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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
रघुविन्द्र यादव
की लघुकथा- एहसान


सम्भ्रांत-सी दिखने वाली एक महिला के साथ प्रभाकर मेरे पास आया और बोला-''सर ये मेरी परिचित हैं, इनकी कम्पनी के एक लाइसैंस का नवीनीकरण होना है। अगर आप इस फाइल को आउट ऑफ टर्न मार्क कर दें तो मैं इसे आज ही निकलवा देता।"

प्रभाकर अपनी ईमानदारी के लिए जाना जाता था। वह आमतौर पर किसी की सिफारिश भी नहीं करता था। इसलिए मैंने फाइल मार्क कर दी। लगभग दो घंटे वह फाइल को लेकर इस सीट से उस सीट तक घूमता रहा और महिला उसकी सीट पर आराम से बैठी रही।

मात्र दो घंटे में ही लाइसैंस महिला को सौंपकर वह अपने बाकी पड़े काम को निपटाने के लिए अल्मारी से जल्दी-जल्दी फाइलें निकालने लगा। महिला ने लाइसैंस पर्स में रखते हुए उससे पूछा-''अगर आप मेरी मदद नहीं करते तो मुझे इस काम को करवाने में कितना खर्च करना पड़ता?

प्रभाकर ने बिना उसकी ओर देखे ही जवाब दिया-''आपको कम से कम दो दिन और हजार-पन्द्रह सौ रुपये खर्च करने पड़ते।"

महिला ने एक-एक हजार के तीन नोट निकाले और प्रभाकर के सामने रखते हुए बोली-''ये लो एक दिन और १५०० रुपये बचाने की फीस। मैं किसी का एहसान नहीं रखती।"

इससे पहले कि वह कुछ बोलता महिला तेजी से बाहर निकल गई और प्रभाकर मेज पर पड़ी अपनी शराफत और परिचय की कीमत को देखता रह गया।"

५ मई २०१४

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