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कला और कलाकार                                  - निशांत

वासुदेव एस गायतोंडे

अमूर्तन शैली के महान चित्रकार वासुदेव सन्तु गायतोंडे का जन्मनागपुर में बसे एक गोवन परिवार में सन १९२४ में हुआ। सर जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई में कला की शिक्षा लेने के बाद गायतोंडे स्वंत्र रूप से चित्रकला के क्षेत्र में सक्रिय रहे। गायतोंडे को हम उनकी अमूर्तन शैली के लिए जानते हैं। अमूर्तन शैली जो इन्होंने ५० के दशक के अंत में शुरु की थी से पहले इनका रुझान लघुचित्र कला या मिनिएचर शैली में ज्यादा था।

गायतोंडे की जैन दर्शन में रूचि ५० के दशक के शुरुआत में हुई, साथ ही उनकी अमेरिका यात्रा ने उन्हें एक नई दुनिया से रूबरू करवाया। कृष्णमूर्ति के अध्यात्मिक दर्शन और पॉल क्ली तथा रौऔल्ट की कला भी उनके अमूर्तन को विकसित करने में प्रेरणा दायक रही। गायतोंडे अपनी शैली में नए प्रयोग करने लगे। मूर्तन में धीरे-धीरे प्रतीकों के माध्यम से अमूर्तन का प्रवेश होने लगा।

चित्रों में ज्यामितिक पैटर्न और सुलेख के साथ रंगों और रेखाओं का समन्यवय पूरी तरह अमूर्तन तो नहीं परन्तु एक अलग दिशा की ओर प्रस्थान को दर्शाने लगा। कुछ समय बाद कैनवस से आकृतियाँ रंगों में विलीन हो गईं। गायतोंडे ने अमूर्तन को अपनी अभिव्यक्ति में इस तरह उतरा कि फिर मूर्तन की तरफ मुड़कर नहीं देखा। इनके चित्रों में रंगों की पारदर्शिता और एक के ऊपर एक परतों में सतह पर तैरते हुए सुलेख के समान चिह्न हमें मौन में लेकर जाते हैं, जहाँ आनंद, रंग, विचार और चिंतन का अनूठा संगम दीखता है। लगभग सभी माध्यमों में काम करने वाले गायतोंडे अपने चित्रों के पारदर्शी सतहों को बनाने में पैलेट नाईफ और रोलर का इस्तेमाल करते थे।

१९७० के दशक के मध्य में गायतोंडे मुंबई छोड़ कर दिल्ली आ बसे और इस दौरान इन्होने अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ चित्र बनाए। सन १९५७ में यंगएशियन आर्टिस्टस एसोसिएशन, टोक्यो में इन्हें प्रथम पुरस्कार मिला और भारत सरकार ने १९७१ में पद्मश्री से सम्मानित किया।

तमाम पुरस्कारों और सम्मान के बावजूद गायतोंडे के चित्रों को ख्याति मिलने में थोडा समय लगा। २००१ में उनके निधन के बाद उनके चित्रों की कई प्रदर्शनियाँ देश-विदेश में लगीं। २०१३ में क्रिस्टीज के मुंबई स्थित ऑक्शन में गायतोंडे की एक कलाकृति का मूल्य रिकॉर्ड ऊँचाई तक गया। ३८ लाख डॉलर में बिकने वाली यह कलाकृति भारतीय आधुनिक कला के इतिहास की सबसे महँगी कृति बन गई।

२०१४ में गायतोंडे की सर्वश्रेठ कृतियों की एक बड़ी प्रदर्शनी गुगेनहाईम म्यूजियम, न्यू यॉर्क में लगाई गई।

१ सितंबर २०१५
 

 
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