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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
रतनचंद जैन की लघुकथा- मुक्तिदेव


एक बूढ़ा फकीर अपने गधे के साथ एक गाँव में आकर ठहरा। कुछ ही दिनों में एक युवक उससे प्रभावित हुआ और उस फकीर को अपनी झोंपड़ी सौंपकर वह दिन-रात उसकी सेवा में तल्लीन हो गया। कुछ महीनों के बाद फकीर गाँव छोड़ कर जाने लगा तो वह अपने गधे को 'प्रसाद' के रूप में उस युवक को भेंट कर गया।

अब अपनी झोंपड़ी में वह युवक फकीर होकर रहने लगा। फकीर की संगत में रहकर वह युवक आत्मा-परमात्मा और कुछ ज्ञान की बातें सीख ही गया था। झोंपड़ी भी फकीर की झोंपड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई थी। वह युवक भी सत्संग करने लगा और थोड़े ही दिनों में प्रसिद्धि पाकर पूजा जाने लगा।

कुछ वर्षों बाद उसी फकीर का फिर वहाँ आना हो गया। वहाँ का रंग-ढंग देख वह विस्मित हुआ। झोंपड़ी की जगह आलीशान मंदिर बन गया। भण्डारा और भक्तों की भीड़ एवं धन की कोई कमी नहीं। जिस युवक ने उस फकीर की सेवा की थी, उसको मंदिर का महन्त बना देख फकीर अचम्भित हुआ।

रात को एकांत पाकर फकीर ने अपने चेले उस युवक से पूछा-'यह तो बता यह मंदिर किस देवता का है और कैसे बना? क्योंकि जब मैं छोड़ गया था तो यहाँ मात्र तुम्हारी झोंपड़ी थी।'

चेले ने कहा-'अब आपसे क्या छिपाना। आप भेंट में जो गधा दे गये थे, वह मर गया। आपका गधा था तो रात को मैंने उसे ठीक से दफनाया और चबूतरा बनाया। लोग पूछने लगे कि यह चबूतरा किसका है? तो अब मैं क्या कहूँ? कहूँ कि गधे का है तो लोग मजाक उड़ाने लगेंगे, तो मैंने कहा-मुक्तिदेव का है। मैंने तो अपने को बचाने के लिए यह बात कही लेकिन बात का प्रचार फैल गया। लोग चबूतरे पर फल-पुष्प और रुपये-पैसे चढ़ाने लगे। धीरे-धीरे मंदिर भी बन गया। श्रद्धा बढ़ने लगी और मेरा भी सम्मान होने लगा। वास्तविकता जानने की किसी ने कोशिश ही नहीं की। आपने पूछा तो मैंने सच्ची बात बता दी।'

फकीर खिलखिलाकर हँसने लगा। युवक ने हँसने का कारण पूछा। फकीर ने कहा-'मैं इसलिए हँस रहा हूँ कि मैं जिस गाँव में रहता हूँ, वहाँ भी इसी गधे की माँ का मंदिर है। यह बड़ा कुलीन और चमत्कारी गधा था। इसकी माँ जब मरी तब भी ऐसा ही हुआ था। मेरे गाँव में भी मंदिर की प्रसिद्धि और मेरा सम्मान इसी की माँ के कारण है।'

१० फरवरी २०१४

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