यामिनी खुश
थी, बेहद! बावजूद इसके कि हॉल में घुसते ही वह उस औरत से टकराई
थी, जिसके वहाँ होने का उसे गुमान तक न था। हालांकि होना चाहिए
था, क्योंकि इस शहर का भारतीय समुदाय इतना भी बड़ा नहीं! फिर वह
उसी की तरह गुजराती है। दरअसल कुछ लोग इतने गैर जरूरी होते हैं
आपकी जिन्दगी में कि स्मृति से उस अल्पकालिक मुलाकात के तत्काल
बाद बाहर हो जाते हैं जो ऐसी ही किन्हीं परिस्थितियों में होती
है। फिर यामिनी के मस्तिष्क ने तो उसे सोच- समझकर खारिज किया
था कुछ अल्पकालिक मुलाकातों के बाद। पहली बार जब उसने अन्विता
और वशिष्ठ को देखा था, तो उसे बिल्कुल ही अन्दाजा न था कि वह
एक पिछले आकाश के सितारे से मिल रही है। रवि ने ही पहचाना और
परिचय कराया -''इन्हें मिलो, ये हैं अन्विता, कभी हौकी के
मैदान में दिखाई पड़ती थीं। आजकल अमेरिका में वशिष्ठ के घर की
शोभा बढ़ा रही हैं।'' इन मामलों में यामिनी की याददाश्त हमेशा
अच्छी रही है, जेनरल नालेज में कभी अस्सी प्रतिशत से कम नहीं
आया। उसे याद आया, जब वह कॉलेज में पढ़ती थी, अक्सर ही इसकी
तस्वीरे अखबारों में देखती थी। तब अन्विता भी उसी की तरह
अठारह-उन्नीस की हुआ करती थी पर भारत की महिला टीम की कफ़्तान
थी।
अपनी नादानी में उसने अपनी याददाश्त की पुष्टि चाही - ''मुझे
लगता है मैंने आपका इन्टरव्यू ''धर्मयुग ''में पढ़ा था।''
अन्विता निहाल हो उठी - ''हाँ, हाँ, तब मैं बहुत छोटी थी। पूरे
दो पेज लम्बा इन्टरव्यू छपा था मेरा। बड़े से फ़ोटो के साथ।
धर्मयुग का वह अंक ही हम खिलाड़ियों पर केन्द्रित था। तब हमारी
टीम पाकिस्तान से जीत कर लौटी थी। मैंने तो उस पेज की
कटिंग अभी भी अपने पास रखी हुई है। और भी बहुत सारी चीजें
हैं।''
''हाँ होंगी ही। ''यामिनी सहज भाव से मुसकराई थी।
आस पास कई लोग थे। वह ऊँचे स्वर में बोल रही थी। हो सकता है
कुछ और लोगों ने भी सुना हो। एक भूतपूर्व स्टार को अपने
गौरवशाली अतीत की गाथा सुनाते हुए ...
यामिनी खुश हुई थी। परिचय किया था। जाना था उसके बारे में। वह
अब हॉकी नहीं खेलती। दो बच्चे हैं, स्कूल में पढ़ते हैं। वह
व्यस्त है - घर- परिवार और बच्चों के बीच।
हर साल नव रात्रि में होने वाला डांडिया रास उत्सव अपनी
समाप्ति पर था। यामिनी और रवि ने भी घर की राह ली।
''आपसे मिलना होता रहेगा।'' यही आखिरी वाक्य था उस दिन, जो
यामिनी ने उससे कहा था।
तब कहाँ मालूम था कि यह उसके न चाहने के बावजूद घटित होता
रहेगा!
उसने रवि से कहा था, कुछ और मुलाकातों के बाद वह उन्हें घर पर
बुलायेगी। मित्रता करेगी अन्विता और वशिष्ठ से। घर पर
खाने पर बुला सकते हैं। भली-सी लगी । लेकिन यह हुआ नहीं और
अगली मुलाकात भी एक सार्वजनिक उत्सव में ही हुई।
वैसे अगली मुलाकात का मौका भी बहुत जल्द नहीं आया। वह अपनी
गृहस्थी में उलझी रही। दुर्गा पूजा में उसने भी अपना
स्टाल लगाया - रंगोली की कलात्मक डिजायन वाले दियों का और
बाजार से कम कीमत पर होने के कारण उसके सारे दिए
फ़टाफ़ट बिक गए। वह खुश हुई, संतुष्ट भी। लोगों ने उसकी
कलात्मकता को सराहा और बताया कि इन खूबसूरत दियों को वे
बाजार के बराबर कीमत पर भी खरीदते। वह आराम से दो दियों के दो
डॉलर माँग सकती थी।
उसने यह सब पैसे कमाने के लिए नहीं किया था। उसके अन्दर एक
छुपा हुआ कलाकार था जो बाहर आने को तड़प रहा था।
अपने खूबसूरत चेहरे या बड़ी-बड़ी आँखों का यामिनी को कभी गर्व
नहीं रहा, न छरहरी देहयष्टि का। ये चीजे तो उसे उस
जन्मजात प्रतिभा के साथ विरासत में मिल ही गई थीं। वह अपने को
अभिव्यक्त करना चाहती थी और इस तरह खुश थी।
अगले साल जब फिर लोगों ने दुर्गा बाड़ी में उसका स्टाल तलाशा तो
उसे बेहद खुशी हुई। अपने खूबसूरत दियों को टेबल पर
बिखेरे वह एक ग्राहक से निबट रही थी, जब उसने अन्विता को उस
पंडाल में देखा। वह एकदम से खुश हो गई। ''कैसी हैं आप?'' नजदीक
आते ही वह बोल उठी। फिर आसपास के लोगों से परिचय कराती-सी बोली
''पता है, ये हैं अन्विता। अस्सी के दशक में लड़कियों की नेशनल
हाकी टीम की कफ़्तान हुआ करती थीं।''
''अच्छा! ''कुछ लोगों ने दिलचस्पी ली। अन्विता उनसे बातें करने
में व्यस्त हो गई। भीड़ बहुत थी। यामिनी ने जाना भी नहीं कब वह
वहाँ से चली भी गई।
वह व्यस्त थी।
उसने ध्यान नहीं दिया।
फिर तीसरी मुलाकात - उसकी दोस्त के बेटे की जन्मदिन पार्टी।
छोटा सा, पारिवारिक उत्सव। विनी ने पहले ही बतला दिया था कि वह
कोई बड़ा आयोजन नहीं कर रही और गिने-चुने आत्मीयों को बुला रही
है। यामिनी ने सोचा था अकेली गुजरातन वह वहाँ होगी। लेकिन विनी
के घर में अन्विता को पाकर चौंक गई। प्रसन्न भी हुई। कोई अपनी
भाषा बोलने वाला है यहाँ।'' कोने में ले जाकर उसने विनी से
पूछा ''तुम अन्विता को जानती हो? कब से ?''
''अरे, वो एक्स हॉकी स्टार है, तुम्हें पता है ? बहुत अच्छी
खिलाड़ी रही है। कैप्टेन। तुम्हें पता है ?''
''हाँ, हाँ। लेकिन तुम कैसे जानती हो?''
इसका पति मेरे पति का कुलीग है।
''अच्छा।''समस्या का समाधान हो गया।
यामिनी अन्विता के ठीक सामने जा बैठी।
मुसकराई - ''पहचाना ''?
''नहीं, यू नो, मेरी याददाश्त अच्छी नहीं है। हम मिले हैं पहले?
''हाँ, दो बार। आपको याद नहीं? मैं यामिनी। दुर्गा बाड़ी में भी
मिले थे।
''अच्छा।''उसने अब भी न पहचानने का नाटक किया।
यामिनी को बुरा लगा। वह टेबल के दूसरी ओर बैठी महिला से बातें
करने लगी। वे आत्मीय थीं। उन्हें यामिनी के दिए याद थे।
उसकी कलाकारी याद थी और याद थीं बहुत सारी गैर जरूरी बातें, जो
खाली बैठी, बतकट्टी करने वाली महिलाएँ आपस में
बतिया लेती हैं। यामिनी उनके साथ व्यस्त हो गई।
सहसा टेबल के दूसरी ओर बैठी अन्विता ने उनकी बातचीत को बीच में
ही रोकते हुए टोका, वह उस दूसरी महिला जिसका नाम अरूणा था, से
मुखातिब थी - ''मुझे लगता है मैं आपको जानती हूँ।''
अरूणा के चेहरे पर परिचय का कोई भाव नहीं उभरा।
''याद कीजिए, हम मिले थे - कनाक्टीकट में।''
''हम कनाक्टीकट में बारह साल पहले रहते थे।''
''हाँ, मैं तभी की बात कर रही हूँ। हम आपके स्पैनिश पड़ोसी के
घर आया करते थे। वो मिस्टर और मिसेज ट्वेन।''
अब शायद अरूणा को याद आ गया था, वह उससे बातें करने लगी।
यामिनी चुप उन्हें सुन रही थी। अचानक एक स्वर आया - ''यामिनी
?''
उसने सिर उठाया। आँखॊं के अपरिचय को भांपती वह बोलीं ''मैं
विद्या। याद है, हम मिले थे? यहीं, विनी के घर पर।
यामिनी ने कोई नाटक नहीं किया। उसे आसानी से याद आ गई पिछली
मुलाकात।
सहसा अन्विता का स्वर सबसे ऊँचा होकर उभरा - ''कैसा होता है न।
कुछ लोगों को आप बारह साल बाद भी पहचान लेते हैं।
अरूणा जी से मैं बारह साल बाद मिल रही हूँ। एकदम से याद आ गया
और यामिनी का चेहरा ही मुझे याद नहीं था। जबकि
इससे पिछले साल ही मैं मिली थी।''
अबतक टेबल के चारों ओर महिलाओं ने जगह ले ली थी। पुरूष दूसरे
कमरे में अपनी महफ़िल जमाए थे। जन्मदिन की पार्टी
की टेबल और कमरा सज चुका था लेकिन बर्थ डे ब्वाय अपना बर्थडे
मनाने को तैयार नहीं था। उसकी चार साला बुद्धि में यह
समा नहीं रहा था कि उसका जन्मदिन तो पिछले सोमवार को था - जब
चार सितम्बर था तो आज वीक एन्ड यानी रविवार को
उसका जन्मदिन क्यों मनाया जा रहा है? विनी उसे केक काटने को
समझा रही थी और वह बार-बार एक ही बात कह रहा था -
"लेकिन आज मेरा जन्मदिन नहीं है। यह
चार सितम्बर को था।"
अब अमेरिका की छुट्टियाँ विहीन जिन्दगी की कथा उसे कौन समझाए,
जहाँ सारे पर्व त्योहार सप्ताहान्त में धकेल दिए जाते
हैं और समझाने पर भी वह उसकी बाल बुद्धि में क्यों आए? पिछली
बार तो चार सितम्बर को ही मना था। सही दिन। अब उस
दिन शनिवार था, उसकी उसे कहाँ समझ! सो विनी उसे उदाहरण दे -
देकर मना रही थी - ''बट वी अल्वेज सेलेब्रेट एवरीथिंग
ऑन वीकेन्ड। सो योर बर्थ डे आलसो।''( लेकिन हम हमेशा सप्ताहांत
में सबकुछ मनाते हैं, इसीलिए तुम्हारा जन्मदिन भी
सप्ताहांत में मना रहे हैं)
''नो। नो।'' पार्थ रोने लगा।
रसभंग हुआ! महिला पार्टी बर्खास्त हुई। बच्चे को मनाना था।
यामिनी ने काफ़ी अपमानित महसूस किया था। अन्विता के
बोलने का अन्दाज ऐसा था जैसे वह उसे नाचीज साबित करने पर तुली
हुई हो। बारह साल पुरानी मुलाकात उसे याद थी लेकिन
यामिनी नहीं। यामिनी ने तय किया वह उसे आगे से नहीं पहचानेगी। उस पार्टी में
सब उसके परिचित ही थे। अन्विता ही नई थी वहाँ।
केक, मोमबत्तियाँ और गुब्बारे यानी कि जन्मदिन! गुब्बारे फ़ोड़ने
के आखिरी अनुष्ठान के बाद जब पार्थ स्वस्थ मन से अपने
दोस्तों के बीच खेलने- खाने में व्यस्त हो गया तो फिर से
महिलाओं की मीटींग डायनिंग टेबल के चारों ओर जा जुटी और पुरुष
अपनी प्लेटें लिए वापस बाहर के कमरे में टी वी के सामने जम गए।
''पता है, जब मैं हॉकी खेलती थी .....''अन्विता ने शुरू किया।
तब छोटे-छोटे ग्रुपों में बँटे लोगों का ध्यान खाने पर अधिक
था। काफ़ी देर हो गई थी। बच्चे ने बात मानने में काफ़ी देर लगाई
थी और इससे ज्यादा फ़र्क बड़ों को पड़ा था। ऐसा ही होता भी है,
इसीलिए तो हम अपनी दुनिया में बच्चों को अपनी
सुविधानुसार शामिल करते हैं और अक्सर करते ही नहीं।
घर पर भीड थी। बड़ों की। पार्थ को मालूम था आज का हीरो वह है।
वह अपने ढेर सारे दोस्तों के साथ अपने खिलौनों वाले कमरे
में था। सामान्यत: वहाँ बैठकर खाने से मॉम गुस्सा करती हैं,
लेकिन आज वह राजा है। वह खेलेगा और तब तक नहीं खायेगा
जबतक उसके दोस्तों में से किसी की मॉम उपर के कमरे में न आ
धमके और उसकी मॉम के पास जाकर उसका भाँडा न फ़ोड़
दे। वह जानता है, यह होना नहीं है।
मॉम लोगों को फ़ुरसत कहाँ? उनका खाना और बोलना साथ-साथ चलता है।
और जब अपने- अपने बच्चों की कथा बाँटी जा
रही है तो वास्तव में बच्चों को देखने का वक्त तो बाद में
आयेगा। फिर अन्विता की हाकी कथा भी कौन सुने! कोई तो जानता
नहीं उसे। अरूणा से बारह साल पुरानी मुलाकात का हवाला देकर
उसने उसे अपनी बगल में बिठा जरूर लिया लेकिन शायद
अरूणा को इस बाबत कुछ याद नहीं, याकि वह भी अपने बेटे की ही
कथा सुनाना चाहती है जो वीकेन्ड में युनिवर्सिटी से घर आ
तो जाता है लेकिन उनके इतने प्यार से बनाए आलू के पराँठे नहीं
खाना चाहता।
वे दुखी हैं। यहाँ अमेरिका में बच्चे माँ -बाप की एकदम नहीं
सुनते। सेहत का खयाल नहीं रखते। केवल पिजा और मैक्डोनाल्ड
के सैंडविच खाते हैं। ऊपर से लॉ ऐसे हैं कि कुछ बोलो तो नाइन
वन वन कॉल करके पुलिस बुला लेते हैं। गोया हम माँ-बाप न
हुए, दुश्मन हैं।
''हाँ, ऐसा ही है, और क्या।''मिसेज सेन ने हामी भरी। ''मेरे
बगल वाले मुस्लिम हैं। बेटी हो गई अठारह साल की। आधी खुली
ड्रेस पहन कर अपनी दोस्तों की पार्टी में जा रही थी। खान साहब
ने देखा तो डाँट दिया -''ऐसे कपड़े पहनकर नहीं जायेगी तू।''
उसने नाइन वन वन कॉल कर दिया।''
''और इनकी डेट्स के बारे में कभी मत पूछना।'' रीं-रीं करने
लगेंगे। मेरी बेटी? मैंने तो उसे छोड़ दिया है। फिर उसकी आवाज
की नकल उतारती नीरा कहने लगी ''आँ, हाँ मेरे कहाँ डेट्स हैं।''
टेबल पर हँसी की लहर दौड़ गई।
अन्विता परेशान! यामिनी की बगल में आ बैठी। ''तुम क्या कर रही
हो आजकल ?''
''एक कोर्स वर्क ज्वायन किया है। बाकी वही सब पेन्टिंग, आर्ट
वर्क।"
''तुम्हारी पेन्टिंग्स काफ़ी अच्छी थीं।''
अरूणा भसीन ने जोड़ा।
अब सारी चर्चा का केन्द्र यामिनी की पेन्टिंग - जिनकी
प्रदर्शनी उसने पिछले दिनों लगाई थी और उसके दिये।
''टी वी पर कितना सुन्दर प्रोग्राम आ रहा है।'' अन्विता उठकर
बाहर के कमरे में जा बैठी। मुड़कर देखा यामिनी आयेगी। वह
नहीं गई।
अन्विता थोड़ी देर बाद वापस आ गई।
तब तक रवि आ गया था। यामिनी ने सबको बाय कहा। ''मैं चली।''
''हाँ, हाँ।'' अन्विता जल्दी से बोली। भीड़ अब उसे सुनेगी!
कमरे से निकलते हुए यामिनी ने सुना, वह बतला रही थी - ''यू नो,
मैं हॉकी खेलती थी। टीम इन्डिया की कैप्टेन थी मैं।''
तब वह मुसकराई थी और कमरे से बाहर हो गई थी।
और यह आज है। इस बीच फिर एक बरस गुजर गया है। इतनी घटनाएँ घटी
हैं कि उस मुलाकात की स्मृति उतर गई मन से।
वह कटु थी शायद इसलिए भी मस्तिष्क ने उसे खारिज कर दिया। लेकिन
आज यह गरबा नृत्य के हॉल के दरवाजे पर खड़ी है।
नवरात्रि उत्सव का आज अखिरी दिन है। इस साल नवरात्रि के आखिरी
दिन सप्ताहान्त में पड़े है इसलिए भीड़ अधिक है। हॉल
भरा हुआ है। स्टेज पर तमाम वाद्यों के साथ लोग मौजूद हैं। गरबा
गीत चल रहा है और नाच रहे हैं टोलियों में स्त्री पुरूष,
बच्चे। कमरे में तेज प्रकाश है इसलिए यह सब यामिनी ने दूर से
ही - जब रवि कार पार्क कर रहा था - देख लिया था। कमरे के
बीचोंबीच माँ अम्बा की मूर्ति है। आज नवमी है। फ़ाफ़ड़ा और जलेबी
दशमी की सुबह नाश्ते में खाते हैं। आज रात के नाच के
लिए - जो कम से कम बारह बजे तक तो चलेगा - अल्पाहार में हमेशा
की तरह पकौड़े हैं। हर भारतीय समुदाय की तरह
गुजरातियों ने भी अपनी परम्परा को सुरक्षित रखा है विदेश में।
लेकिन, भविष्य तो अगली पीढ़ी के हाथों में है और फ़िलहाल
उसे गरबा के बजाय कन्ट्री म्यूजिक और बालीवुड डान्स में ज्यादा
रूचि है! इस आयोजन में भी अविवाहित युवा वर्ग की
उपस्थिति नगण्य ही है। शहर के चारों कोनों में कई केन्द्र हैं
गरबा नृत्य के, क्या पता किसी अन्य केन्द्र में हों । उसे क्या
पता!
''हाय।''वह इतने जोर से चिल्लाई कि यामिनी की नजर जानी ही थी।
कमरे में तीव्र संगीत था शायद इसलिए इतने जोर से चिल्लाई,
यामिनी ने सोचा। प्रत्युत्तर में हल्के से मुसकराई बस। दो मिनट
बैठे और फिर वह और रवि, नृत्यस्थल, जो कमरे के बीचोबीच था, पर
जा पहुँचे। अन्विता पीछे से आई। ''यह मोटी हो गई है। शायद
इसीलिए भी मैं पहली नजर में इसे पहचान नहीं पाई और पहचानना
चाहता भी कौन था!''यामिनी ने सोचा। वे टोलियों में शामिल हो गए
थे। आज नृत्य रुकना नहीं था। बस नृत्यरत चेहरे बदल रहे थे।
यामिनी और रवि नाचते रहे।
वशिष्ठ शायद नहीं आया था। अन्विता अकेली नाच रही थी।
संगीत थमा। रेकार्ड बदला जा रहा था। वह भागती हुई यामिनी और
रवि के पास आई - ''कम! भाँगड़ा करेंगे।''
उन दोनों में से कोई आगे नहीं बढ़ा। गरबा से भाँगड़ा का क्या
संयोग?
वह जोरों से हँसती रही, नाचती रही अकेली। फिर दो-चार लोग जुट
गए। हट भी गए। कोई नहीं पहचानता! अन्विता फिर
अकेली
थी। यह होता रहा बार- बार। यामिनी- रवि ने इस बीच थोड़ा दम
लिया। किनारे खड़े लोगों से बातें की, जो उन्हीं की तरह थक गए
थे।
डांडिया नृत्य के बाद जब वे वापस हो रहे थे तब भी अन्विता
बार-बार भीड़ में शामिल होकर नृत्य करती - दो मिनट और फिर
लोगों को अपनी ओर बुलाने की असफ़ल कोशिश करती। ''टीम
इन्डिया'' बन ही नहीं रही थी। अकेली कप्तान सिर पीट रही
थी!
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