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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
मधु संधु की लघुकथा- साक्षात्कार


भाषा विभाग के हिन्दी अधिकारी की एक नौकरी के लिए उसने आवेदन दिया था। आज साक्षात्कार था। ऐसा न था कि उसने साक्षात्कार के लिए तैयारी न की हो अथवा वह विषय का ज्ञाता न हो। फिर भी भय, घबराहट थरथराहट उसका साथ न छोड़ रहे थे।

स्कूली शिक्षा उसकी पब्लिक स्कूल की थी, जहाँ न शब्द विन्यास की गलतियाँ माफ की जाती थी, न उच्चारण की त्रुटियों को नजरअंदाज किया जाता था। सबसे अधिक भय उसे साक्षात्कार सभा में उपस्थित भाषा विशेषज्ञ से लग रहा था। पता नहीं वे क्या पूछें ?

लाल रंग की गद्देदार ऊॅंची पीठ वाली कुर्सी से टेक लगाकर गम्भीर, गर्वीली और विश्वस्त मुद्रा में उन्होंने प्रश्न किया-

‘साहित के इत्तहास को करमवार बताओ।’

‘नहीं आता, चलो मिट्टी पाओ।’ उदार मुद्रा में उन्होंने अगला प्रश्न किया।

‘मित्तर को पत्तर लिखते हुए अभिवादन के लिए कौन सा शबद इसतमाल करोगे। ’

और वह कोई उत्तर देने की अपेक्षा राष्ट्रभाषा के प्रतिष्ठित कर्णाधारों को श्रद्धांजलि देते हुए उठ गया।

 

१२ सितंबर २०१०

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