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कला और कलाकार

अब्दुल रहीम अप्पाभाई आलमेलकर

महाराष्ट्र के शोलापुर नामक नगर में १९२० में जन्मे अब्दुल रहीम अप्पाभाई आलमेलकर ने सात वर्ष की आयु से चित्रकारी प्रारंभ कर दी थी। स्थानीय विद्यालय में पारंपरिक शिक्षा के बाद उन्होंने, नूतन कला मंदिर में चित्रकला की प्रारंभिक शिक्षा ली और सर जे जे स्कूल आफ आर्ट, बंबई में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने आर्ट सोसायटी आफ इंडिया और बाम्बे आर्ट सोसायटी द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में अनेक पुरस्कार जीते।

आलमेलकर कुछ ऐसे भारतीय चित्रकारों में से हैं जिन्होंने फैशन के लिये पश्चिम की अंधी नकल में विश्वास नहीं किया। जहाँ तक कला के स्रोतों का सवाल है, भारतीय परंपरा और संस्कृति की अक्षय निधि उन्हें सदैव प्रेरित करती रही है। इसी से उनकी शैली भारतीय मिनियेचर की शैली है, जो पारंपरिक होते भी आधुनिक युग की सर्वाधिक लोकप्रिय शैलियों में से एक है। उनके चित्रों में चटख रंगों का प्रयोग और अलंकारिकता के प्रति मोह स्पष्ट दिखाई देता है। इन पारंपरिक सीमाओं के बीच भी शैली व विषय में वे नये–नये प्रयोग करते रहे हैं। सम्पूर्ण भारत, जा
वा, बाली, मलाया व इंडोनेशिया का उन्होने बारीकी से अध्ययन और सुंदरता से चित्रण किया है। अनेक एकल तथा संयुक्त प्रदशर्नियों में उनके चित्र भारत तथा विदेशों में प्रदर्शित किये गये।

आलमेलकर अपना सच्चा गुरू खत्री को मानते हैं, जो गुजरात के एक लोक कलाकार थे। खत्री ने युवा आलमेलकर को औपचारिक कला शिक्षा में पारंगत होने के लिये प्रेरित किया।

जनसामान्य, मछुआरों और आदिवासियों को उन्होंने अपने चित्रों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इनकी पृष्ठभूमि में धार्मिक प्रतीकों वाले, लोक कला के वे सुंदर नमूने चित्रित किये गये हैं जिनसे आदिवासी अपने घरों को सजाते हैं। आलमेलकर ने महाराष्ट्र के जंगलों में घूमते हुए आरक्षित वनों, पेड़ों, पक्षियों और जंगलवासियों के बहुमूल्य चित्र बनाए हैं।

कला के मूल तत्वों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने प्रकृति चित्रण और आकृति चित्रण दोनों को अपनी तरीके से लोक शैली का रूप दिया। उनके चित्रों को देख कर पारंपरिक जावा चित्रकला का ध्यान आ जाता है जो मूल रूप से भारतीय चित्रकला से ही प्रभावित है।

उँगलियों से रंगों का प्रयोग और जलसह स्याही की स्पष्ट बाहरी रेखा उनकी अभिव्यक्ति को भारतीयता का जामा पहनाती है। उन्होंने कार्डबोर्ड को चित्रफलक की तरह इस्तेमाल कर के एक नया प्रयोग किया। अपने चित्रों में चमक लाने के लिये वे अक्सर कौड़ियों की लेई का प्रयोग करते थे।

आलमेलकर ने बंगलेर के नूतन कला मंदिर नामक कला विद्यालय के प्राचार्य के पद पर कार्य किया। बाद में १९६८ में वे सर जे जे स्कूल आफ आर्ट्स में प्रवक्ता हुए। मलेशिया तथा दूसरे एशियाई महानगरों में उनकी कलाकृतियों को ज़बरदस्त लोकप्रियता मिली। उनको कला के क्षेत्र में अद्वितीय प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मलेशिया सरकार द्वारा उन्हें राष्ट्रीय अतिथि के रूप में कला संबंधी व्याख्यानों के लिये आमंत्रित किया गया। उनके चुने हुए चित्रों को 'नेशनल गैलरी आफ माडर्न आर्ट' तथा 'ललित कला अकादमी' में संग्रहीत किया गया है।

दिसम्बर १९६२ में ६२ वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हुआ।

 
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