मां
. .मां . . .!! मुझे चप्पल ला दो नहीं तो मैं
स्कूल नहीं जाऊंगा, हमारे स्कूल में सब लड़के
जूता पहनकर आते हैं और मैं नंगे पांव स्कूल जाता
हूं। रास्ते में मेरे पैर में कंकड़ चूभते हैं, यह
देखो . . .यह देखो काले-काले निशान।' पैर का
तलुआ दिखाते हुए रामू ने कहा।
'बेटा हमारे पास पैसा
नहीं है, पैसे के लिए मैं मालकिन से कई बार कह
चुकी हूं, लेकिन वह पैसा ही नहीं क्योंकि उनके
बेटे का जन्मदिन इसी हफ्ते है, इसलिए जब पैसा
मिलेगा तुम्हें चप्पल अवश्य ले दूंगी।' रामू का
तलुआ सहलाते हुए मां ने कहा।
'मां!
यह जन्मदिन क्या
होता है?' रामू ने उत्सुकतावश पूछा। बच्चे का प्रश्न
सुनकर गोमती की आंखें डबडबा आईं। वह चाहकर भी
कुछ न कह पाई। उसकी आंखें शून्य में कुछ खोजने
लगीं।
'मां . . .! मां . . .!! यह जन्मदिन क्या होता है?
बताओ तुम चुप क्यों हो गई और यह तुम्हारी
आंखों में आंसू! क्या जन्मदिन बुरी चीज़ है?
रामू ने जिज्ञासावश पूछा।
'बेटा . . .यह बड़े
लोगों की बातें हैं;,
रूपया खर्च करने का एक सुंदर
बहाना है।' गोमती ने संक्षिप्त उतर देते हुए रामू
को सीने से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाने
लगी।
'मां मेरा जन्मदिन कब
मनाओगी?' रामू ने दोनों हाथों से मां के
गालों को सहलाते हुए पूछा।
'हां बेटा, ज़रूर मनाऊंगी तेरा जन्मदिन, लेकिन अभी
नहीं जब हमारे पास पेट भरने से अधिक
रूपया हो
जाएगा तब धूमधाम से तेरा जन्मदिन करूंगी।' एक
खोखली हंसी हंसते हुए गोमती ने कहा।
'मां रूपया कहां मिलता है? बताओ मां . . .मैं ढेर
सारा रूपया ले आऊं जिसमें तुम मेरा जन्मदिन
मनाना। तुम्हें किसी के यहां जूठे बर्तन मांजने
की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। तुम दिन भर हमारे पास
रहना, मैं अकेले घर में नहीं रहूंगा।' रामू ने
दृढ़ निश्चयी स्वर में कहा।
'बेटा! अभी तुम मन
लगाकर खूब पढ़ो। शरीर को तपाने से
रूपया स्वयं
मिल जाता है।' मां ने रामू को दुलारते हुए कहा।
'मां . . .!मां . . .!!
मैं पढूंगा अब चप्पल नहीं लूंगा।' वह झोपड़ी के
अंदर जाकर जलते हुए दीपक के सामने बैठकर
ज़ोर-ज़ोर स्वर में पढ़ने लगा . . .क से कबूतर,
ख से खरगोश . . .और गोमती भूख शांत करने के
लिए पड़ोस में चावल मांगने चली गई।
16 मई
2006
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