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						1चित्तर
 
						भारत की 
						समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर 
						से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला 
						दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों 
						की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है 
						चित्तर 
						कलाकृतियों के 
						विषय में -  
 
						पत्थर काल के युग से भारतीय उप महाद्वीप में भूमि और 
						दीवारों पर कलाकृतियाँ बनाने की परंपरा रही है। प्राचीनअभिलेखों से ज्ञात होता है कि हमारे पूवर्ज भूमि और 
						दीवारों को प्रकृतिक रंगों से चित्रित करने में विश्वास 
						रखते थे। 
						सौन्दर्य संरचना की यह परंपरा अनेक भारतीय जन जातियों और 
						ग्रामीण जातियों में आज भी जारी है। इसी वर्ग की
						एक दक्षिण भारत चित्रकला है- चित्तर। 
 उत्तर कर्नाटक के शिमोंग ज़िले में विशेष रूप से दीवरू 
						जाति की महिलाओं द्वारा यह चित्रकला की जाती है। 
						स्थानीय गाँव के कच्चे घरों में फर्श और दीवारों पर सजे इस 
						कला के नमूनों का सौन्दर्य देखते ही बनता है। विशेष रूप
						से विवाह और अन्य पारंपरिक अवसरों पर कुछ विशेष नमूनों को 
						भी बनाया जाता है। हर लोक कला की भाँति यह
						लोक कला भी शहरों में लोकप्रिय होते ही फर्श और दीवारों से 
						निकल कर कागज़ और कपड़ों पर आ गयी है और बाज़ार
						में उपलब्ध है।
 
 चित्तर को हस्त निर्मित कागज़ पर बनाया जाता है। इस कागज़ 
						पर पहले मिट्टी का लेप किया जाता है और पृष्ठभूमि 
						को मनचाहा रंग दिया जाता है। रंगों के लिये प्राकृतिक 
						वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये लाल 
						रंग के लिये लाल रंग के एक विशेष पत्थर को पीस कर रंग 
						बनाया जाता है, चावल को जला कर और कुछ दिनों तक 
						पानी में भिगो कर काला रंग बनाया जाता है, मिट्टी और चावल 
						से सफेद तथा गुर्गी के बीज से पीला रंग बनाया जाता 
						है।
 
 रंगों को स्थायी और चमकदार बनाने के लिये गोंद का प्रयोग 
						होता है तथा गोंद भी स्थानीय वृक्षों से प्राप्त किया जाता
						है। रंग को घोलने के लिये नारियल के खोपरे के आधे भाग का 
						प्रयोग होता है। नारियल की एक सामान्य रस्सी से इन 
						आधे खोपरों को इस प्रकार बाँध कर लटकाया जाता है जिससे 
						दोनों हाथ मुक्त रखते हुए सुविधानुसार चित्रांकन में ध्यान
						लगाया जा सके।
 
 चित्तर की विषयवस्तु धार्मिक और सामाजिक होती है। धार्मिक 
						विषयों में देवी देवताओं की रथ यात्राएं, तुलसी का 
						पौधा, चौक और आरती के चित्र बनाए जाते हैं। चौक और आरतियों 
						में दिये रखने के स्थान पर खाली जगह बनायी
						जाती हैं
  ताकि उत्सव या आरती के समय वहाँ दिये सजाए जा 
						सकें। कभी-कभी ८० दियों तक के स्थान वाले बड़े चौक
						भी बनाए जाते हैं। 
						सामाजिक विषयों में फसल सबसे प्रमुख है। सारे प्रमुख उत्सव 
						फ़सल कटने पर ही मनाए जाते हैं अत: यह समय इस 
						जनजाति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। फसल के बाद 
						मैदानों में गोबर और मिट्टी से पुती हुयी फूस की टोकरियों
						के ढेर दिखायी देते हैं। टोकरियाँ पिसे हुए चावल के गीले 
						मिश्रण से बनाए गए चित्तर से सजी होती हैं। इन्हें अच्छी
						फसल का प्रतीक समझा जाता है। इस प्रकार चित्तर न केवल एक 
						लोक कला है अपितु अपने आप में एक चित्र उत्सव 
						भी है। |