| 
						
						 मैं 
						बाजार जाने के लिए निकली ही थी कि बारिश शुरू हो गई। थोड़ी 
						दूर पर ही मैंने अपनी स्कूटी रोक दी और डिक्की से रेन कोट 
						निकालने लगी। तभी अचानक बिजली कड़कने लगी। बारिश और भी तेज 
						हो गई। 
						
						मैंने रेनकोट वापस डिक्की में डाला और छतरी निकाल कर पास 
						के दुकान में जाकर खड़ी हो गई। मेरे साथ ही वहाँ आस-पास 
						पसरा लगाकर बेचने वाले लोग भी अपने पसरे पर पालीथीन बिछाकर 
						पास के पक्के छत की दुकानों पर खड़े हो गए पर एक पसरे वाला 
						लड़का अपने पसरे के पास पालीथीन बिछाकर उसे हाथ से दबाए 
						वहीँ खड़ा रहा।
 मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी तेज बारिश में भी वह लड़का टस 
						से मस नहीं हुआ। मुझसे रहा नहीं गया। मैँ छतरी थामे उसके 
						उसके पास पहुँची और कहा-अरे भई, इतनी बारिश में तुम यहाँ 
						क्यों खड़े हो? देखो सभी पसरी वाले अपने सामान पर पालीथीन 
						डालकर सूखे स्थान पर खड़े हैं। तुम भी चले जाओ।
 
 उसने कहा," हाँ मेमसाहब, उनका सामान पालीथीन में सुरक्षित 
						रहेगा पर मैं इसे छोड़कर चला गया तो मुसीबत आ जायेगी।"
 मैंने कहा, बेटे, इतनी बारिश में खड़े रहोगे तो तुम बीमार 
						पड़ जाओगे।
 उसने हँसते हुये कहा," मेमसाहब, मैँ बीमार पड़ भी जाऊँ तो 
						एक रूपये की बुखार की गोली से ठीक हो जाऊँगा। हमारी तो रोज 
						की आदत है पर यह सामान खराब हो जायेगा तो महीने भर हमे 
						भूखे रहना पड़ेगा फिर माँ की दवाई भी तो इसी से लानी है ।"
 मैंने उसे कहा, चलो ठीक है। तुम यह छतरी रख लो मेरे पास 
						रेन कोट है। अच्छा ये बताओ, आखिर इस पसरी में तुम क्या 
						बेचते हो जो इतना मूल्यवान है ?
 उसने मुस्कुराते हुये कहा, "मेमसाहब, इसमें मेरी माँ के 
						हाथों का बना हुआ मुरकु और सेवईयाँ हैं जिसे उन्होंने बड़ी 
						मेहनत से बनाया है। आप ही बताइये भला मैं अपनी माँ की 
						मेहनत पर कैसे पानी फेर सकता हूँ।" यह कहते हुए उसने छतरी 
						को अपनी पसरी पर तान लिया।
 
						१ अगस्त 
						२०२५ |