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तंजावुर कलाकृतियाँ
भारत की
समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर
से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला
दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों
की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है
तंजावुर
कलाकृतियों के
विषय में -
भारत में मंदिरों और विहारों की दीवारों पर देवी देवताओं,
संतों के और प्रकृति के नयानाभिराम चित्रण के विषय में
हर भारतीय जानता है। हममें से अधिकतर लोगों ने इनके दर्शन
किये हुए हैं।लेकिन भित्तिचित्रों के अतिरिक्त चित्रों की
एक और शैली भी है जिसे लघुचित्र कहते हैं।
ये चित्र लकड़ी,
काँच या कागज़ पर बनाए जाते हैं। इन्हें
आसानी से ले जाया जा सकता है और ये अनोखे उपहार
साबित हो सकते हैं। तंजावुर कलाकृतियाँ लघुचित्रों की ऐसी
ही एक शैली है हालाँकि आजकल काफी बड़े आकार की
तंजावुर कलाकृतियाँ भी बज़ार में उपलब्ध हैं। तमिलनाडु में
तंजावुर नाम का एक छोटा सा नगर इस कलाशैली के
कारण पूरे विश्व में जाना जाता है।
भारतीय लोककला के अम्तर्गत तंजावुर शैली का जन्म उस समय
हुआ जब १८वीं सदी में तंजावुर में मराठों का राज्य
था। मराठी राजवाड़ों में कला और संस्कृति को आश्रय देने
की अदभुत परंपरा थी।
तंजावुर कलाकृतियों का मूल फलक कटहल के लकड़ी का बना होता
है। ये वृक्ष यहंा बहुतायत से पाए जाते हैं। लकड़ी
के मूल फलक के पर गत्ते को गोंद से चिपकाया जाता है। इसके
ऊपर साफ सूती कपड़े को जमा कर चूना पत्थर का एक लेप किया
जाता है। फिर इसे चिकने पत्थर या सीप से घिस कर समतल बनाया
जाता है। चित्र की बाहरी रेखाओं को रंग भरने से पहले हाथ से खींचा जाता जाता है। जिन
स्थानों पर रंगीन पत्थर या रत्नों के रंग को भरना होता
है वे खाली छोड़ दिये जाते हैं। बाद में कच्चे चूनापत्थर
और गोंद के महीन मिश्रण को खाली स्थान में भरा जाता है।
इन पर रत्नों और पत्थरों को चिपका दिया जाता है। रत्नों के
किनारे वाले स्थान पर सोने के वर्क को इमली के गोंद से
चिपकाया जाता है जिससे यह स्थान उभर कर सुन्दर दिखाई देने
लगता है। सोने के वर्क और रत्नों के जड़ाव के बाद मुलायम
कूची से कलाकृति को पूरा कर दिया जाता है। इसके लिये
वनस्पति रंगों का प्रयोग किया जाता है।
तंजवुर चित्रों के विषय धर्म और पौराणिक कथाएँ हैं। अधिकतर
चित्रों में आपको नवनीत कृष्ण के दर्शन होंगे जिसमें वे
रत्नों और आभूषणों से सुसज्जित फूल पत्तियों की पृष्ठभूमि
में हाथ में मक्खन लिये मुस्कुरा रहे हैं। एक और प्रमुख
दृष्य श्री राम के राज्याभिषेक का है। समय के साथ चित्रों
के विषय में भी परिवर्तन आया है और अब अनेक विषयों के
चित्र बाजाऱ में उपलब्ध होने लगे हैं। भारत अमरीका और
यूरोप के अनेक देशों के संग्रहालयों में इन कलाकृतियों को
देखा जा सकता है।
रत्नों और सोने की कारीगरी होने के कारण ये कलाकृतियाँ
बहुमूल्य होती हैं। अनेक कला संस्थान आजकल अपने
पाठ्यक्रम में तंजावुर कलाकृतियों का प्रशिक्षण देते हैं। |