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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
जितेन्द्र भटनागर की लघुकथा समय

''क्यों भाई साहब, क्या बजा होगा आपकी घड़ी में?''
''जी ये बंद पड़ी है।'' मूँछों वाला बोला।
''तो पहन क्यों रखी है?'' ऐनक वाला नाक में ही ऐनक उचकाते बोला। मूँछो वाले की मूँछों के एक दो बाल खड़े हो गए इतनी सी बात से। तभी ऐनक वाला मानो समझौता करता हुआ पूछ बैठा, ''वैसे अंदाज़ से बता सकते हैं कि क्या बज गया होगा?''
''मैं बजने के मामले में अंदाज़ी गुड्डे नहीं बैठाया करता, समझे आप?'' कहते-कहते मूँछों वाले की उँगलियाँ मूँछ की नोक पर चली गई थीं और आँखें ऐनक वाले की आँखों में घुसने को आतुर थीं। तभी ऐनक वाला दूसरी तरफ़ देखने लगा।

ये एक बस स्टॉप था। ये दोनों ही बस के इंतज़ार में खड़े थे। अभी तक ये दो ही थे। तभी दाढ़ी वाला और आकर लग गया। उसके लाइन में लगते ही ऐनक वाले ने पूछा, ''क्यों भाई साहब घड़ी है क्या आपके पास?''
दाढ़ी वाले ने इन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, फिर पान की पीक को मुँह में सँभलते हुए ही मुँह उठाकर बोला, ''यहाँ नहीं घर पे है। लेकिन इरादा क्या है आपका?''
''वक़्त... बस वक़्त पता करना था। क्या बजा है?''
''ओह वक़्त... बड़ा खराब वक़्त है।'' इस बार उसने पिच्च से एक तरफ़ थूक दिया। मूँछों वाले का ध्यान पीक की पिचकारी के साथ सड़क पर चला गया। फिर वह दाढ़ी वाले को गौर से देखने लगा।

तभी एक तरफ़ से दो लड़कियाँ यूनिवर्सिटी फ़ाइल दबाए हुए आकर उसी बस स्टॉप पर दाढ़ी वाले के पीछे लग गईं। दोनों घड़ी बाँधे हुए थीं कलाई में। उनके खड़े होते ही मूँछों वाले की मूँछों के बाल शांत हो गए। दाढ़ी वाले ने इस बार पीक सटक ली और ऐनक वाला उनकी कलाइयों की तरफ़ देखने लगा। तभी मूँछों वाले ने मुड़कर उन लड़कियों से पूछ लिया, ''आपकी घड़ियों में क्या बज गया होगा?''
''क्यों?'' दोनों लड़कियों ने एक साथ ही पूछा और आँखें मूँछों वाले पर जमा दीं। तभी वह सकपकाया हुआ बोला, ''जी, मुझे नहीं इनको ज़रूरत है।'' उसका इशारा ऐनक वाले की तरफ़ था।
''तो ये पूछ लेंगे, आपसे क्या मतलब?''

तभी बस आकर खड़ी हो गई। सभी उसमें चढ़ गए बारी-बारी से। ऐनक वाले कंडक्टर से टिकिट लेते समय पूछा, ''क्यों दोस्त, क्या बजा होगा?''
कंडक्टर ने ऐनक वाले को देखा। फिर बोल पड़ा, ''समय नहीं है, समय बताने को। हाँ भाई तुम्हारा टिकट...'' कहते-कहते वह दूसरे की तरफ़ मुखातिब हो गया। ऐनक वाले ने एक खाली सीट देखी और लपक कर बैठ गया। बस चल दी थी। तभी उसने साथ वाले आदमी की कलाई पर बँधी घड़ी देखते हुए पूछा, ''क्यों भाई साहब, क्या बजा होगा?''
''अमाँ बार-बार बताऊँ कि ये घड़ी बंद पड़ी है, बंद....समझे।''
ऐनक वाले ने चेहरा उठाकर बस वाले सज्जन को देखा और चौंक पड़ा, वह वही मूँछों वाला था। उसने अपने घुटने जोड़कर उनमें हाथ फँसा लिए। बस ने रफ्तार पकड़ ली थी।

३० जून २००८

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