"पिताजी
अब तो मैं एक सफल राजनीतिज्ञ बन गया हूँ पार्टी ने मुझे
महासचिव बना दिया है।" पैर छूते
हुए पुत्र ने बताया।
"हाँ तुम्हारा राजनैतिक कद तो ऊँचा हुआ है उसके
लियें मैं तुम्हें बधाई देता हूँ। एक बात बताओ
तुम्हें मुझ पर कितना भरोसा है?"
"कैसी बात करते हैं पिताजी, एक आप ही तो हैं जिनपर
में खुद से भी ज्यादा भरोसा करता हूँ।"
"बस यही तो सबसे बड़ी कमी है तुम राजनेता तो बन गए
पर 'सफल' नहीं हुए। यही सवाल यदि तुमने मुझसे किया
होता तो मैं उसे हँस कर टाल देता, इसीलिये मैं मुख्यमंत्री हूँ
और तुम महासचिव।
राजनीति में तो अपने बाप पर भी भरोसा नहीं किया जाता।
देखो, सभी मुझे ईमानदार समझते हैं यहाँ तक की तुम भी। किसी
को नहीं पता कि मैने कितने घोटाले किये हैं, मेरा कितना धन
स्विस बैंक में हैं, वास्तव में, मैं इस देश का सबसे बड़ा
भ्रष्टाचारी हूँ। पिता ने अपनी शेखी बघारते हुए कहा।"
"अरे पिताजी! आप तो दिल पे ले
गए मैने तो सिर्फ कहा ही था, गुप्त कैमरा निकालते हुए
पुत्र ने कहा। भले ही अब तक आपके इस दूसरे चेहरे को कोई ना
देख सका हो पर इसका सबूत अब मेरे पास है। कल जब ये सब टीवी
पर प्रसारित होगा तो आपको जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता।
और जब लोगों को ये पता चलेगा कि एक पुत्र ने अपने
भ्रष्टाचारी पिता को सलाखों के पीछे भिजवा दिया तो लोग खुद
ही मुझे इस कुर्सी पर बिठा देंगे। पर आप चिंता मत करो
पिताजी आप को तो पता ही है हमारी जनता कितनी भोली है और
उसकी यादाश्त कितनी कमजोर है। मामला ठंडा पड़ते ही, मैं आप
को किसी ना किसी तरह निकाल लूँगा।"
वाह बेटा वाह! कितना लुभावना वादा है, पर जानते-बूझते हुए
भी मुझे इस पर यकीन करना पड़ेगा। यही तो हर नेता करता है हर
५ साल में १ बार चुनाव क्षेत्र में जाता है अपने वादों के
सब्ज-बाग़ दिखा कर सम्मोहित कर देता है जब तक उनका सम्मोहन
टूटता है तब तक नेता ससंद भवन पहुँच जाता है। जिसकी मैने
तुझे थ्योरी की क्लास दी थी तूने उसका प्रैक्टिकल कर
दिखाया। वाह री राजनीति, कल तक जिसे उँगली पकड़ कर चलना
सिखाया था आज वही मेरा राजनैतिक बाप बन बैठा।
१६ मई २०१० |