश अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट 
					द्विवार्षिकी ब्रेडफोर्ड, पेरिस द्विवार्षिकी प्रदर्शनियों में 
					उनकी सक्रिय भागीदारी रही। अनेक प्रसिद्ध कला नीलामियों में भी 
					उनके चित्रों सम्मानित स्थान मिला।
 
 वे अलग अलग समयों पर अनेक हस्तकला उद्योग मेलों में भारतीय 
					हस्तकला पीठ के सलाहकार तथा १९६९ में हैंडीक्राफ्ट हैंडलूम 
					एक्सपोर्ट कारपोरेशन आफ इंडिया के आर्ट डिज़ायनर भी रहे। 
					उन्होंने जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय दिल्ली, स्कूल आफ 
					प्लैनिंग एण्ड आर्किटेक्चर नयी दिल्ली, कालेज आफ आर्ट वूमेन्स 
					पोलीटेक्नीक तथा नेशनल स्कूल आफ ड्रामा नयी दिल्ली में अध्यापन 
					का कार्य भी किया है।
 
 सांस्कृतिक आदान प्रदान के कार्यक्रमों के अंतर्गत 
					उन्होंने यूरोप व मध्यपूर्व का व्यापक भ्रमण किया। वे अनेक कला 
					व सांस्कृतिक संस्थाओं तथा राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 
					निर्णायक मण्डल के सदस्य रहे।
 
 
  जतीन दास ने 
					१९६४ में बिड़ला क्रीडा केन्द्र मुम्बई के 
					लिये, १९६५ में देना बैंक मुम्बई, १९७२ में एशिया '७२ नयी 
					दिल्ली के लिये, १९७२ में ही कृषि मंत्रालय भारत सरकार नयी 
					दिल्ली के लिये, १९७८ में होटल टूरिस्ट परिसर मे हरियाणा सरकार 
					के लिये, १९८३ में टेपेस्ट्रिी हैंडलूम कमीशन नयी दिल्ली के 
					लिये विभिन्न शैलियों और मध्यमों में मूर्तिफलक, पाषाण शिल्प 
					या भित्तिचित्रों का निर्माण किया। १९९५ में उन्होंने भिलाई 
					स्टील प्लांट में खुले आकाश के नीचे ३० फीट ऊंची प्रतिमा का 
					निर्माण किया जो अबतक की उनकी सबसे बड़ी मूर्ति है। 
 हस्तकलाओं में गंभीर रूचि रखने वाले जतीन दास के भविष्य की 
					योजनाओं में एक ऐसे नायाब संग्रहालय की कल्पना है जिसमें उनके 
					द्वारा पिछले चालीस सालों में, देश विदेश से संग्रह किये गए 
					पांच हज़ार हस्त निर्मित पंखों को प्रदर्शित किया जाएगा। 
					जतीनदास दिल्ली में रहते व कार्य करते हैं
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