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लघु-कथा

लघुकथाओं के क्रम में इस माह प्रस्तुत है
संयुक्त अरब इमारात से करुणा राठौर की लघुकथा- अंतिम समझौता


आज फिर दोस्तों के साथ शराब पी कर आये हो… तनी हुई भृकुटी से सीमा ने सूरज की तरफ देखते हुए कहा।
क्यों? तुमको क्यों तकलीफ होती है? तुम्हारे पैसों से तो नहीं पीता हूँ मैं।

बात यह नहीं है कि किसके पैसों से पीते हो… बात ये है कि क्यों पीते हो? एक अध्यापक होते हुए भी तुम्हें रोज रोज ये सब करते जरा भी शर्म नहीं आती। तुम्हारे दोनों बेटे तुमसे भी लम्बे हो चले हैं जरा उनका तो ख्याल करो। उनके भविष्य की चिंता क्या तुम्हें बिल्कुल नहीं होती। मैं ही कब तक पूरे घर का खर्च अपने कंधों पर उठाऊँगी? स्कूल से आ कर घर के सारे काम खुद ही करना, कोई मेड भी तो नहीं मिलती है।

बच्चों को पढाना और राशन भी लाना। क्या तुम्हारी हमारे लिए कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? इस घर की किश्तें भी मेरी सैलरी से कटती हैं। इसके अलावा तुम्हारे खेतों में भी अपनी माँ और भाभी के साथ मुझसे फसल कटवाने के लिए तुम स्कूल मे छुट्टी की अर्जी भेज देते हो। तुम क्या सिर्फ मजे करने के लिए पैदा हुए हो? जरा भी शर्म है तुम में…. मेरी सहेलियों और सहकर्मियों की फोटो मेरे फोन से निकाल लेते हो। मुझे सब खबर है तुम्हारी.., जिन औरतों के तुम भले मनाते फिरते हो वही मेरे सामने आ कर मेरा मजाक उडा कर जाती हैं। आज तो मैं फैसला कर के रहूँगी।

क्या फैसला करना चाहती हो? ये मत भूलो कि ये जो नौकरी तुम कर रही हो मेरी वजह से कर रही हो…नशे में धुत्त सूरज ने जमीन पर खुद को गिरने से बचाते हुए कहा। तुम इस घर में मेरी वजह से हो। तुमको अगर मेरे साथ नहीं रहना को तुम अपने बाप के घर क्यों नहीं चली जाती हो…?
अगर मैं तुमको नौकरी करने की छूट नहीं देता तो आज तुम ये पैसा नहीं कमा रही होती और न ही मुझसे यूँ जबान लडा रही होती। कहते-कहते अब की बार वह संभल नहीं पाया और वहीं घर की देहरी के किनारे बनी नाली के पास ही लुढक कर सो गया।
सीमा ने सारी रात आँखों में निकाल दी। सब जैसे एक फिल्म की तरह आँखों में तैर गया….सगाई के बाद और शादी के पहले का समय।

उस दिन फोन उठाते ही बातों की शुरुआत करते हुए सूरज ने कहा,, “कहाँ बिजी थी इतने दिनों से?”
बताया था मैंने कि एम. ए. के एग्जाम होने वाले हैं। बस उसी में। शायद तुम भूल गये।
अरे हाँ भूल गया था सचमुच। कैसे हुए एग्जाम ?
बहुत अच्छे हमेशा की तरह, सीमा चहकते हुए बोली।
सीमा पढाई में सदा अव्वल रहती थी चाहे वो स्कूल हो, कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी।

एग्जाम से फुरसत मिलते ही अपनी दोस्त के साथ बर्ड सेंचुरी देखने चली गई थी।
यह बात सुन कर सूरज थोडा असहज हो गया। लगभग आपत्ति जताते हुए उसने सीमा को कहा कि क्या जरूरत है यूँ घूमने की। क्या मम्मी-पापा को बता कर गई थी?
हाँ हाँ बिल्कुल।
तो भी क्या जरूरत थी? मुझे लगता है तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हें कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है।
हाँ दी है उन्होंने मुझे आजादी और मैं उस आजादी का पूरा सम्मान भी करती हूँ। मैं जानती हूँ अपनी मर्यादा और अनुशासन में रहना।

मगर मुझे औरतों की इतनी आजादी पसंद नहीं, कहकर सूरज चुप हो गया।
फिर तभी से शुरू हो गई समझौतों की जिंदगी जिसमें हर समझौता सिर्फ और सिर्फ सीमा को करना था।
काश तभी भाँप लिया होता कि कैसी फितरत है सूरज की।
मैं मम्मी-पापा के पास नहीं जाऊँगी और यह सोचते हुए सीमा चारपाई से उठी। सूरज का सारा सामान, एक छोटा चूल्हा जो परिवार इकट्ठा होने पर काम में लाया जाता था और थोडा राशन ऊपर वाले कमरे में अपने बेटों से रखवा दिया।

 
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