मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत इस अंक में प्रस्तुत है
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की लघुकथा— दोहरा दान


ओस्लो में पार्लियामेन्ट ट्राम स्टेशन के बाहर एक युवती नशे में धुत एक मुँडेर पर कॉफी का एक खाली कागजी कप लिए बैठी थी। उसने माँगने के भाव से पूछा, 'हार दू स्मो पेंगेर'? (तुम्हारे पास छोटे सिक्के हैं?)

'या बारे स्मो पेंगेर।' (हाँ केवल छोटे सिक्के।) कहकर मैने अपनी जेब से बटुआ निकाला और एक क्रोन का सिक्का उसके पास रखे खाली काफी–कप में डाल दिया। उसने अजीब से कॉफी कप में टटोलकर सिक्का निकालते हुए, ‘बारे एन क्रोन’ (केवल एक क्रोन) कहकर उसने सिक्का कप से बाहर निकाला और बाहर लुढ़का दिया। सिक्का लुड़कता हुआ पास खड़े बात कर रहे दो आदमियों में से एक आदमी के जूते से टकराया जो अपने दो
नो हाथ पैन्ट की जेब में डाले हुए था।

उस आदमी ने सोचा कि यह सिक्का उसकी जेब से गिरा है अत: उसने सिक्का उठाकर अपनी जेब में रख लिया और वह आदमी पुनः अपने साथी के साथ बात करने में मग्न हो गया।

उस युवती नें बड़े आश्चर्य से उसे देखा और कहा, ‘फान’ (धत्तेरे की)। उसे देखकर मेरे मुख में मुस्कान भर आयी। एक और युवती पास खड़ी यह नज़ारा देख रही थी। वह भी मुस्करा रही थी। मैं उसे देखकर कुछ कहता कि उसने मुझसे कहा कि मैने एक को नहीं दो को दान दिया है।
मैं मुस्कराता हुआ आगे बढ़ गया।

२४ जुलाई २००४

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।