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पीपल के
पत्तों पर चित्रकारी
भारत की
समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर
से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला
दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों
की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है
पीपल के पत्तों पर चित्रकारी के
विषय में -
पीपल के पत्ते के ऊपर लिखने की कला कागज के
आविष्कार से अधिक पुरानी है और उतना ही पुराना है
पीपल पर कलाकृतियों के निर्माण का बारीक काम।
हजारों वर्षों पूर्व दक्षिण भारत के केरल प्रांत
में प्रारंभ हुई, यह कला कलाकार के धैर्य और
ingeniousness का परिचय देती है। आकर्षक आकृति और
बनावट के कारण इस कला के लिये पीपल के पत्ते का
चुनाव किया जाता है। अभिनंदन पत्रों, दीवार की
सजावटों, पुस्तक चिह्नों तथा उपहार की अन्य
सामग्रियों के लिये पीपल के पत्तों पर की गई
चित्रकारी का प्रयोग प्रमुखता से होता है।
चित्रकारी के विषय और विधि-
इस चित्रकारी के लिये जिन विषयों का चुनाव किया
जाता है वे हैं- भारतीय धार्मिक व्यक्तित्व, पशु,
पक्षी, दृश्यांकन और आधुनिक अमूर्त आकृतियाँ।
पीपल के पत्ते पर कलाकारी महँगी नहीं है। इसके
लिये पीपल के पत्ते, तैलरंग या एक्रिलिक रंग तथा
पृष्ठभूमि के लिये एक कागज की आवश्यकता होती है।
पत्तो पर कलाकारी का काम दो चरणों में पूरा होता
है। पहला- पत्तो को सुखाने का काम और दूसरा- उन पर
चित्र कारी करने का काम।
पीपल के पत्ते को सुखाने के लिये कुछ पत्तों को
पानी से भरे कटोरे में १५ दिन से एक महीने तक रखा
जाता है। प्रतिदिन उनकी स्थिति पर निगरानी रखी
जाती है। दो तीन दिनों के बाद पानी बदल दिया जाता
है। पत्तियों को लंबे समय तक पानी में रखने से
उनके ऊपर की हरी सतह निकलकर अलग हो जाती है, इसे
बहुत सावधानी के साथ साफ कर दिया जाता है। ऊपर की
हरियाली निकल जाने के बाद पत्ते की नसों का एक
सुंदर जाल निकल आता है। यह सफेद या धुँधले सफेद
रंग का होता है। इस समय इसे पानी से निकालकर सुखा
लिया जाता है।
पत्तों पर चित्रकारी के लिये पत्ते के पीछे एक
मजबूत कागज लगाया जाता है, इसके तीन कारण है-
१- पीपल का पत्ता साफ कर देने के बाद बहुत नाजुक हो जाता है इसलिये जरा सी ठोकर लगते ही वह टूक सकता है।
कागज इसे मजबूती प्रदान करता है और टूटने से बचाता
है।
२- पीपल का पत्ता साफ कर देने के बाद पर पेंसिल से रेखाएँ खींचना संभव
नहीं होता इसलिये पीछे रखे गए कागज पर ही चित्र की
बाह्य रेखाएँ खींचकर इसे पत्ते के पीछे रख दिया
जाता है। यह चित्र पत्ते की महीन नसों का जाली में
से दिखाई देता है और पत्ते पर रंग लगाना आसान हो
जाता है।
३- यह पीपल
के पत्ते को एक रंगीन पृष्ठभूमि प्रदान करता है।
चित्रकारी के उपयोगी सुझाव-
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पीपल
का पत्ता साफ कर देने के बाद को रंगने के लिये पृष्ठ भूमि के
विरोधी रंगों का प्रयोग किया जाता है ताकि चित्र
निखर कर आए।
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इसे कई रंगों से रंगा जा सकता है। आधे पीपल की
पत्ते को एक रंग से और आधे को दूसरे रंग से रंगा जा सकता
है। कुछ पत्तों को मिलाकर एक सुंदर आकृति भी
बनाई जा सकती है, जैसी दाहिनी ओर के चित्र में गणेश का आकृति बनाई गई
है।
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पत्ती के किनारों को चमकीला बनाने के लिये उन पर
सुनहरे रंग का प्रयोग किया जाता है। जगमगाहट लाने
के लिये ग्लिटर का प्रयोग भी होता है। आभूषणों को
रंगने में सुनहरे या रुपहले रंग का प्रयोग होता
है।
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पीपल के पत्ते को सुखाने के बाद किसी एक रंग में
डुबोकर उसे रंगीन भी बनाया जा सकता है।
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एक पत्ते पर कुछ रंग लगाकर और उस पर दूसरा पत्ता
चिपकाकर अलग करने से सुंदर चित्रकारी अपने आप बनी
हुई दिखाई देती हैं।
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पीपल के छोटे सूखे पत्ते विवाह के निमंत्रण पत्र
के ऊपर भी चिपकाए जाते हैं।
२६ मई २०१४ |