सूरज अपने ताप के मद में चूर
अग्नि बरसा रहा था। चाँद ने दुखी होकर कहा,
''देखो! धरती पर प्राणी प्यासे मर रहे हैं। पेड़, पेड़ न रह
कर ठूँठ रह गए हैं। इन्हें इस तरह न तरसाओ। तुम्हारा ह्रदय
द्रवित नहीं होता। कैसे सब प्राणी दीन-हीन से आकाश की ओर देख
रहे हैं।''
सूरज दंभ से हँसते हुए
तत्क्षण बोला,
''शक्तिमान बनने में ही गौरव है। जब मैं जोश में होता हूँ तो
मनुष्य को निचोड़ सकता हूँ। कोई मेरी ओर देखने से भी कतराता
है। जीवन ऐसा होना चाहिए जिसमें लोग भयभीत रहे और लोहा माने।
तुम्हारा क्या जीवन है? तुम तो मेरे बूते पर ही तो चमकते
हो।''
चाँद ने कहा, ''जो व्यक्ति
हमें सम्मान देता है हमें भी उसका आदर करना चाहिए। घमंड
व्यक्ति को नष्ट कर देता है। मनुष्य ने तुम्हें देवता माना,
तुम्हें अपने ग्रह-मंडल मे जगह दी। और तुम ही उसके प्राणों
पर यमदूत की तरह मंडरा रहे हो। मेरा प्रकाश भले ही तुम्हारा
हो पर मैं ही तुम्हारी शक्तियों को प्रशंसनीय बनाता हूँ।
मेरी चाँदनी की शीतलता रात्रि को और भी सुखद बना देती है।
"ऐसे
में मनुष्यों के चेहरे पर भरपूर सुख देते हुए जो संतुष्टि
प्राप्त होती है मेरे लिए वही अपार संतोषप्रद है। तुम्हें
शक्तिशाली होने का अभिमान है। परंतु मैं तो इस शांतिदायक
जीवन में ही अधिक प्रसन्न हूँ। मैं कुछ दिन लोप रहता हूँ तो
सभी मेरी प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन तुम्हारी तीव्रता से
त्रस्त होकर छाया में दुबक रहे हैं।''
चाँद की बात सुनकर सूरज ने
सिर झुका दिया। और वसुधा को शीतल करने के लिए वारिद बंधुओं
से आग्रह करने चल पड़ा।
२८ जुलाई २००८ |