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						1थंगक कलाकृतियाँ
 
						भारत की 
						समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर 
						से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला 
						दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों 
						की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है 
						थंगक 
						कलाकृतियों के 
						विषय में -  
 मनोहर सौन्दर्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का अदभुत समन्वय 
						थंगक कलाकृतियाँ, पूर्णरूप से गौतमबुद्ध और 
						बौद्धदर्शन को समर्पित हैं। ऐसा विश्वास है कि बौद्ध धर्म 
						का प्रचार करते हुए जब महान भिक्षुक गुरू भारत से तिब्बत
						आए तो शिक्षा और प्रचार की सामग्री में ये चित्र और 
						हस्तलिपियाँ शामिल थीं। तिब्बती कलाकारों को इन चित्रों ने 
						बड़ा प्रभावित किया और गौतम बुद्ध से संबंधित विषयों वाली 
						इस शैली को अपनाते हुए उन्होंने, इसका नाम थंगक रखा। 
 आज यह तिब्बती चित्रकारों की कलात्मक परम्परा तो हैं ही, 
						इनका धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। भारत में जन्म 
						लेने और फिर तिब्बत में विकसित होने के कारण यह शैली भारत 
						और तिब्बत के घनिष्ट सम्बंधों की स्वर्णिम सूत्र भी 
						है।
 
 इन चित्रों के विषय गहन और रहस्यमय हैं। महायान सूत्र के 
						आशावाद और वज्रयान सूत्र के तांत्रिक मूल्यों से परिपूर्ण
						ये चित्र हर विचारधारा के सूक्ष्म भावों को स्पष्टता से 
						व्यक्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन चित्रों पर केवल
						दृष्टिपात करने मात्र से मनुष्य के सांसारिक कष्ट दूर हो 
						जाते हैं।
 
 सामान्य रूप से विषयों के आधार पर इन चित्रों को पांच 
						भागों में बाँटा जा सकता है। गौतम बुद्ध व उनसे 
						संबंधित
						अन्य धार्मिक चरित्र, देवी देवता, बौद्ध दर्शन, मंडल जो 
						ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और उपदेश। विस्तृत और समर्पित रूप 
						से 
						रचा गया एक थंगक धार्मिक महत्व का विस्तृत चित्रण होता है।
 
 थंगक को बनाने की शैली अपने आप में अत्यंत विशिष्ट है 
						जिसमें आध्यात्मिक प्रतीकों का विशेष महत्व होता है। ये
						सूती कपड़े के ऊपर बनाए जाते हैं। पृष्ठभूमि सफेद होती है 
						लेकिन इसको महीन कारीगरी से भरा जा सकता है। रंगों 
						का अपना अलग महत्व होता है। सफेद रंग शांति का प्रतीक माना 
						गया है, सुनहरा नवजीवन, आनंद और निर्वाण का, 
						लाल रंग प्रेम और द्वेष दोनों की पराकाष्ठा का, काला रंग 
						क्रोध का, पीला अनुकंपा और हरा चेतना व बोध का। थंगक 
						के लिये प्रयोग में लाए जाने वाले ये सभी रंग वनस्पति अथवा 
						खनिज से प्राकृतिक रूप मे प्राप्त किये जाते हैं।
 
  थंगक कलाकृतियाँ आस्था, समर्पण, प्रेम और गहन धार्मिक 
						भावना के साथ बनाई जाती हैं। इन्हें ईश्वर की महान 
						शक्ति से सीधा संबंधित समझा जाता है। कलाकारों को एक थंगक 
						बनाने में महीनों लगते हैं क्यों कि यह निरंतर 
						परिश्रम और लंबे समय की कारीगरी है। ये चित्र बहुत ही 
						बारीक और उत्कृष्ट होते हैं अत: एक बार तैयार हो जाने के
						बाद इन्हें आदर के साथ संभाल कर रखा जाता है । अगर इन्हें 
						दीवार पर नहीं लगाया गया तो रसायनों से संरक्षित कर 
						दिया जाता है।
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