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लघु-कथा

लघुकथाओं के क्रम में इस माह प्रस्तुत है
संयुक्त अरब इमारात से मंजु तिवारी कुमार की लघुकथा-
फैक्ट्री


“सर, मैंने अपनी सारी उम्र इसी फ़ैक्टरी में निकाल दी है अब इस उमर में मैं नयी नौकरी कहाँ ढूँढने जाऊँ।"
“मुझ पर मेरी पत्नी की भी ज़िम्मेदारी है मैं उसका ख़याल कैसे रख पाऊँगा, अब हमारा कोई सहारा भी नहीं बचा है!" मनोहरलाल ने ब्रजेश से मिन्नत भरे शब्दों में कहा।
“देखो मनोहर अब ये वो पुरानी फ़ैक्टरी नहीं रही है जहाँ तुम सब काम करते थे। ये फ़ैक्टरी अब कॉरपोरेट कम्पनी बनने जा रही है यहाँ मुझे युवा और फुर्तीले लोग चाहिए। तुमने बहुत साल यहाँ काम किया है इसलिए मैं तुम्हें इज़्ज़त देते हुए भेजना चाहता हूँ और रही बात पैसों की तो तुम्हें कुछ पैसे तो मिल ही रहे हैं उनसे अपना और अपनी पत्नी की गुज़र बसर कर लेना और प्लीज़ बार-बार यहाँ आकर मुझे शर्मिंदा मत करो।" ब्रजेश ने दो टूक जवाब देते हुए कहा।

लेकिन मालिक मैं….! आगे के शब्द ब्रजेश की उठी हुई नज़र देख भीतर ही रह गए।
मनोहर हाथ जोड़ बाहर निकल गया, मन इस उलझन में फँस गया कि अब शारदा को कैसे कहे कि कल से वो फ़ैक्टरी नहीं जाएगा, सारी ज़िंदगी जिस फ़ैक्टरी में खुद को झोंक दिया आज वहाँ से ऐसे ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। एक बेटा था जिसे मुश्किल से इस क़ाबिल बनाया था कि जीवन आराम से कट जाए लेकिन वो भी कोरोना की भेंट चढ़ गया।

फ़ैक्टरी के गेट पर खड़े मनोहरलाल ने आख़री बार मुड़कर पहले फ़ैक्टरी और फिर ऊपर की तरफ़ देखा और आँसू पोछते हुए वहाँ से निकल गया।

१ जुलाई २०२३

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