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					 कट्टींगरी कृष्ण हेब्बार 
					 कहते 
						हैं धरती की एक महक होती है और वह जीवन पर छा जाती है। कुछ 
						ऐसा ही हुआ है चित्रकार हेब्बार के साथ। १९१२ में वे 
						दक्षिण कनारा के जिस सुन्दर से गाँव में जन्मे उस 
					कट्टींगेरी के तमाम खुशनुमा परिवेश 
					और रागरंग भरी लोक संस्कृति का उमंग भरा उत्सवी माहौल उनके 
					चित्रों में देखा जा सकता है। 
 १९३८ में जे जे से 
					अपना डिप्लोमा लेने के बाद १९४० से १९४५ 
						तक उन्होंने वहीं अध्यापन किया फिर यूरोप निकल गए और 
						निश्चय किया कि पेरिस की अकदमी जुलियन में अध्ययन करेंगे। 
						देश विदेश की अनेक महत्वपूर्ण प्रदर्शनियों मे उन्होंने 
						भाग लिया जिसमें वेनिस बिनेले, साओ पाओलो बिनेले और टोकियो 
						बिनेले जैसी अंतर्राष्ट्रीय कला महोत्सव भी सम्मिलित हैं।
 
 एक ओर शुद्ध भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं से गुँथी हुई 
					पृष्ठभूमि और दूसरी तरफ जे जे स्कूल, बंबई और अकादमी जुलियन, 
					पेरिस में पश्चिमी शैली की कला शिक्षा — दोनों के बीच हेब्बार 
					ने अपना अलग व्यक्तित्व बनाया। वे अपने विस्तृत वातावरण के 
					प्रति सचेत, जागरूक और संवेदनशील बने। क्या पूर्व क्या पश्चिम 
					— दुनिया के हर छोर तक वे घूमे, सब जगह के प्रभावों को 
					उन्होंने आत्मसात किया लेकिन किसी भी प्रभाव को अपनी मौलिकता 
					पर हावी होने नहीं दिया, इसी से उनके चित्र आधुनिक होते हुए भी 
					शुद्ध भारतीय हैं।
 
 १९५६ में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया 
					और १९५७ व १९५८ में उन्हें वार्षिक प्रदर्शिनियों में पुरस्कार 
					प्राप्त हुए। १९६५ में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय 
						ख्याति मिली जब लंदन और ब्रसेल्स में 'सामकालीन भारतीय 
						कला' नामक प्रदर्शनी में उनके चित्र विदेशों में प्रदर्शित 
						किये गए।
						हेब्बार अपने रेखाचित्रों के कारण भी अत्यंत लोकप्रिय रहे 
						हैं। ऊपर दिया गया उनका अपना व्यक्तिचित्र (पोर्ट्रेट) धर्मयुग के सौजन्य 
						से विशेष रूप से अभिव्यक्ति के पाठकों के लिये प्रस्तुत 
						है।
 
 
  १९४७ 
					में उन्हें बाम्बे आर्ट सोसायटी का स्वर्ण पदक मिला वे १९८० 
					में वे ललितकला अकादमी के चेयर मैन तथा १९९० में बाम्बे आर्ट 
					सोसायटी के अध्यक्ष भी रहे। १९६१ में उन्हें भारत सरकार द्वारा 
					पद्मश्री व १९८९ में पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। १९९६ में ८५ वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ। 
 परमाणु शक्ति के महाविनाश का यह चित्र काफी प्रशंसित हुआ 
						था लेकिन इस चित्र को हेब्बार ने नष्ट कर दिया था। उनका 
						कहना था कि चार साल बाद पुनः विचार करने पर उन्हें लगा कि 
						वे इससे संतुष्ट नहीं हैं। इसमें बनी मानव आकृति प्रमुख हो 
						गयी है, जब कि विशाल विनाशकारी शक्ति के आगे उसे क्षुद्र 
						होना चाहिये था साथ ही चित्र में चित्रमयता तथा नाटकीयता 
						ज्यादा है। इसी विषय को लेकर उन्होंने दुबारा एक चित्र 
						बनाया जिसे आस्ट्रेलिया के राष्ट्रसंघीय म्यूज़ियम में 
						प्रदर्शित किया गया है।
 
					१६ दिसंबर २००२ |