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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
मधु जैन की लघुकथा- झिलमिलाते नयन


दशहरा और दीवाली के बीच मेरी कालोनी में पास ही के झुग्गी झोपड़ी वाले दस से पन्द्रह साल के बच्चे गमलों की पुताई, गार्डन की सफाई, छत की सफाई और भी छोटे छोटे कामों के लिए आते हैं। उत्सुकता वश मैंने बच्चों से पूछा "इन पैसों का क्या करोगे?"

अधिकांश का यही जवाब था "पटाखे खरीदेगें।" पर कल जिस बच्चे ने काम के लिए पूछा वह करीब आठ साल का होगा कपड़े बता रहे थे कहीं काम करके आया है।
"क्या करोगे इन पैसे का वही प्रश्न पूछा ?"
"अपनी छोटी बहिन के लिए फ्राक खरीदूँगा।"
"कितनी बड़ी है तुम्हारी बहिन ?"
"तीन साल की। सौ रुपये दिखाते हुए दो जगह काम किया है आपके यहाँ करुँगा तो डेढ़ सौ हो जाएगें इतने में फ्राक आ जाएगी।"
उसके चेहरे की खुशी देखकर बोली "कल आना तब गमलों की पुताई कर देना।
ठीक है आंटी ! पर किसी और से मत करवाना कहकर मटकते हुआ चला गया।

पता नहीं ऐसा क्या था उसमें बार-बार उसका चेहरा आँखों के सामने आ रहा था मन ने कुछ और ठान लिया।
आज सुबह से उसका इंतजार कर रही थी वह भी जल्दी ही आ गया।

इतने छोटे बच्चे से काम कराने का मन तो नहीं था भारी गमले कैसे उठाया सोचकर उसके साथ ही लग गयी मुझे अपने साथ काम करते देख शंकित हो गया। शंका दूर करके हुए कहा "तुझे पूरे पचास रुपये दूँगी।"
वह बहुत ही मनोयोग से काम कर रहा था। काम पूरा होने के बाद हाथ पैर धोकर पैसे लेने तैयार खड़ा था।
मैंने उसके हाथ में में एक पैकेट दिया।

खोलते ही "इतनी सुन्दर फ्राक, पर आंटी यह तो महँगी होगी मेरे पास तो इतने पैसे नहीं हैं।"
"यह मेरी तरफ से तेरी बहन के लिए उसकी नजरें फ्राक से हटी ही नहीं थी कि दूसरा पैकेट दिया यह तेरे लिए।" उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी।

इधर-उधर से मिली घर में कई साड़ियाँ रखी थी उसी में से एक साड़ी देते हुए कहा और यह तेरी माँ के लिए। अब उसके आँखों से आँसू बहने लगे पैर छूते हुए थैक्यू आंटी थैक्यू आंटी कह हिलकने लगा।
मेरा मन भी अंदर तक भीग गया मैंने उसे अपने अंग से लगा लिया एक अजीब सा सकून मिला जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उसके चेहरे की चमक के आगे जगमगाती लड़ियों की चमक भी फीकी लग रही थी।

१ नवंबर २०२१

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