रचना
रसोईघर में खाना बना रही थी, लेकिन मन अमन की ओर लगा हुआ
था।
“अमन, सुनाई नहीं पड़ रहा क्या? कितनी देर से आवाज दे रही
हूँ, निकलो बाथरूम से। बीमार पड़ना है क्या?” मगर पाँच वर्ष
के अमन के कानों में जूँ नहीं रेंग रही थी।
“अब तो इसके कान पकड़कर ही इसे बाहर निकालना पड़ेगा।” कहते
हुए वह बाथरूम की ओर बढ़ चली।
जैसे ही उसने बाथरूम का दरवाजा खोला, वह चौंक गयी, उसके
लाड़ले ने नाली के अंदर कपड़ा ठूँसकर वहाँ पानी एकत्र कर
लिया था और जमीन पर उलट-पलट कर पानी में छपाके मार रहा था।
देखकर वह जोर से खिलखिला पड़ी।
माँ को हँसता देखकर अमन समझ गया कि उसे अब डाँट नहीं
पिटेगी। उसने अपनी माँ को रिझाने के लिए हँसकर, अपने मोती
जैसे चमचमाते दाँत दिखा दिए।
उसकी मनमोहक मुद्रा देखकर वह और भी मुग्ध हो उठी, मगर तभी
उसका चेहरा गंभीर हो गया और वह बोली, “तुमसे कहा था न कि
पानी बरबाद नहीं करना चाहिए। वैसे ही धरती में पानी की कमी
होती जा रही है, कोई भी नहीं सुनता घर में, कम से कम
तुम्हें तो ध्यान रखना चाहिये।”
“माँ, मैंने उस दिन कहा था कि मुझे गंगा जी दिखाने ले चलो,
मेरा बहुत मन कर रहा था, वहाँ नहाने का। पापा ने उसका
चित्र भी गूगल पर दिखाया था, लगता है फिर वो भूल गये।”
रचना वापिस रसोईघर में आकर अपना काम करने लगी, उधर अमन अब
अपनी छोटी सी गंगा के बिखरे पानी को अपनी नन्हीं अँजुरी से
समेटते हुए एक टब में भरता जा रहा था।
१ जून २०१७ |