उस दिन माँ के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका
झगड़ा हो गया तो वह बिना नाश्ता किए ही ड्यूटी पर जाने के
लिए बस–अड्डे की ओर चल पड़ा।
घर से निकलते वक्त माँ के यह बोल उसे खंजर की
तरह चुभे, “तेरी आस में तो मैने तेरे अड़ियल और नशेबाज बाप
के साथ अपनी सारी उम्र गाल दी, कि चलो बेटा बना रहे, और
दुष्ट तू भी…।”
माँ के शेष बोल आँसूओं में भीग कर रह गए। वह जार–जार रोने
लगी।
घर से बस–अड्डे तक का सफर तय करते हुए उसे बार–बार यही
ख्याल आता रहा कि वह माँ के कहे बोल नहीं बल्कि माँ द्वारा
सृजित एक–एक अरमान को पाँवों तले रौंदता चला जा रहा है।
पर वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा।
बस–अड्डे पर पहुँचकर जब वह अपनी बस की ओर बढ़ा तो देखा,
माँ हाथ में रोटी वाला डिब्बा लिए उसकी बस के आगे खड़ी थी।
बेटे को देखते ही माँ ने रोटी वाला डिब्बा उसकी ओर बढ़ा
दिया। माँ के खामोश होंठ जैसे आँखों पर लग गए हों। एकाएक
अनेक आँसू माँ की पलकों का साथ छोड़ गए। माँ को ऐसे रोते
देख कर उससे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया गया और अगले ही पल
वह माँ के चरणों में था।
१५ अक्तूबर २०१२ |