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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
यू.के. से प्राण शर्मा की लघुकथा- सोने की बालियाँ


कैरोल कई सालों से हमारे घर में सफाई करने का काम कर रही थी। वह अधेड़ उम्र की आयरिश महिला है। उसने शिकायत का कभी मौका नहीं दिया था। वक़्त पर आती और घर को चमका कर चली जाती। हम पति - पत्नी उससे बड़े खुश थे। हमारी सिफारिश से उसको कई घरों का मिल गया था।

दीवाली हो या क्रिसमिस हम उसको कुछ न कुछ देते थे। वह भी हमारे लिए कुछ न कुछ ले आती थी। पत्नी उसकी तारीफें करते नहीं थकती थी। वह हमेशा कैरोल से कहती -"काश, तुम्हारी कोई बेटी होती तो हम अपने बेटे की शादी उससे कर देते।"

एक दिन पत्नी की सोने की बालियाँ गायब हो गईं। मेज़ पर रखी थीं। घर का कोना - कोना देख डाला लेकिन नहीं मिलीं। बड़े परेशान हुए हम। घर में कोई आया-गया नहीं था कैरोल के सिवाय, बालियाँ उठा कर कौन ले गया ? क्या हवा उन्हें खा गई ?

मैंने बड़े प्यार और धैर्य से कैरोल से पूछा- " कहीं भूल से बालियाँ तुम तो नहीं ले गई हो ?

"बाबू जी , इतने सालों से आपके घर में मैं काम कर रही हूँ। आपने सदा मुझे अपना समझा है और...और मैंने आपको अपना। क्या कोई अपनों की किसी चीज़ की चोरी करता है ? मैं आप जैसी अमीर नहीं हूँ, लेकिन मन की अमीर हूँ। चोरी का इलजाम गरीब पर ही लगता है। " कहते - कहते कैरोल सुबकने लगी।

" देखो कैरोल , तुम कई सालों से हमारे यहां कर रही हो। बालियाँ चोरी होने का शक़ हम तुम नहीं कर रहे हैं लेकिन उनको ले कौन गया है ? वे किसी तरह हमको हमको मिल जानी चाहिए। उनके बिना ...देखो ...सोने की चोरी या उसका गम होना हमारे समाज में अपशकुन माना जाता है। कल मैं अपने एक जान - पहचान के तांत्रिक के पास जाऊँगा। मुझे पूरा विश्वास है कि वह अपनी विद्या - शक्ति से चोर को ढूँढ निकालेंगे। वह तो पानी में चोर का चेहरा दिखा देते हैं।

अगली सुबह कैरोल घर की सफाई कर के चली गई। हम पति - पत्नी रसोई घर में गए। बालियाँ एक कोने में पडी चमक छोड़ रही थीं।

२ जून २०१४

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