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मधुबनी
भारत की
समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर
से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला
दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों
की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है
मधुबनी के
विषय में -
मधुबनी लोक कला बिहार के मधुबनी स्थान से संबन्धित
है। मधुबन का अर्थ है 'शहद का वन' और यह स्थान राधा
कृष्ण की मधुर लीलाओं के लिये प्रसिद्ध है। मधुबनी की लोक
कला में भी कृष्ण की लीलाओं को चित्रित किया
गया है।यह कला आम और केलों के झुरमुट में कच्ची झोपड़ियों
से घिरे हरे भरे तालाब वाले इस ग्राम में पुश्तों पुरानी
है और मधुबन के आसपास पूरे मिथिला इलाके में फैली हुई है।
विद्यापति की मैथिली कविताओं के रचनास्थल इस
इलाके में आज मुज़फ्फपुर, मधुबनी, दरभंगा और सहरसा ज़िले
आते हैं।
मधुबनी की कलाकृतियों तैयार करने के लिये हाथ से बने कागज़
को गोबर से लीप कर उसके ऊपर वनस्पति रंगों से
पौराणिक गाथाओं को चित्रों के रूप में उतारा जाता है।
कलाकार अपने चित्रों के लिये रंग स्वयं तैयार करते हैं और
बाँस की तीलियों में रूई लपेट कर अनेक आकारों की तूलिकाओं
को भी स्वयं तैयार करते हैं ।
इन कलाकृतियों में गुलाबी, पीला, नीला, सिदूरा (लाल) और
सुगापाखी (हरा) रंगों का प्रयोग होता है। काला रंग ज्वार को
जला कर प्राप्त किया जाता है या फिर दिये की कालिख को गोबर
के साथ मिला कर तैयार किया जाता है, पीला रंग
हल्दी और चूने को बरगद की पत्तियों के दूध में मिला कर
तैयार किया जाता है पलाश या टेसू के फूल से नारंगी,
कुसुंभ के फूलों से लाल और बेल की पत्तियों से हरा रंग
बनाया जाता है। रंगों को स्थायी और चमकदार बनाने के
लिये उन्हें बकरी के दूध में घोला जाता है।
मानव और देवी देवताओं के चित्रण के साथ साथ पशुपक्षी, पेड़
पौधे और ज्यामितीय आकारों को भी मधुबनी की
कला में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। ये आकार भी
पारंपरिक तरीको से बनाए जाते हैं ।
तोते, कछुए, मछलियाँ,
सूरज और चांद मधुबनी के लोकप्रिय विषय हैं। हाथी, घोड़े,
शेर, बाँस, कमल, फूल, लताएँ और स्वास्तिक धन धान्य की
समृद्धि के लिये शुभ मानकर चित्रित किये जाते हैं।
कागज़ पर बनी कलाकृतियों के पीछे महीन कपड़ा लगा कर इन्हें
पारिवारिक धरोहर के रूप में सहेज कर रखा जाता है।
यही कारण है कि हर परिवार में मधुबनी कलाकृतियों के आकार,
रंग संयोजन और विषय वस्तु में भिन्नता के दर्शन
होते हैं। यह भिन्नता ही उस परिवार की विशेषता समझी जाती
है। पारंपरिक रूप से विशेष अवसरों पर घर में बनाई
जाने वाली यह कला आज विश्व के बाज़ारों में लोकप्रिय हो
चली है। हालाँकि इसके कलाकार आज भी अत्यंत सादगीपूर्ण
जीवन बिता रहे हैं।
दीवार और कागज़ के साथ यह कला मिट्टी के पात्रों, पंखों और
विवाह के अवसर पर प्रयुक्त होने वाले थाल और थालियों
पर भी की जाती है। आज मधुबनी कलाकृतियाँ कला दीर्घाओं,
संग्रहालयों और हस्तकला की दूकानों के साथ
विश्वजाल पर भी खरीदी जा सकती हैं। |