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						1पिछवई
 
						भारत की 
						समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर 
						से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला 
						दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों 
						की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है 
						पिछवई के 
						विषय में -  
 पिछवई 
						शब्द का शाब्दिक अर्थ है पीछेवाली। राजस्थान में उदयपुर 
						के निकट छोटे से धार्मिक नगर नाथद्वारा के श्रीनाथजी
						मंदिर तथा अन्य मंदिरों में मुख्य मूर्ति के पीछे दीवार पर 
						लगाने के लिये इन वृहदाकार चित्रों का निर्माण कपड़े पर
						किया जाता है, जो मंदिर की भव्यता बढ़ाने के साथ साथ 
						भक्तों को श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र की जानकारी देने भी
						सहायक होता है।  चटक रंगों में डूबे श्री कृष्ण की लीलाओं 
						के ये चित्र हर आगंतुक को अपनी ओर आकर्षित करते
						हैं। हर साल विशेष अवसरों और पर्वो पर मंदिर में नयी पिछवई 
						लगायी जाती है। 
						पिछवई कलाकृतियों के प्रमुख विषय श्री कृष्ण की रासलीला, 
						राजाओं जलूस और प्रकृति चित्रण होते हैं। अलग अलग 
						मौसमों का पिछवई में सुन्दर चित्रण मिलता है जिसे बारह 
						मासा भी कहा जाता है। राधा और कृष्ण की प्रेमलीलाओं 
						के मनोहर चित्रों से सुसज्जित एक और लोकप्रिय विषय राग 
						माला के नाम से जाना जाता है।
 पिछवई के पर्दे पर बीच में प्रमुख दृश्य होता है और चारों 
						ओर दो पतले किनारों के बीच में एक चौड़ा किनारा बनाया 
						जाता है। इस किनारे के लिये लकड़ी के ठप्पों की सहायता से 
						फूल और पत्तियों की अल्पनाओं के विभिन्न आकारों 
						से पूरी बेल बनायी जाती है।
 
 आम तौर पर प्रमुख दृश्य बनाने वाले और किनारा बनाने वाले 
						कलाकार अलग अलग होते हैं। किनारों पर काम करने 
						वाले कलाकार प्रमुख कारीगर के शिष्य या बच्चे होते हैं। 
						प्रमुख आकृति में कपड़ों और गहनों की सजावट में काफी 
						विस्तार प्रदर्शित किया जाता है और सोने व चांदी के रंगों 
						का प्रयोग किया जाता है। मंहगी पिछवई में असली सोने का 
						काम और बहुमूल्य रत्नों की सजावट की जाती है। इस सबके लिये 
						सधे हुए हाथ और गहरे अनुभव की आवश्यकता 
						होती है।
 
 नाथद्वारा और उदयपुर इन कलाकृतियों के प्रमुख गढ़ हैं। 
						पिछवई की कला इन नगरों की गलियों में बिखरी पड़ी है। 
						अनेक घरों के पहले कमरे में आपको एक वृहदाकार कलाकक्ष का 
						दृश्य देखने को मिलेगा। इन कलाकारेां की तन्यता
  देखकर आप भाव विभोर हो उठेंगे। 
						समय के साथ पिछवई के ये कलाकृतियाँ मंदिर से बाहर 
						कलाकृतियों की दूकानों तक पहुँच गयी हैं और खरीदारों की
						इच्छा और मांग के अनुसार अलग अलग आकारों और विषयों में 
						हस्तकला के विभिन्न प्रतिष्ठानों में उपलब्ध हैं । ये 
						असली सिल्क या आर्ट सिल्क पर बनी हो सकती हैं। 
 प्रमाणिक और पुरातात्विक महत्व की पिछवई संग्रहालयों मे 
						देखी जा सकती हैं।
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