|  नारायण 
						श्रीधर बेंद्रे
 
						
						 नारायण श्रीधर 
						बेंद्रे का जन्म १९१० में मध्यप्रदेश के इंदौर नगर में 
						हुआ। कला की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने राजकीय कला 
						विद्यालय, इंदौर से प्राप्त की और उच्च शिक्षा १९३३ में 
						गवर्नमेंट डिप्लोमा, बंबई से। पर्यटन की अभिरूचि के कारण 
						उन्होंने अनेक यात्राएं कीं और इन यात्रा दृश्यों को अपनी 
						कलाकृतियों भिन्न भिन्न शैलियों में ढाला कर प्रस्तुत 
						किया। उनका समस्त कला जीवन ऐसे अनुभवों से परिपूर्ण है।
 
 बेंद्रे के प्रारंभिक चित्रों में इंदौर की खासी शैली का 
						प्रचुर प्रभाव है। बाद के दिनों में उन्होंने दृश्यचित्रण 
						और तैल व गोचा शैली को अपनी अभिव्यक्ति के करीब पाया। 
						वर्गाकृतियों, छायावाद और अमूर्त क्षेत्र में भी उन्होंने 
						अनेक प्रयोग किये। इसका नतीजा यह हुआ कि उनकी कलाकृति 
						'कांटे' को १९५५ में राष्ट्रीय पुरस्कार के लिये चुना गया। 
						यह कलाकृति यूरोपीय आधुनिक शैली और पारंपरिक भारतीय शैली 
						के संयोग की उत्कृष्ट मिसाल थी। १९४५ में वे नंदलाल बोस, 
						रामकिंकर बैज, बिनोद बिहारी मुखर्जी जैसे कलाकारों के साथ 
						कलाकारों के साथ शांतिनिकेतन में रहे।
 
 १९४८ में उन्होंने यू एस ए की यात्रा की और न्यू यार्क की 
						विंडर मेयर गैलरी में अपने चित्रों की प्रदर्शनी की। वापसी 
						में वे यूरोप होते हुए लौटे जहां उन्हें आधुनिक शैली के 
						अनेक चित्रकारों से मिलने और उनकी कलाकृतियों व शैलियों को 
						समझने का अवसर मिला। १९५८ में उन्होंने पश्चिम एशिया और 
						लंदन तथा १९६२ में जापान की यात्रा की।
 
 
  १९५० 
						से १९६६ तक उन्होंने बड़ौदा के कला संकाय में अध्यापन किया, 
						डीन के पद पर पहुँचने के पश्चात सेवानिवृत्ति ली और अपने 
						अंतिम समय तक चित्रकारी करते रहे। १८ फरवरी, १९९२ को उनका 
						निधन हुआ। 
 नारायण श्रीधर बेंदे को पहली सार्वजनिक मान्यता १९३४ में 
						मिली जब उन्हें बाम्बे आर्ट सोसायटी का रजत पदक प्रदान 
						किया गया। १९४१ में इसका सर्वोच्च सम्मान स्वर्ण पदक भी 
						उन्होंने प्राप्त किया। १९६९ में भारत सरकार ने उन्हें 
						पद्मश्री से सम्मानित किया।
 
 १९७१ में, नयी दिल्ली में वे अंतर्राष्ट्रीय त्रिवार्षिकी 
						के ज्यूरी चुने गए और १९७४ में ललितकला अकादमी के सदस्य। 
						१९८४ में उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय के 'अबन गगन' 
						पुरस्कार और मध्यप्रदेश सरकार के 'कालिदास सम्मान' से 
						सम्मानित किया गया।
 
						२४ फरवरी 
						२००३ |