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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कहानी- नमस्ते कौर्निश


सुबह के छह बजे होंगे... योगिनी महाजन ने विला के मुख्यद्वार को बंद कर के एक बार चेक किया और रिमोट से कार का ताला खोला। हवा के हल्के से झोंके से विला के बाहर लगे गुलमोहर की डाल से बिछुड़ कर एक फूल विंडस्क्रीन से लुढ़कता हुआ बोनेट पर आ रुका। जाने क्या सोचकर योगिनी ने फूल को उठाया और कार का दरवाजा खोलकर डैशबोर्ड पर रख दिया। पर्स को पीछे की सीट पर रखा और सीट बेल्ट लगाकर कार स्टार्ट की। कार को गियर में डालने से पहले फूल को हाथ में लिया और एक एककर पंखुड़ियाँ अलग कीं-
हशमत अंकल मिलेगें
हशमत अंकल नहीं मिलेंगे
हशमत अंकल मिलेंगे
हशमत अंकल नहीं मिलेंगे
हशमत अंकल मिलेंगे....

पाँच ही तो पंखुरियाँ होती हैं गुलमोहर में... जिस पंखुड़ी से बात शुरु होगी उसी बात पर समाप्त होगी। यह खेल गुलाब के लिये ठीक है जिसकी पंखुड़ियों के बारे में हम नहीं जानते है कि किससे शुरू करने पर अंत क्या होगा... लेकिन गुलमोहर में हमें अंत पता होता है। हमें जो चाहिये उसे हम निश्चित कर सकते हैं।
 
पर हमें जो चाहिये क्या वह सब हम जीवन में निश्चित कर पाते हैं? हमें तो गुलाब की पंखुड़ियों की तरह अनिश्चित अंत के लिये तैयार रहना होता है।

अप्रैल के अंतिम दिन...गर्मियाँ शुरू हो गई हैं, लेकिन शारजाह की सुबह सुहानी होती है। ताड़ों की चौड़ी करतल से नर्म दूब पर धीमे–धीमे बूँदें झर रही हैं और लॉन की दूब में अभी तक अटके हैं ओस के नन्हें मोती। कोई दस्तक देकर कह रहा है उठो उठो सुबह हो गई। जब जिंदगी की शाम उतरने लगती है तब मौसम की सुबह का मर्म ज्यादा समझ में आता है।

योगिनी कार के ब्रेक छोड़कर कार को स्पीड में डाल देती हैं। खिड़की के काँच नीचे रखते हुए बिना ‘एसी’ के। कितने कम दिन होते हैं यहाँ जब इस शहर के साथ बेपर्दा होकर मिला जा सके! बिना शीशा चढ़ाए बिना एसी चलाए.. अलस्सुबह योगिनी सैर के लिये कौर्निश पर आती हैं। कौर्निश से उनका रिश्ता शायद उनके किसी अपने किसी रिश्ते से ज्यादा नजदीकी है।

कौर्निश के साथ-साथ कौर्निश से जुड़े कुछ और लोग भी उनके साथ जुड़ गए हैं। लेकिन अजब जुड़ाव है यह, जहाँ बीच में स्नेह का दरिया नहीं है, संकोच की रेत है, जो चेहरा दूर होते ही झर जाती है। दरिया तो वहाँ तक बहता चला जाता है जहाँ तक किनारा होता है... संकोच की रेत दूरियों को पाट नहीं पाती...

सड़क के दाहिनी ओर समुद्र के पूरे किनारे पर पार्किंग बनी है। सागर और सड़क के बीच में लंबी दूरी है जिसे सुंदरता से सजाया गया है। थोड़ी सी ऊँचाई दे कर चौड़ा फुटपाथ बनाया गया है और फिर घास के मैदान। मैदानों के बाद चौड़ी सड़क है टहलने वालों के लिये। इस टहलने वाली सड़क के एक ओर रेलिंग लगी है, रेलिंग के नीचे है दूर तक फैला अरब सागर। यहाँ सुबह शाम हजारों लोग सैर के लिये आते हैं, अलग अलग समय पर अलग अलग उम्र के लोग...बूढ़े और जवान, कभी–कभी बच्चे। जितने बूढ़े उतनी जल्दी वे सुबह यहाँ पहुँच जाते हैं। उससे कम उम्र के लोग उसके बाद...इसी क्रम से...बहुत से लोगों से योगिनी महाजन की पहचान है यहाँ, सफाई करने वालों से, सफाई गाड़ियों से, मालियों से, मालियों की गाड़ियों से, नियमित रूप से टहलने वालों से तो है ही, सड़क से समंदर से और सड़क के दूसरी ओर बनी दूकानों से जिसमें ढेर से रेस्तराँ भी हैं। जहाँ आप रोज जाते हैं वहाँ पहचान हो जानी स्वाभाविक ही है। एक अजनबी पहचान जिसमें आप हर किसी को जानते हैं पर किसी को नहीं जानते।

कौर्निश के शुरू होते ही कार पार्क कर के योगिनी महाजन की सुबह की आधे घंटे वाली सैर शुरू होती है। सूरज अभी निकला नहीं है पर यहाँ पर काफी चहल–पहल है। हारीस और नासिर नारंगी वर्दी पहने थोड़ी थोड़ी दूर पर लगे नारंगी रंग के कूड़े के डब्बों में से भरे थैले निकाल रहे हैं और नए ख़ाली थैले लगा रहे हैं। हाशिम और नजीर का घास को ट्रिम करने का काम पूरा हो गया है वे अपनी घास काटने वाली गाड़ी के साथ बड़ी सरकारी गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसमें वे घर जाएँगे।

बीस बाइस साल का जैकब फिलिपीन मूल का है, गठीला बदन हर रोज़ लाल बनियान और काली स्पोर्ट नेकर में तेज़ दौड़ते हुए योगिनी को पार कर आगे निकल जाता है। पैरों में जूते और हर तरफ़ से बहता हुआ पसीना...पसीना... पसीना... जैकब सड़क के दूसरी ओर बनी किसी बहुमंजिली इमारत से आता है। सड़क पार से ही दिख जाता है दौड़ता हुआ। हर किसी को हाई–बाई करता हुआ। योगिनी उसका भी उत्तर देती हैं पर वह शायद ही कभी पलट कर देखता है।

लड़कियाँ हैं तेज़ चलती लगातार सेलफ़ोन पर बात करती हुईं। रोज़ नए–नए स्ट्रोल सूट में मैचिंग जूतों के साथ। बच्चे हैं वॉकमैन कान से लगाए। संगीत के साथ थिरकते एक दूसरे के साथ हल्की फुल्की हाथापाई करते, कुछ स्केटिंग वाले जूते पहने पहियों पर तेज भागते। उनकी माँएँ काले अबाया में स्ट्रोलर में बच्चों को तेजी से धकेलती चलती हुईं। कुर्ते पाजामे हैं, कंदूरे हैं, पाश्चात्य दुनिया के परिधान भी हैं। अलग–अलग देशों के लोग अपनी–अपनी वेशभूषा में अलग–अलग संस्कृति की छटा बिखेरते आते और जाते।

अंकल हशमत भी पहुँच चुके हैं। पूरे सफ़ेद बाल, तीखे अरबी नाक नक्श, धीरे–धीरे चलते छड़ी की सहायता से। उनकी चाल देख कर लगता है कि वे टहल नहीं रहे, मैदान पर पड़ी अगली बेंच को पाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। बेंच तक पहुँचकर वे बैठते हैं, समुद्र को देखते हुए थोड़ा सुस्ताते हैं, कुछ टहलने वालों को देखकर हाथ हिलाते हैं, मुसकाते हैं, खुश होते हैं और फिर चल पड़ते हैं अगली बेंच तक के अभियान पर। वे यहाँ तक खुद ड्राइव कर के आते जाते हैं। कार दूर पार्क करते हैं निर्बल लोगों के लिए बनी विशेष पार्किंग में। हाथ हिलाकर दौड़ते टहलते लोगों से अभिवादन के आगे बढ़कर किसी से बात करते योगिनी ने उन्हें नहीं देखा। हाथ तो वे उसे भी हिलाते हैं, योगिनी उसका जवाब देती हैं, मुसकुराती भी हैं, और यह क्रम बिना वजह चलता रहता है। योगिनी महाजन और हशमत अंकल एक दूसरे की भाषा नहीं समझते हैं, या फिर दोनों के बीच देश और संस्कार की विविधता एक दूरी बनाए रखती है। वे बात करने की कोशिश नहीं करते, हिम्मत नहीं जुटाते। योगिनी महाजन को भी सुबह कहाँ फुरसत होती है एक पल भी... साढ़े सात बजे तक उन्हें स्कूल पहुँचना होता है।

मैदानों में खजूर के घने पेड़ों की सुंदर कतारें हैं। पेड़ों के नीचे आराम कुर्सियाँ हैं। थोड़ी–थोड़ी दूर पर मैदानों को काटती सड़कें हैं जो कॉर्निश की ओर बनी सड़क को पार्किंग की ओर जाने वाले फुटपाथ से मिलाती हैं। इस पूरे हिस्से पर सिर्फ़ पैदल चला जा सकता है। मैदान के एक टुकड़े पर नारायणन की मुफ़्त योगा क्लास चल रही है। उन्हें यहाँ सब लोग जानते हैं। दस पंद्रह चटाइयों पर एक साथ अलग–अलग मुद्राओं में आसन बदलते हुए भूरे भारतीय हैं, काले अरबी हैं, सफ़ेद गोरे भी हैं। कुछ लोग रुक कर नारायणन से बात कर रहे हैं शायद आगे की कक्षाओं के लिए अपने अनुबंध तय करते। आय एम नारायणन वह जोर से कहता है... दूर तक सुनाई देता है। उसके बाद उसका भाषण जरा धीमा हो जाता है, समुद्र की आवाज में बह जाता है।

पार्किंग में थोड़ी–थोड़ी दूर पर आइसक्रीम वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं। इस समय वे बंद हैं पर शाम को इनकी खिड़कियाँ खुल जाती हैं। उस समय यहाँ की भीड़ और चहल–पहल देखने लायक होती है। आगे मैदान के एक टुकड़े पर चाय कॉफ़ी और कावे का छोटा सा कैफ़ेटेरिया है। अभी–अभी खुला है। एक लड़का सफ़ेद कपड़े पहने मेज़ कुर्सियों को घास के मैदान पर सजा रहा है। यह फुटपाथ थोड़ा आगे चलने पर एक पुल के नीचे से गुज़रता है और बाईं ओर मुड़ जाता है, जहाँ सैर करने वाले, साथ चलती सड़क से नीचे एक नहर के किनारे दूर तक पैदल चल सकते हैं।

योगिनी महाजन नहर के किनारे नहीं जातीं। यहाँ तक पहुँचते १५ मिनट हो जाते हैं। वे यहीं से वापस लौटती हैं ताकि सात बजे से पहले घर पहुँच कर स्कूल के लिये तैयार हो सकें।

१५ मिनट उन्हें वापस होने में लगेंगे। उसी फुटपाथ पर वापस चल पड़ी हैं वे। सूरज निकल आया है। कुछ लोग अभी भी सैर पर हैं। एक लड़का वाकमैन लगाए रोलर स्केट पर तेज़ी से गुज़रता है। एक प्रौढ़ दम्पत्ति हैं, वेशभूषा से भारतीय। एक नौजवान अलग–अलग कोण से उनके फोटो ले रहा है। नौजवान के माता पिता मालूम होते हैं, बेटे से मिलने, सैर सपाटे और ख़रीदारी के लिए परदेस आए हुए। सब खुश–खुश दिखाई दे रहे हैं। अंकल हशमत वापस लौट चुके हैं। पार्किंग में उनकी कार नहीं है।

पिछले कई सालों से योगिनी महाजन का यही नियम है। कई मतलब लगभग पाँच सालों से... लोग कुछ कुछ बदल भी गए हैं। हशमत अंकल अब खुद कार चलाकर नहीं आते उन्हें कोई छोड़कर जाता है। वे अब टहलते नहीं। समंदर के किनारे की एक बेंच पर बैठे रहते हैं। पास से गुजरते हुए बहुत से पहचान के लोगों को देखकर वे हाथ हिलाते हैं। योगिनी को देखकर भी। योगिनी उनको हाथ हिलाकर उत्तर देती हैं, वे मुस्कुराते हैं योगिनी भी मुसकुराती हैं। योगिनी के लौटने से पहले वे लौट चुके होते हैं। वे योगिनी से पहले आते हैं और उसके जाने से पहले लौट जाते हैं। पार्किंग में उनकी कार नहीं दिखती शायद कोई छोड़कर चला जाता है, क्यों कि उनके साथ बैठा कोई नहीं दिखता।

पिछले दो एक महीनों से हशमत अंकल बेंच पर भी बैठे नहीं दिखते व्हील चेयर पर बैठे दिखते हैं। शायद वे इतने बीमार या अशक्त हैं कि खुद चलकर कार से बेंच तक नहीं आ सकते। उन्हें कोई व्हील चेयर पर बैठाकर यहाँ तक लाता है। अंकल हशमत की क्या उम्र होगी... शायद अस्सी साल या नब्बे साल... मालूम नहीं... वे अरबियों की तरह कंदूरा नहीं पहनते। पैंट शर्ट पहनते हैं। शायद वे ईराकी हैं... या फिर मिस्री। व्हील चेयर लेकर कौन आता होगा... जो आता है वह उनके पास क्यों नहीं बैठता? कोई रिश्तेदार... कोई सेवक... या ड्राइवर... क्या पता आसपास कहीं बैठता भी हो... लेकिन लगता नहीं कि कोई उनके साथ है। कभी कभी योगिनी की इच्छा होती है कि वह जरा पहले आ जाए तो देख पाए कि उनको छोड़ने कौन आता है या फिर टहलना स्थगित कर के उनके पास बैठ जाए। देखे कि कौन उनको वापस ले जाने के लिये आता है लेकिन योगिनी महाजन के पास इतना समय कहाँ...

पिछले सप्ताह से हशमत अंकल दिखाई नहीं दिये हैं। योगिनी महाजन उनके बारे में चिंतित सी हैं। वे क्यों नहीं आ रहे होंगे... क्या वे बहुत बीमार होंगे, बिस्तर से उठ नहीं सकते होंगे... क्या वे मर गए होंगे... योगिनी महाजन सिहर उठती हैं।

योगिनी महाजन ५८ साल की हैं। स्वास्थ्य के प्रति सचेत चुस्त दुरुस्त, एक स्कूल में वरिष्ठ अध्यापिका हैं। वे अकेली रहती हैं शहर में। सालों से... पहले जोश था विदेश में पैसे कमाने का... फिर परिवार की जिम्मेदारी... फिर इसी दिनचर्या की आदत हो गई। नौकरी छोड़कर जियेंगी कैसे यह सोचकर यहीं रुक गईं। घर पर एक सहायिका है, पार्ट टाइम, वह घर सँभाल लेती है। एक अकेली महिला का काम भी कितना होता है! एक बेटा है पढ़-लिखकर नौकरी कर रहा है आस्ट्रेलिया में। बहुत समझाया कि यूएई में अवसरों की कमी नहीं आगे बढ़ने और कमाने के तमाम रास्ते हैं लेकिन उसे देश विदेश घूमना था, दुनिया के अनुभव लेने थे...पति कई वर्ष पहले दिल का दौरा पड़ने से नहीं रहे। योगिनी महाजन जीवट वाली महिला हैं, न अकेले रहने में डर, न भावनात्मक रूप से कमजोर, अच्छे अच्छे लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं, अध्यापकों का जीवन तो वैसे भी प्रेरक होता है...दो साल बाद वे रिटायर हो रही हैं। हशमत अंकल में न जाने क्यों उन्हें अपना भविष्य नजर आने लगता है और वे व्याकुल होने लगती हैं क्या उन्हें भी एक दिन ऐसा ही जीवन जीना होगा!

आज ठीक दस दिन हो गए योगिनी महाजन को हशमत अंकल नहीं मिले। पंखुरियों के गिनने से कोई मिल जाता है क्या?

अब आप सोचेंगे कि अगर हशमत अंकल नहीं मिले तो किसी से पूछना था। अड़ोस पड़ोस से... उनको देखकर हाथ हिलाने वाले दूसरे लोगों से...नारंगी वर्दी वाले हारीस और नासिर से...फिलिपीन मूल के जैकब से... कौर्निश के माली हाशिम और नजीर से... श्रीलंका के जयंतन से...नारायणन योगा टीचर से... वे सब उन्हें देखकर हाथ हिलाते थे, वे तो अभी भी आते हैं...

लेकिन योगिनी महाजन किसी से कुछ भी पूछ नहीं सकती हैं। वे नहीं जानतीं कि हशमत अंकल कौन थे दरअसल वे तो हशमत अंकल का नाम भी नहीं जानतीं, उनका नाम हशमत अंकल है ही नहीं। यह नाम तो उन्होंने अपने लिये रखा था मन ही मन... कभी बुलाया नहीं उनको इस नाम से। हशमत अंकल को क्या मालूम कि योगिनी महाजन ने उनका नाम हशमत अंकल रखा है... जब कभी उनसे योगिनी महाजन की बात ही नहीं हुई तो वे कैसे जान सकती हैं कि उनका नाम क्या था... हशमत अंकल नाम तो बस ऐसे ही रख दिया, ऐसे ही... शायद दिनचर्या के किसी खाली समय में दोहराने के लिये... ठीक वैसे ही जैसे नासिर और हारिस का नाम वे नहीं जानतीं हैं, वे फिलीपीनी जैकब का नाम भी नहीं जानती हैं। पता नहीं उन लोगों के क्या नाम हैं... ये नाम तो योगिनी महाजन ने अपने मन से रखे हैं किसी खास मतलब से नहीं। पहले कहा न बस ऐसे ही किसी खाली पल में दोहराने के लिये...वे केवल योगा गुरू नारायणन का नाम जानती हैं क्यों कि वे अखबार के साप्ताहिक संस्करण में कालम लिखते हैं। जहाँ उनका नाम और फोटो होती है। वे सड़क का नाम जानती हैं क्यों कि वह लिखा होता है। लोगों के नाम तो कहीं लिखे नहीं होते, उन्हें पूछना पड़ता है। भारत की तरह हर किसी से बात करने या कुछ भी पूछने का रिवाज यहाँ नहीं है।

योगिनी महाजन के चेहरे के भाव में खास परिवर्तन नहीं है। पर शायद मन कुछ बुझा सा है। शायद वे निराश हैं, शायद वे तटस्थ हैं, कदम उतने तेज नहीं। समय के साथ बँधी हुई अपनी कार तक पहुँचती हैं।

थोड़ी दूर पर एक और कार आ रुकी है। कार में युवक युवतियाँ हैं। अरबी जवान मौज मस्ती में समय बिताते हुए। वे ही शहर की रौनक हैं। स्टीरियो पूरी वॉल्यूम पर चल रहा है— तमल्लि मआक...विलौहत बा ईदिनी विअल्बि हवाक... अरबी संगीत की तेज ताल और दमदार ठेके का जबाब नहीं...और उनके प्रिय पॉप गायक अमेर दिआब का यह नया एलबम तमल्लि... मआक यानि सदा तुम्हारे साथ ...जब तुम मुझसे दूर हो तब भी...तुम्हारा प्यार मेरे साथ है।

कैसा प्यार और कैसा साथ? कौन किसके साथ है...कितने दिन साथ रहेगा...कब चला जाएगा...कुछ पता नहीं...प्यार क्या है... रिश्ते क्या हैं... नाम क्या हैं... किसी चीज का कोई मतलब नहीं है योगिनी महाजन के लिये...सबकुछ खत्म हो जाना है... सबकुछ, जिसके साथ प्यार है... या नहीं भी है... क्या अपने... क्या पराए...किस बहाने से कब चले जाएँगे कुछ पता नहीं। लोगों का दूर चले जाना... पंचतत्वों में विलीन हो जाना ही अंतिम सत्य है जीवन का। वे निर्लिप्त भाव से कार में जा बैठी हैं। बाहर संगीत का शोर है और भीतर गुलमोहर की पाँच पंखुरियाँ बिखरी पड़ी हैं। जैसे जीवन के पंच तत्व बिखर गए हैं और अब जुड़ नहीं पाएँगे। खिड़की का शीशा नीचे कर के वे बाहर समंदर की ओर देखती हैं... नीला आकाश... हरा समंदर... खूब गहरा, खूब गहरा उनके मन की तरह सब कुछ समा लेने वाला...आँखें नम-सी हो आई हैं...

नमस्ते कॉर्निश, कल फिर मिलेंगे पर तब तक तमल्लि मआक ...साथ रहोगे तुम ...भले ही दूर हो...तुम्हारे साथ बिताई गई यह सुहानी सुबह सारे दिन तरोताज़ा रखेगी मुझे। जैसे वे यही कहना चाहती हों और वे कार को मुख्य मार्ग पर लाकर गति पकड़ लेती हैं।

१५ दिसंबर २०१४

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