सदाशिव मास्टर साहब शहीद
भगतसिंह का चित्र लेने बाज़ार की ओर जा रहे थे। शासन की मंशा
थी कि इस वर्ष 'भगतसिंह जयंती' धूमधाम से मनायी जाए, इसीलिए
हेड मास्टर साहब ने उन्हें भगतसिंह का चित्र, मढ़वा कर लाने
का आदेश दिया था।
पोस्टर्स
की उस दुकान पर जाकर उन्होंने चारों ओर निगाह दौड़ाई। सभी ओर अपना शरीर दिखाते हुए फिल्मों के नायक-नायिकाओं के चित्र
लगे थे।
''क्यों भाई। शहीद भगतसिंह का चित्र है।''
उनकी बात
सुनकर दुकानदार ने लड़के को आवाज़ लगाई, ''कोने वाले ढेर में
भगतसिंह का चित्र रखा है... निकाल कर लाना।''
लड़के की अंगुलियाँ पोस्टर के उस ढेर में फिसलने लगी।
जब थोड़ी
देर हो गई तो दुकानदार लड़के को डाँटते हुए बोला, ''क्यों
रे, तुझे भगतसिंह का चित्र नहीं मिल रहा...।''
''दादा... शाहरुख ... सलमान... मल्लिका शेरावत... शैफाली...
अमिताभ... करीना... सब दीख रहे हैं परंतु भगत सिंह कहीं भी
नज़र नहीं आ रहे।'' लड़के ने झुँझलाते हुए जवाब दिया।
''मास्टर
जी। ज़माना बदल गया... इसके साथ-साथ नायक भी बदल गए। अब
भगतसिंह जी की तस्वीर कोई नहीं माँगता, इसलिए उसे खोजने में
समय लग रहा है।'' मास्टर साहब के चेहरे के बदलते हुए भावों
को पढ़ते हुए दुकानदार ने उनसे कहा।
जबकि
मास्टर साहब मन ही मन समाज की कृतघ्नता पर दुःखी होकर सोच
रहे थे कि काश इस दुकान पर सभी ओर शहीदों के चित्र लगे होते
तो इस देश की ऐसी दुर्गति नहीं होती।
२५ जनवरी २०१० |