छोटे पर समझदार पप्पू को
लेकर उसके माता-पिता मेले के लगभग हर दूकान पर घूम चुके।
पप्पू बार-बार चाबी वाले स्कूटर की माँग करता रहा, लेकिन
हर बार उसको ‘ना’ के साथ एक ही जवाब मिलता रहा, ‘बेटा, ले
दूँगा। थोड़ा धीरज धरो। आजकल तू बहुत जिद्दी हो गया है।’
...मेला पूरा होने की तैयारी में था, पर पप्पू की इच्छा
अभी भी पूरी नहीं हुई थी। आखिरकार मेले से घर की तरफ लौटते
समय एक गरीब लारी वाला दिखने पर पप्पू गिड़गिड़ाया, ‘पप्पा,
ये सादा सस्ता स्कूटर तो मुझे ले दो।’
‘बेटा, ये तो बिल्कुल बेकार है। ऐसा खिलौना नहीं लेते
बेटा।’
‘तो फिर पप्पा, ये छोटी सी, अच्छी वाली मोटरकार तो अब मुझे
दिलवा दो।’
‘बेटा, तुझे अच्छी, इससे भी बढ़िया मोटरकार बाद में
दिलवाऊँगा। इस वक्त ज्यादा किचकिच मत कर। इन दिनों तू बहुत
जिद्दी होता जा रहा है।’
अब पप्पू से रहा न गया। वह फूट-फूट कर रो पड़ा और सिसकते
स्वर में बोल उठा, ‘जि....जिद्द मैं.......मैं कर रहा हूँ
कि...कि....आप......?’
...और पति-पत्नी भौचक्के-से एक दूसरे को देखते ही रह गए।
७ जनवरी २०१३ |