| 
						
						 घर 
						में घुसते ही अरविंद का आलाप पुन: शुरू हो गया। अरविंद 
						सीमा के घर में उसके काम काज में सहायता करता है साथ ही 
						उसका मुँहलगा भी है। सबके घर की बातें करना उसकी आदत है। 
						सीमा इसे चाहे या न चाहे सुनना ही पड़ता है। जब से उसे एक 
						नया काम मिला है, वह वहाँ के गुण गाता ही रहता है। उस मैडम 
						के घर में यह है, उसके घर आज अमुक चीज आई इत्यादि। 
 “मैडम आप को मालूम है! वो ‘सफ़ा’ टावर वाली मैडम बहुत अच्छी 
						है। कितने लोगों को ट्यूशन पढ़ाती है। बहुत पैसा कमाता है 
						वो मैडम (उसकी हिन्दी ऐसी ही है)। उसके घर में एक-एक लोकल 
						(अरबी) बच्चा आता है, उनके घर और वो मैडम को एक घंटे का 
						दो-दो सौ दिरहम दे कर जाता है।” यह तकरीबन रोज का काम हो 
						गया। उसके रोज-रोज के इस प्रशंसालाप के लिए सीमा पक-सी 
						जाती। बस रोज इधर–उधर की बातें अरविंद करता। उस समय उसकी 
						आँखों में बड़ी हसरतें दिखाई देती। सीमा थोड़ी देर के लिए 
						खुद को बौना महसूस करने लगती।
 
 समय बीतता गया, अरविंद की बातें भी चलती रहीं। घर में 
						प्रवेश करते ही वह टावर वाली मैडम का गुणगान करने लगता। यह 
						अब रोज की बात हो गयी थी। सीमा भी अब उसकी बातों से 
						परिचित- सी हो गई थी। उसे भी अरविंद की बातों में अब 
						कुछ-कुछ रस आने लगा था। कभी कभार उसे स्वयं छेड़ देती कि आज 
						क्या हुआ। “मैडम, मेरे गाँव में बाढ़ आई है। मेरे पिताजी 
						बाढ़ राहत के लिए काम कर रहे हैं। आप कुछ डोनेशन देगा 
						क्या।” एक दिन अरविंद ने कहा। “क्यों नहीं! जरूर।” सीमा ने 
						कहा।
 
 उस दिन उसके जाते समय सीमा ने पचास दिरहम (लगभग एक हजार 
						भारतीय रुपए) उसे पकड़ाए तो उसके चेहरे के भाव से ऐसा लगा 
						कि वह खुश नहीं है। पैसे लेकर वह बताने लगा वो टावर वाली 
						मैडम भी डोनेशन देगी। उसके स्वर में उत्साह का भाव था। उसे 
						सफ़ा टावर वाली मैडम से बहुत आशा थी। उसका उत्साह देखकर 
						सीमा को थोड़ी हीनता का अहसास हुआ। अगले दिन जैसे ही अरविंद 
						घर में घुसा। वह बहुत ही गुस्से में था। वह बड़बड़ा रहा था 
						कि बड़ा लोगों का दिल नहीं होता है। वे बड़े कंजूस होते हैं, 
						निर्दयी होते हैं। उन्हें दयाधर्म और समाज की कोई चिंता 
						नहीं होती। काफ़ी समय बाद पता चला कि टावर वाली मैडम ने उसे 
						भारतीय मुद्रा में पच्चीस रुपए डोनेशन में दिए थे।
 
						१ सितंबर 
						२०२३ |